वैदेशिक : पाकिस्तान की मुश्किलें

Last Updated 20 Oct 2019 06:00:41 AM IST

भारत का एक और पड़ोसी देश यानी पाकिस्तान दिवालिया होने की ओर बढ़ रहा है। लेकिन उसने संपूर्ण जीवनकाल में जिन अयोग्यताओं को पोषित किया वही अब उसे धीरे-धीरे नेस्तनाबूद कर रही हैं।


वैदेशिक : पाकिस्तान की मुश्किलें

उसके द्वारा पैदा किया गया कट्टरपंथ और जिहादी मानसिकता उसे बाहरी आर्थिक सहयोग पाने से रोक रहे हैं। उसकी सेना फिर से लोकतांत्रिक शक्तियों का अपहरण कर पाकिस्तान की अवाम को माशर्लों के बूटों के नीचे लाने की कोशिश में है। पाकिस्तानी रु पया धूल चाट रहा है, और सरकार कटोरा लेकर दर-दर भटक रही है। सवाल है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान का भविष्य क्या होगा?
पिछले दिनों चरमपंथी संगठनों को मिलने वाली वित्तीय मदद की निगरानी करने वाली एजेंसी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को अंतिम रूप से चार महीने का समय दिया। इस समयावधि में वह कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाता है तो एफएटीएफ उसे ब्लैक लिस्ट में डाल देगी। हालांकि एफएटीएफ की अध्यक्षता इस समय चीन के पास है, इसलिए पाकिस्तान की सरकार आस्त रही होगी कि एक सदाबहार दोस्त उसे पूरी मदद देगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। कारण यह है कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को 29 टास्क दिए थे जिनमें वह सिर्फ  पांच ही पूरे कर पाया है। इस स्थिति में कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान अगले चार महीनों में सभी टास्क पूर लेगा। यह कहना कहीं अधिक तर्कसंगत होगा कि पाकिस्तान का काउंटडाउन शुरू हो गया है। इसलिए कि पाकिस्तान के पास ऐसी काबिलियत नहीं है जो निर्धारित समय सीमा के अंदर सभी पक्षों पर उचित प्रगति कर सके। 

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पद संभालने के बाद अपने देश के लोगों से कहा था कि वे एक नया पाकिस्तान बनाएंगे। इस बन रहे नये पाकिस्तान को क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज साख के लिहाज से नकारात्मक श्रेणी में डाल चुकी है। अब वह एफएटीएफ की निगरानी सूची में भी है। यह बात यहीं पर नहीं रु कती। पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में ही इमरान सरकार के वित्त मंत्री घोषणा कर चुके हैं कि पाकिस्तान आर्थिक संकट में है और आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से बड़े कर्ज की आवश्यकता होगी। इसके बाद पाकिस्तानी मंत्री ऋण की मांग की उम्मीदों के साथ दुनिया के देशों के नजदीक गए भी लेकिन उन्हें खास सफलता नहीं मिली। परिणाम हुआ कि कमजोर अर्थव्यवस्था ने पाकिस्तानी रु पए को एशिया की सबसे बदतर मुद्रा की श्रेणी में ला दिया। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी रु पया एशिया की 13 अहम मुद्राओं में सबसे कमजोर मुद्रा है। पाकिस्तान में वित्तीय संकट का प्रभाव कई क्षेत्रों में दिखेगा विशेषकर-मुद्रा, शेयर/पूंजी और व्यापार के क्षेत्र में। उसका शेयर बाजार में पिछले डेढ़ वर्ष में इस तरह दुर्दशा का शिकार हुआ है कि मार्केट सपोर्ट फंड्स की जरूरत पड़ रही है। इसका असर पाकिस्तान में होने वाले विकासात्मक व्ययों, सामाजिक सुरक्षा, निवेश आकर्षण, सब्सिडी प्रोग्राम आदि पड़ रहा है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान कई बार इस ओर संकेत कर चुका है कि पाकिस्तान का व्यापार घाटा निरंतर बढ़ रहा है। पाकिस्तान आयात बिलों का भुगतान करने में सक्षम नहीं रह जाएगा तो उसे डिफॉल्टर घोषित होना पड़ सकता है। खास बात यह है कि वह कर्ज में पहले से ही डूबा हुआ है, विशेषकर चीन के कर्ज में। इसलिए अब जो भी उसे मिलेगा वह उधारी के रूप में नहीं मिलेगा बल्कि मॉर्गेज ऋण होगा जो अंतत: पाकिस्तान की प्राकृतिक संपदा और प्रबंधन में ऋणदाता को ऋणग्राही की राष्ट्रीय संपदा में साझीदार बना देगा। इसके तात्कालिक प्रभाव भले ही कम दिखें लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव खतरनाक होंगे। ध्यान रहे कि अभी पाकिस्तान पर बाहरी कर्ज-जीडीपी अनुपात 72.5 प्रतिशत के आसपास है।
फिलहाल, पाकिस्तान के स्टैबलाइजिंग मीजर्स बेहद कमजोर हैं। ग्रोथ के घटने और मुद्रास्फीति के बढ़ने के संगत अनुपात में इमरान सरकार के पैर उखड़ेंगे और जमेंगे। आईएमएफ का कर्ज के साथ जो चाबुक चला है, वह इमरान सरकार के सामने जनता और विपक्ष की तरफ से खासी चुनौतियां पैदा कराएगा। यही नहीं, अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज और मदद पर बारीकी से नजर रखी जाए ताकि वह इसका उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने तथा चीन को कर्ज चुकाने में न कर सके। कुल मिलाकर पाकिस्तान अब अपने ही जाल में फंस रहा है।

रहीस सिंह


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