प्लास्टिक : निजी प्रयासों से बनेगी बात

Last Updated 26 Sep 2019 06:03:48 AM IST

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ के संदर्भ में चिंता जाहिर की थी।


प्लास्टिक : निजी प्रयासों से बनेगी बात

‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी इस विषय को गंभीरता से रेखांकित किया और ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ के खिलाफ वृहद्जन-अभियान चलाने की अपील की।
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि इस बार 2 अक्टूबर को जब बापू की 150वीं जयंती मनाई जाएगी तो वे इस मौके पर पूरे देश में प्लास्टिक के खिलाफ एक नये जन आंदोलन की नींव रखेंगे। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए चुनौती के रूप में उभर रहा है। प्लास्टिक कचरे का बढ़ता अंबार मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़े संकट के रूप में सामने आया है। दरअसल, प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल करना आसान नहीं होता। प्लास्टिक जलाने से जहरीली गैस निकलती है वहीं यह भूमि की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट करता है। मवेशियों के पेट में जाने से उनके लिए जानलेवा साबित होता है। एक अखबार में प्रकाशित सर्वे के मुताबिक लगभग 40 फीसद प्लास्टिक सिर्फ एक बार उपयोग किया जाता है। दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष करीब 300 मिलियन टन प्लास्टिक प्रोड्यूस होती है, इसमें से सिर्फ आधी ही डिस्पोजेबल होती है। वहीं दुनिया भर में सिर्फ 10-13 प्रतिशत प्लास्टिक को ही रिसाइकल किया जा पाता है। पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारकों में प्लास्टिक पहले नंबर पर आता है। प्लास्टिक बैग्स बहुत से जहरीले केमिकल्स से मिल कर बनते हैं जिनसे स्वास्थ्य और पर्यावरण को हानि पहुंचती है। प्लास्टिक उत्पादों में उपयोग हुए केमिकल्स से बहुत सी बीमारियां और विभिन्न प्रकार के डिस्ऑडर्स हो जाते हैं। प्लास्टिक मानव जीवन और पर्यावरण ही नहीं अपितु जानवरों और समुद्री जीवन के लिए भी बेहद हानिकारक है।

हमारे यहां लोगों द्वारा अभी भी जैविक और प्लास्टिक कूड़े को अलग नहीं किया जाता जिसको सड़क पर घूम रहे मवेशी खाकर बीमार पड़ते हैं। हम पॉलिथिन के बैग में सामान लाते हैं,  और फिर उसे कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं। इसे  छुट्टा मवेशी खा जाते हैं, इससे उनकी मौत तक हो जाती है। इस तरह हम अप्रत्यक्ष रूप से ‘गौ-हत्या’ के दोषी हो जाते हैं। प्लास्टिक उत्पाद मिट्टी की उर्वरता को भी प्रभावित करते हैं, और धरती को बंजर बनाते हैं। शोधों से यह बात सामने आई है कि प्लास्टिक के बने पात्र को हम जितना सुलभ और आसानी से इस्तेमाल में लाते हैं, वह उसी तरह से है। इससे समुद्री जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि नदियों के माध्यम से ढेर सारा प्लास्टिक कचरा समुद्रों में सीधे पहुंचता है, और समुद्री जीवों के लिए जानलेवा साबित होता है। जब पृथ्वी पर प्लास्टिक उत्पाद नहीं थे तब भी हमारा जीवन आराम से बीतता था।
प्लास्टिक को जीवन शैली से बाहर करना हमारे लिए बहुत मुश्किल नहीं है। बस अपनी आदतों में थोड़ा परिवर्तन करना होगा। गोस्वामी तुलसीदास के कथन ‘क्षिति, जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व सेबना शरीरा’ के आज भी गहरे निहितार्थ हैं। सिर्फ  मानव शरीर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण पृथ्वी इन पांचों घटकों  के संयोग से बनी है। हमारी पुरातन व्यवस्था में मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल होता था। हम प्रकृति के अनुकूल निर्मिंत हुई वस्तुओं का उपभोग करते थे। कहीं कोई नुकसान नहीं और पूरी तरह इकोफ्रेंडली उत्पाद। ऐसे में जरूरी है कि जितना हो सके उतना प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग करना कम कर दें। इसी में सबकी भलाई है।
प्लास्टिक हमारी इकॉनमी की सेहत के लिए भी अच्छी नहीं है। प्लास्टिक  उत्पादों की वजह से ग्राम्य परिवेश में रोजगार खत्म हुए हैं। कुम्हारों की रोजी-रोटी मारी गई है। प्लास्टिक के बने कप-प्लेट्स ने कुल्हड़ों को बाजार से बाहर कर दिया क्योंकि कुल्हड़ों के मुकाबले प्लास्टिक के कप अपेक्षाकृत ज्यादा सस्ते थे। लेकिन व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्लास्टिक कप का इस्तेमाल काफी महंगा सौदा है। प्लास्टिक कप की कीमत हमारी और आपकी बहुमूल्य जिंदगी से ज्यादा है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली समेत देश के सभी राज्यों में पॉलीथिन और प्लास्टिक से बनी सामग्रियों पर रोक लगाने का ऐलान किया जा चुका है। इसका उल्लंघन करने पर जुर्माने और कैद की सजा का प्रावधान भी है।
लेकिन सारे नियम-कानून सिर्फ  किताबी बनकर रह गए हैं क्योंकि हमारी आदतें नहीं बदल रही और इस वजह से प्लास्टिक का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। मार्किट से खरीददारी करते वक्त प्लास्टिक थैले हमारी पहली पसंद हैं। हममें कितने लोग हैं जो हाथ में झोला लेकर बाजार खरीददारी करने जा रहे हैं? हालात इतने बदतर हैं कि जानते हुए कि प्लास्टिक थैले में खाद्य उत्पाद सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, हम चाय, दूध, खाद्य तेल और दूसरे तरह के तरल पदार्थ जो दैनिक जीवन में उपयोग होते हैं, उन्हें भी बिना आपत्ति प्लास्टिक पैकेट्स में ले लेते हैं। हमें समझ लेना होगा कि जागरूकता ही हमारी सुरक्षा है, और हमें इसे वक्त रहते स्वीकार लेना चाहिए। कई बार सरकारी प्रयासों से ज्यादा व्यक्तिगत प्रयास से बड़ा परिवर्तन होता है। बेहद जरूरी है कि इसके प्रति जनमानस को जागरूक किया जाए क्योंकि इस मुहिम में जनमानस की भागीदारी जरूरी है। सतर्कता और जागरूकता दो बेहद जरूरी चीजें हैं, जिनसे प्लास्टिक उत्पादों के खिलाफ हम सभी जंग जीत सकते हैं।
प्लास्टिक के खतरों को समझते हुए हमें इसके पूर्ण निषेध के लिए संकल्पित होना होगा। प्लास्टिक थैलों का कंजप्शन कम होगा तो धीरे-धीरे हम भविष्य में आने वाले खतरों को भी कुछ हद तक टाल सकते हैं। पूरी इंसानियत को प्रकृति के लिए प्लास्टिक कचरों के ठोस निस्तारण हेतु लंबी लड़ाई लड़नी होगी नहीं तो बढ़ता पर्यावरण संकट हमारी पूरी पीढ़ी को निगल जाएगा। हमारी संस्कृति प्रकृति को पूजने वाली रही है। हमारे ढेरों व्रत-त्यौहार पेड़ की पूजा के बिना संपन्न नहीं होते। यहां तक कि सुबह उठने के बाद धरती पर पैर रखने के पूर्व हम धरती मां से इस कृत्य के लिए माफी मांगते हैं, और उनकी स्तुति करते हैं। हमारे इतने समृद्ध संस्कार होने के बाद सवाल ही नहीं उठता कि हम प्रकृति का दोहन या शोषण करें। ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ से छुटकारा हमारेलिए मुश्किल काम नहीं। सिंगल यूज प्लास्टिक के विरु द्ध यह लड़ाई हम सबकी लड़ाई है। आइए, संकल्प लें कि हम आज से प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग किसी भी रूप में नहीं करेंगे।

सतीश उपाध्याय
दिल्ली भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment