जम्मू-कश्मीर : बदलने लगी फिजा

Last Updated 14 Oct 2019 04:50:01 AM IST

जम्मू कश्मीर में पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं चालू हो चुकी हैं। यह कदम साबित करता है कि सरकार की दृष्टि में 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति काफी सुधर गई है।


जम्मू-कश्मीर : बदलने लगी फिजा

पिछले 8 अक्टूबर को राज्यपाल ने घोषणा की कि 10 अक्टूबर से सैलानी प्रदेश में आ सकते हैं। राज्य प्रशासन ने सैलानियों के घाटी छोड़ने और वहां न जाने संबंधी एडवाइजरी को करीब 2 महीने बाद वापस ले लिया है।
अनुच्छेद 370 को खत्म करने से 3 दिन पहले 2 अगस्त को एक सिक्योरिटी एडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की सलाह दी थी। इस एडवाइजरी को वापस लेना जम्मू-कश्मीर के अतीत और वर्तमान को देखते हुए बहुत बड़ी घोषणा है। इसका मतलब यह भी हुआ कि सुरक्षा समीक्षा में भी सकारात्मक संकेत मिले हैं। ऐसा नहीं होता तो राज्य प्रशासन सैलानियों को बुलाने का रास्ता प्रशस्त नहीं करता। इसी तरह सारे विद्यालय खोले जा चुके हैं। 24 अक्टूबर को बीडीसी चुनाव कराने का फैसला भी महत्त्वपूर्ण है। तो क्या यह मान लिया जाए कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब सामान्य होने के करीब है? जम्मू कश्मीर वर्षो से असामान्य राज्य रहा है और सीमा पार से आतंकवाद जारी रहने तथा अलगाववादियों को समर्थन देने तक उसका पूरी तरह सामान्य होना कठिन है। वहां के मुख्यधारा के नेताओं की भी यही रणनीति रही है कि कश्मीर को किसी तरह सामान्य राज्य न बनने दिया जाए ताकि केंद्र पर उनका दबाव बना रहे एवं उनकी घटिया राजनीति और कुशासन पर किसी तरह का खतरा पैदा न हो।

आज की स्थिति यह है कि करीब 90 प्रतिशत पाबंदियां खत्म की जा चुकीं हैं। आठ से 10 थाना क्षेत्रों के अलावा लोगों की आम गतिविधियों पर लगी पाबंदियां हट चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर में 16 अगस्त से ही पाबंदियां धीरे-धीरे हटाई जाने लगीं थीं। आंशिक रूप से 17 अगस्त को लैंडलाइन सेवाएं बहाल की गई और 4 सितम्बर को इसे पूरी तरह बहाल कर दिया गया। उसके बाद पोस्टपेड उपभोक्ताओं के लिए ‘इनकमिंग’ मोबाइल सेवाएं बहाल की गई। आउटगोइंग मोबाइल सेवाओं पर रोक जारी थी जो हटा दी गई है। हां, मुक्त इंटरनेट बहाल करने में समय लगेगा। इंटरनेट से आतंकवादियों और उनके समर्थकों के बीच संपर्क का खतरा है। जब तक मोटा-मोटी निश्चिंतता नहीं हो जाती पूरी तरह इंटरनेट एवं प्रीपेड मोबाइल सेवा बहाल करने में समस्या है। हालांकि पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटक स्थलों पर इंटरनेट सेवा बहाल की जा रही है। संचार सेवा को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर छाती पीटने वालों के दबाव में यदि सरकार काम करती तो अभी तक न जाने कितनी आतंकवादी घटनाएं घट जाती। जम्मू-कश्मीर की स्थिति को देखते हुए इतना बड़ा कदम उठाने के पूर्व इस तरह के प्रतिबंध तथा इसमें बाधा बनने वाले नेताओ को ससम्मान नजरबंद या कैद करना आवश्यक था। इसी कारण लंबे समय बाद एक भी व्यक्ति दो महीने से ज्यादा समय में आतंकवादी हमले का शिकार नहीं हुआ।
इस बीच आतकवादी संगठनों ने लोगों को डराने की कोशिश की। पोस्टर तक लगाए गए लेकिन उसके जवाब में भी पोस्टर लगे। 2008, 2010 और 2016 में आतंकवादियों ने अपनी बात न मानने पर भारी संख्या में हत्याएं की थीं। वैसे पाबंदियों को जिस तरह सैन्य आपातकाल के रूप में चित्रित किया गया वह सही भी नहीं था। सात अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में 196 में से केवल दस थाना क्षेत्रों में ही धारा 144 लगी हुई है। मीडिया को प्रतिबंधित करने की बात भी सही नहीं है। राजधानी दिल्ली से गए पत्रकार वहां से रिपोर्ट करते रहे। इंटरनेट के कारण समस्या थी लेकिन वे पत्रकार ही बताते रहे कि मीडिया पर पांबंदी की बात गलत है। स्थानीय समाचार पत्र भी निकलते रहे। हां, 16 या 20 पृष्ठ के अखबार 10-12 पृष्ठ में आते रहे। घाटी के ज्यादातर अखबारों का भारत विरोधी, आतंकवादी, अलगाववादी समर्थक तेवर को देखते हुए ऐसी परिस्थिति में उन पर थोड़ी निगरानी आवश्यक थी। सर्वोच्च न्यायालय में  एक याचिका जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय पहुंच नहीं पाने की डाली गई तो एक बच्चों को नजरबंद करने की। ये दोनों आरोप गलत निकले और मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं को फटकार भी लगाई।
सरकार ने अपनी ओर से कुछ कोशिशें लोगों की कठिनाइयां दूर करने के लिए भी कीं। मसलन, बकरीद के दिन सामग्रियां पहुंचाने, राशन की कुछ सामग्रियों की आपूर्ति सुनिश्चित करने, सेब की खरीदारी करने या बाहर जाने के लिए ट्रकों की व्यवस्था, बीमारों को अस्पताल पहुंचाने आदि। सरकार ने 5000 करोड़ में घाटी का 50 प्रतिशत सेब खरीदने का ऐलान किया। पुलवामा के डीसी सैयद राशिद सेब बाजारों में पहुंचाने के लिए रोजाना 300 ट्रक का बंदोबस्त किया गया है। 3 सितम्बर को अमित शाह ने दिल्ली मिलने आए पंचों और सरपंचों के लिए पुलिस सुरक्षा और 2-2 लाख रु पये का बीमा कवरेज देने की घोषणा की। दूसरी ओर, सरकार ने करीब चार हजार लोगों को हिरासत में या नजरबंद रखा था। इनमें से करीब 700 लोग मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से थे। 17 सितम्बर को केंद्रीय गृहमंत्रालय ने जम्मू कश्मीर प्रशासन को साफ शब्दों में कहा था कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, अगर कानून-व्यवस्था का उल्लंघन करता है या लोगों को भड़काने का प्रयास करता है तो उसके खिलाफ पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) लगाया जाए।
फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के तहत हिरासत में ले लिया गया। 370 पर भिन्न मत रखने वाले और भी कुछ लोगों पर पीएसए लगाया गया है। हालांकि राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं की रिहाई भी शुरू हो चुकी है। घाटी में नेताओं की पृष्ठभूमि और संवैधानिक परिवर्तन पर उनकी विचारधारा का आकलन करने के बाद रिहा करने की प्रक्रिया चल रही है। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस, माकपा और अवामी इत्तेहाद पार्टी से जुड़े करीब तीन दर्जन प्रमुख नेताओं को मुक्त कर दिया गया। वैसे नेता कुछ भी कहें; घाटी की फिजा बदल रही है। 31 अगस्त को ही खबर आई कि जम्मू-कश्मीर से 575 युवा सेना में भर्ती हुए हैं।

अवधेश कुमार


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