मुद्दा : ’देशद्रोह’ के मामलों में तंत्र असहज

Last Updated 15 Oct 2019 02:14:01 AM IST

124ए (देशद्रोह) और 153ए समेत विभिन्न धराओं के अंतर्गत ‘देशद्रोह’ के आरोप लगाकर जेल भेजे जाने वाले वैसे बुद्धिजीवी, चिंतक, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील और प्रोफेसर हैं, जिनकी विचारधारा भाजपा से मेल नहीं खाती।


मुद्दा : ’देशद्रोह’ के मामलों में तंत्र असहज

इनके मामले में सुप्रीम कोर्ट तक के लिए किसी निश्चित नतीजे पर पहुंचना कठिन हो रहा है। महाराष्ट्र से दिल्ली तक पुलिस कोई मामला उठा लेती है, जिसमें सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या भाजपा का विरोध हो और उसके बाद सबूत जुटाने के लिए कोर्ट का समय जाया करती है। 
एक ओर वामपंथी सोच वाले ‘देशद्रोहियों’ को ‘शहरी नक्सली’ कहकर जेल में डाला गया वहीं दूसरी ओर मोदी पर टिप्पणी करने या उनकी नीतियों की आलोचना करने वालों के खिलाफ ‘देशद्रोह’ का मामला बनाया गया। ऐसे समय में कई तरफ से ‘देशद्रोह’ के मामले सुर्खियों में हैं, जब महाराष्ट्र में चुनाव है, जहां से ‘देशद्रोह’ दिसम्बर, 2017 में उपजा। जितने बुद्धिजीवी इसमें फंसे हैं, उनमें ज्यादातर दलित हैं। दबे-कुचले दलित-आदिवासियों के बीच उनकी गहरी पैठ है। उनकी आवाज को दबाने-कुचलने के प्रयास पर कोई फैसला लेने में सुप्रीम कोर्ट के अंदर भी असहजता है। अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात के खिलाफ बार-बार फैसला सुनाने के बावजूद बात बन नहीं रही है। इस बीच, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से रिपोर्ट आई कि कोर्ट ने एक वकील की अर्जी पर देश की 49 जानी-मानी हस्तियों के खिलाफ देशद्रोह के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल, अदूर बालाकृष्णन, शास्त्रीय संगीत गायिका शुभा मुद्गल जैसी नामचीन हस्तियों का अपराध था कि इन लोगों ने दो महीने पहले प्रधानमंत्री मोदी को खुला पत्र लिखकर उनकी नीतियों की आलोचना की थी। एक स्थानीय वकील ने मुजफ्फरपुर के सीजेएम के पास अर्जी लगाकर उस पत्र को ‘देशद्रोह’ का मामला बनाया। दलील दी कि इन लोगों ने अपने पत्र में ‘प्रधानमंत्री की प्रभावशाली उपलब्धि और देश की छवि को बदनाम करने का प्रयास’ किया। मजे की बात यह है कि गांधी जयंती के ही दिन इन 49 मशहूर हस्तियों के खिलाफ देशद्रोह की धारा 124ए के अलावे देश को ‘तोड़ने वाली’ विभिन्न धाराओं 153बी, 160 और शांति में बाधा पहुंचाने वाली धारा 290, 504 समेत विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया।

इन लोगों ने अपने हस्ताक्षर से 23 जुलाई को प्रधानमंत्री को लिखे खुले पत्र में लिंचिंग, जय श्रीराम की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई कि इनमें दलितों, मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है। पत्र में वही बात कही गई जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध में बोलने वालों को ‘देशद्रोही’ और ‘शहरी नक्सली’ बताकर जेल में डालने की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि फिर तो लोकतंत्र नाम की कोई चीज रह नहीं जाएगी। प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वालों में मणि रत्नम, अपर्णा सेन, कोंकणा सेन, अनुराग कश्यप समेत 49 नामचीन कलाकार हैं। गिरफ्तारी से बचने के लिए ये लोग कोर्ट जाएंगे और फिर कोर्ट भी खुद को असहज महसूस करेगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आठ अक्टूबर को सफाई दी कि नामचीन हस्तियों के खिलाफ बिहार में ‘देशद्रोह’ का मुकदमा दर्ज होने के मामले से प्रधानमंत्री का कोई लेना-देना नहीं है।
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ ‘देशद्रोह’ मामला 2016 से चल रहा है, और अभी तक दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस के बीच कन्हैया तथा अन्य के खिलाफ अभियोग चलाने के लिए कोर्ट में फेंका-फेंकी चल रही है। 18 सितम्बर को दिल्ली के चीफ मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट मनीष खुराना ने कोर्ट का समय बर्बाद  करने के लिए फटकार लगाई और अंतिम निर्णय लेने के लिए 25 अक्टूबर तक का समय दिया। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के बारे में 19 सितम्बर को दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री के खिलाफ निंदनीय शब्द बोलना ‘देशद्रोह’ में नहीं आता। उनके खिलाफ मोदी को ‘नीच आदमी’ बोलने के कारण धारा 124ए/153ए के अंतर्गत देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है। जम्मू व कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट की नेता शेहला राशिद को ‘देशद्रोह’ अपराध में गिरफ्तारी से बचने के लिए 10 सितम्बर को दिल्ली की एक कोर्ट ने अंतरिम सुरक्षा दी। इन्होंने कश्मीर पर विवादित ट्वीट किया। दिल्ली पुलिस ने यह कहकर कोर्ट से जांच के लिए छह हफ्ते का समय लिया कि शेहला के खिलाफ सेना से कोई शिकायत नहीं मिली है।

शशिधर खान


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