सरोकार : क्या औरतें सचमुच नौकरियों के लिए ‘क्वालिफाइड’ नहीं होतीं?
बात अमेरिका की हो या भारत की-एक सी लगती है। कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिर्वसटिी के कुछ शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि महिलाओं को कंपनियां हायर करने से कतराती हैं।
सरोकार : क्या औरतें सचमुच नौकरियों के लिए ‘क्वालिफाइड’ नहीं होतीं? |
उनके सीधे से जवाब होते हैं-हम औरतों को हायर करना चाहते हैं। पर शायद नौकरी में उनकी रु चि ही नहीं होती या वे उतनी क्वालिफाइड नहीं होतीं। औरतों की हायरिंग के मामले में अमेरिका की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं।
यह स्थिति भारत में और बुरी है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर सबसे कम है। इसमें लगातार गिरावट आ रही है। 2011-12 में जहां यह दर 31.2 फीसद थी, वहीं 2017-18 में घटकर 23.3 फीसद रह गई। ग्रामीण क्षेत्रों में गिरावट और अधिक 11 फीसद है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रा में पुरु ष श्रमिकों की भागीदारी में कमी आई है लेकिन महिलाओं के मामले में यह गिरावट और अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के जो अवसर उपलब्ध भी हैं, उनमें भी महिलाएं पुरुषों से पिछड़ रही हैं। भारत में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम होने की कई वजहें हैं। रोजगार के अवसरों में कमी, शिक्षा का बढ़ता स्तर, घरेलू आय में बढ़ोतरी और आंकड़ा जमा करने से संबंधित समस्याएं। ग्रामीण महिलाएं अपने घर के पास और अपनी इच्छा की समयावधि में काम को तरजीह देती हैं। घर-परिवार की जिम्मेदारी इसकी एक वजह है। ऐसे में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के तहत उन्हें पहले से तय मजदूरी की दर पर 100 दिनों का रोजगार देने का प्रावधान है। लेकिन 2018 में एक सर्वेक्षण से पता चला कि घर या समाज में महिलाओं द्वारा वैसे काम जिसके बदले पैसे नहीं मिलते हैं, की वजह से श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है। ग्रामीण समाज में यह अधिक स्पष्ट तौर पर दिखता है। परिवार का आकार घटने और ग्रामीण पुरु षों के पलायन की वजह से महिलाओं के बगैर भुगतान वाले काम बढ़ गए हैं।
ओईसीडी के मुताबिक भारतीय महिलाएं हर दिन औसतन 352 मिनट घरेलू कामों में लगाती हैं। पुरुष बगैर भुगतान वाले काम में जितना वक्त लगाते हैं, उसके मुकाबले यह 577 फीसद अधिक है। बगैर भुगतान वाले कार्यों के कारण महिलाओं को रोजगार के लिए शिक्षा और कौशल हासिल नहीं हो पाता। वैसे ऐसी कुछ नीतियां हैं जो महिलाओं की मदद कर सकती हैं। लेकिन ये सभी संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए हैं। मातृत्व लाभ कानून के तहत संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए 26 हफ्ते का वैतनिक अवकाश देने का प्रावधान किया गया है। 50 से अधिक महिला कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच की स्थापना अनिवार्य कर दी गई है। असंगठित क्षेत्र में ये सुविधाएं बेहद सीमित हैं। रोजगार गारंटी योजना के तहत महिलाओं के बच्चों की देखरेख की व्यवस्था कार्यस्थल के आसपास करने का प्रावधान तो है लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय क्रेच योजना के फंड में जबर्दस्त कटौती की वजह से देश भर के क्रेच बंद हो रहे हैं। महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जरूरी है कि रोजगार गारंटी योजना और एकीकृत बाल विकास सेवाओं पर खर्च बढ़ाया जाए। साथ ही पेशेवर प्रशिक्षण पर भी ध्यान दिया जाए ताकि तेजी से बदल रही उत्पादन प्रक्रियाओं के हिसाब से महिलाएं कौशल हासिल कर सकें। रोजगार में आरक्षण और उन्हें कर्ज देने जैसे उपायों से भी उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
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