सरोकार : लड़कियों को दे दिया जाए खुला आसमान
यह दिलचस्प है कि दुनिया में महिला पायलट्स की संख्या के लिहाज से हमारा देश बाकी के देशों से बाजी मार चुका है।
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हमारे यहां कुल कमर्शियल पायलट्स में महिलाओं का प्रतिशत 12 से अधिक है। देश में कुल 8797 कमर्शियल पायलट्स हैं, जिनमें महिला पायलट्स 1092 हैं। इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ विमेन एयरलाइन पायलट्स के अनुमान कहते हैं कि दुनिया में कुल पायलट्स में महिला पायलट्स का प्रतिशत करीब 5.2 बैठता है। इस तरह भारत दुनिया के बाकी देशों से अव्वल निकलता है।
वैसे भारत में महिलाएं वायु सेना में भी लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। इसी साल मई में भारतीय वायु सेना की फ्लाइंग ऑफिसर भावना कांत ने लड़ाकू विमान उड़ाकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है। ऐसा करने वाली वह भारतीय वायु सेना की पहली महिला पायलट बन गई हैं। भावना के साथ दो अन्य महिला फाइटर पायलट अवनि चतुर्वेदी और मोहना सिंह को 2016 में फ्लाइंग ऑफिसर के रूप में चुना गया था। 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने महिला पायलटों को भी बतौर फाइटर पायलट वायु सेना में शामिल करने की अनुमति दी। लड़कियों के लिए यह कॅरियर चुनना आसान नहीं है। वैसे एयरोस्पेस जैसे क्षेत्र में भी भारतीय औरतों ने डंका बजाया है। महिलाएं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के महत्त्वपूर्ण अभियानों का हिस्सा रही हैं।
यों विज्ञान और गणित के क्षेत्र में पुरुष ज्यादा हैं, औरतें कम-जिसे हम स्टेम एजुकेशन कहते हैं-साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथेमैटिक्स। 2017 में 11 फरवरी को इंटरनेशनल डे ऑफ विमेन एंड गर्ल्स इन साइंस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि दुनिया के 144 देशों में कंप्यूटिंग, इंजीनियरिंग और फिजिक्स में औरतें 30 प्रतिशत से भी कम हैं। भारत में ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन 2015-16 के डेटा भी बताते हैं कि 41.32% लड़कियां विज्ञान विषय को चुनती तो हैं, लेकिन उसमें फैशन टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और नर्सिंग जैसे कोर्सेज पढ़ना पसंद करती हैं जबकि लड़के टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हैं। जाहिर है, ये विषय मैस्कुलिन माने जाते हैं। हम मान लेते हैं कि औरतों को मशीनें समझ नहीं आतीं। चूंकि मनोविज्ञान भी यही साबित करता आया है। एक मशहूर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं साइमन बैरन कोहेन। उनकी एक रिसर्च में कहा गया है कि औरतों की बायलॉजी टेक्नोलॉजी जॉब्स में उन्हें आदमियों से कमतर बनाती है। वे लोगों में रु चि लेती हैं, वस्तुओं में नहीं। चूंकि उनके दिमाग की बनावट आदमियों से फर्क होती है जिससे उनमें सीखने की क्षमता कम होती है। स्टेम फील्ड्स यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ में औरतें इसीलिए कम संख्या में होती हैं। विज्ञान आखिर किसका विषय है..किसी का भी-जो उसे पढ़ना चाहे। पर विज्ञान जो भेद करता है, उसका क्या? चूंकि विज्ञान के क्षेत्र पर भी पुरुषों का प्रभुत्व है। ब्रिटिश पत्रकार एंजेला सैनी की किताब इंफीरियर-हाउ साइंस गॉट विमेन रॉन्ग..उसी विवादास्पद बहस पर नजर फिराती है। किताब में वैज्ञानिकों के इंटरव्यू हैं, और कहा गया है कि जिन वैज्ञानिक शोधों में औरतों को कमतर माना गया है, उन शोधों को करने वाले भी मर्द ही रहे हैं।
सो, लड़कियों को उड़ान भरने दी जाए। उनकी खास बात यही होती है कि वे अकेले फलती हैं, लेकिन उनकी उपलब्धियां गुच्छों में फलने का एहसास कराती हैं।
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