बतंगड़ बेतुक : जिस मिलावट की कोई सजा नहीं
झल्लन ने हमें देखा तो हमारे पास चला आया और बोला, ‘ददाजू, दूधिया राज कुमार को लेकर मन दुखी हो रहा है सोच रहे हैं कि इस मुल्क की न्याय व्यवस्था को क्या हो रहा है?’
![]() बतंगड़ बेतुक : जिस मिलावट की कोई सजा नहीं |
हमने कहा, ‘दूधिया राज कुमार, ये कौन है?’ झल्लन बोला, ‘यही तो ददाजू, आप अडानी-अंबानी की खबर रखेंगे, नेताओं-अभिनेताओं की खबर रखेंगे, खेल-खिलाड़ियों की खबर रखेंगे और जब दूधिया राज कुमार की बात होगी तो हमसे पूछेंगे कि ये कौन है। ये वही है जिसके दुख-दर्द पर देश की संसद भी मौन है।’
हमने कहा, ‘तू यों ही पहेलियां बुझाएगा या दूधिया राज कुमार के बारे में कुछ बताएगा?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, किस्सा चौबीस साल पुराना है। हमारा राज कुमार जब दूध बेचने गलियों का चक्कर लगा रहा था, उसे क्या पता था कि एक खाद्य निरीक्षक उस पर घात लगा रहा था। निरीक्षक ने दूध का सैम्पल लिया और तुरंत प्रयोगशाला न भिजवाकर बीस दिन बाद सैम्पल प्रयोगशाला भिजवा दिया। प्रयोगशाला में दूध में पानी मिला हुआ बता दिया, बेचारे पर मुकदमा चलवा दिया, जेल भिजवा दिया। राज कुमार ने लाख दुहाई दी कि उसने कोई नया काम नहीं किया है वही किया है जो देश के दूधिये आदिकाल से करते आ रहे हैं और दूध के स्वास्थ्य के खाते उसे थोड़ा सा पानी पिलाकर उसे घर-घर पहुंचाते आ रहे हैं। उसके दूध से न तो आज तक कोई डरा है, न किसी के स्वास्थ्य को कोई खतरा पैदा हुआ, न कोई मरा है। पर हमारे देश की न्याय व्यवस्था ने न उसकी बात का संज्ञान लिया न उसके तकरे पर कोई ध्यान दिया और कहा कि किसी की जान को खतरा हो या न हो परंतु मिलावट तो मिलावट है सो कानूनी कार्रवाई की जाएगी और जितनी जेल उसके हिस्से में आती है, वह दिलायी जाएगी। बेचारे ने निम्न न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक सबको अपनी बात समझाई पर उसकी बात किसी की भी समझ में नहीं आयी। उसने वकीलों की भारी भरकम फीस चुकाई, खासी रकम अदालतों के चक्कर लगाने में गंवाई, अपनी बात किसी तरह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाई मगर सुप्रीम कोर्ट की भी दुहाई है उसे चौबीस साल बाद छह महीने की सजा सुनाई है। अगर सजा सुनानी थी तभी सुना देते, तभी उसे जेल भिजवा देते, बेचारा चौबीस साल घिसटता तो नहीं, रोज जीता-मरता तो नहीं।’
झल्लन की बात अब हमारी समझ में आ रही थी और हमें एक दूसरे दूधिया वीरेंद्र सिंह की कहानी याद आ रही थी। जब वीरेंद्र पर दूध में मिलावट का आरोप लगाया गया था तब वह 25 साल का जवान था और जब सर्वोच्च न्यायालय ने उसे इस आरोप से मुक्ति दी तब वह 65 साल का बूढ़ा हो चुका था। वीरेंद्र अपने किसी परिचित दूधिये का दूध उसकी एवज में उसके ग्राहकों का बांटने निकला था कि खाद्य निरीक्षक ने उसे धर लिया। उसकी कोई दलील नहीं सुनी क्योंकि वीरेंद्र वह ‘दलील’ नहीं दे रहा था जो खाद्य निरीक्षक सुनना चाहता था। निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी निर्दोषिता साबित करने के लिए लड़ते-लड़ते वीरेंद्र के लाखों रुपये लग गये और चालीस साल चुक गये। हमने झल्लन से कहा, ‘यूपी के दूधिये वीरेंद्र सिंह का मामला भी ऐसा ही था जैसा राज कुमार का था।’ झल्लन बोला, ‘मालूम है ददाजू, अब बताओ कानून पर रोएं कि कानून की व्यवस्था पर रोएं?’
उधर हम सोच रहे थे कि इन दूधियों का पहला अपराध यह था कि वे मानते थे कि जो वे कर रहे हैं; बाकी सभी हलवाई दूधिये भी वही कर रहे हैं और उनका यह करना अपराध नहीं है। अपने निरपराधी होने का विश्वास ही उनका सबसे बड़ा अपराध था। वे कथित अपराध को बिना अदालत जाये तुरत-फुरत अपराधविहीन करा लेने की कला नहीं जानते थे, यह उनका दूसरा बड़ा अपराध था। अगर ये दूधिये अपने निरीक्षकों को तत्काल कुछ भेंट चढ़ा देते तो न्याय की सालों लंबी यातनाभरी डगर पर चलने से खुद को बचा लेते।
हमें चिंतामग्न देख झल्लन बोला,‘क्या सोच रहे हो ददाजू?’ हमने कहा, ‘जो तू सोच रहा है वही हम सोच रहे हैं। देश की न्याय व्यवस्था पर अपने आपको कभी हंसने से तो कभी रोने से रोक रहे हैं।’ झल्लन बोला,‘ददाजू, न इसके पास सही आंख है न सही कान हैं तिस पर भी यह हमारा देश महान है। जो लोग दूध में थोड़ा सा पानी मिला देते हैं, कानून उन्हें सजा सुना देता है और जो लोग हर चीज में जहर मिला रहे हैं उनके पास पहुंचने से कतराता है। बताइए ददाजू, कहां मिलावट नहीं हो रही? राजनीति में धर्म और जाति की मिलावट हो रही है, धर्म में नफरत और पाखंड की मिलावट हो रही है, सत्ता में लूट की मिलावट हो रही है, भाषा में गाली की मिलावट हो रही है, व्यवहार में लंपटता की मिलावट हो रही है, दिमाग में जहर की मिलावट हो रही है, जिधर देखिए उधर खतरनाक मिलावट हो रही है। इस मिलावट के विरुद्ध कहीं कोई न्याय नहीं, किसी को कोई सजा नहीं।’
हम मन ही मन विचलित हो रहे थे पर हमने आंखें मूंद लीं मानो हम सो रहे थे।
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