ह्यूस्टन : भारत को बदल सकते हैं मोदी
टेक्सॉस फुटबॉल स्टेडियम में पचास हजार से ज्यादा भारतीय-अमेरिकियों की भीड़ को भला कौन अनदेखा कर सकता था?
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डोनाल्ड ट्रंप तो नहीं। चुनावी वर्ष सामने होने की सूरत में तो कतई नहीं। सो, वे ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में शामिल होने पहुंच गए। भारत के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में यह घोषणा करने के लिए कि विश्व के दोनों सबसे बड़े लोकतंत्र साझे मूल्यों को भविष्य में परस्पर मिलकर मुखर करेंगे। एक व्यक्ति के इर्द गिर्द सिमटे इस मेगा शो में भारतीय-टेक्सन जश्न पूरे रंग में था। लेकिन इसके साथ कुछ राजनीतिक सवाल भी बाबस्ता थे। संसद के मजबूत समर्थन से मोदी द्वारा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और कश्मीर क्षेत्र खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्र को प्राप्त विशेष दरजा समाप्त करने के मुश्किल से दो महीने बाद हुए इस कार्यक्रम में ट्रंप ने संकेत देना बेहतर समझा कि वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ शाना-बशाना साथ खड़े हैं।
राष्ट्रपति के यह कहने पर आयोजन स्थल करतल ध्वनियों से गूंज उठा कि वे भारत को ‘कट्टर इस्लामी आतंकवाद’ के खतरे से बचाने में सहयोग देने को संकल्पबद्ध हैं। दूसरी तरफ मोदी की इस घोषणा को भी उपस्थित जनसमूह ने ध्यान से सुना कि उनका ‘नया भारत’ नौकरियों के सृजन में अड़चन बने करों और खुले में शौच से निजात पाने की डगर पर है। ‘नया भारत’ 350,000 फर्जी कंपनियों और सरकार को चूना लगाने में इस्तेमाल 80 मिलियन फर्जी नामों से छुटकारा पाने की तरफ अग्रसर है। और अनुच्छेद 370 का खात्मा तो किया ही जा चुका है। मोदी ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को विकास और समान अधिकारों से वंचित कर रखा था।’ उन्होंने कहा, ‘आतंक और आतंकवाद को हवा देने वाली ताकतें इस स्थिति का बेजा फायदा उठा रही थीं।’ असहमत होने को सहमत या असहमति में बेहतर क्या है?
हम यहां आपको इस हफ्ते के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मुद्दों को लेकर सबसे तीखे उन तकरे को समझाना चाहते हैं, जो नई और परिचित, दोनों आवाजों से मुखरित किए गए। तो आइए, शुरू करते हैं मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान से जिसके छद्म समर्थन से उग्रवादी गुट कश्मीर में दशकों से कहर बरपाते रहे हैं। मोदी ने इस्लामाबाद को परोक्ष चुनौती दे डाली: ‘भारत द्वारा अपनी सीमाओं के भीतर कार्रवाइयों से कुछ लोग, जो अपने देश को संभाल नही पा रहे, अहसज हैं। इन लोगों ने भारत के प्रति घृणा फैलाने को अपना राजनीतिक एजेंडा ही बना लिया है।’ कश्मीर, दक्षिण-एशिया का ऐसा क्षेत्र जहां भारत और पाकिस्तान के बीच अनेक जंग लड़ी जा चुकी हैं, अरसे से रिस्ते घाव जैसा स्थान बना रहा है। दोनों देश, दोनों ही परमाणु ताकत से संपन्न, एक दूसरे पर इस क्षेत्र को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे हैं। दोनों, मोदी 2014 में सत्तारूढ़ होने और इमरान खान पिछले वर्ष पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद, नेताओं ने शुरू -शुरू में कुछ सौहार्द जरूर दिखाया लेकिन जल्द ही हिंसा ने उसकी हवा निकाल दी। मोदी के लिए हद हो चुकी जैसी स्थिति हो गई। सो, उन्होंने अपने प्रयासों में कसर नहीं छोड़ी। लगता है कि इस क्रम में मानवाधिकारों का भी हनन हुआ।
हजारों कश्मीरी राजनेताओं और कारोबारियों को हिरासत में ले लिया गया है, इंटरनेट संपर्क और मोबाइल फोन लाइनों को काट दिया गया है, और भारत के सुरक्षा बल बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए हैं। इसके बावजूद, कश्मीर के हालात के मद्देनजर खूनखराबा ज्यादा नहीं हुआ। भारत का कहना है कि संचार व्यवस्था सोशल मीडिया पर माहौल बनाकर हिंसा भड़काने को टालने के लिए ठप की गई है। कश्मीर इस बात की मिसाल है कि मोदी को ऐसे सम्मान देकर ट्रंप प्रशासन ने मानवाधिकारों के मुद्दों से कैसे आंखें मूंद लीं। अमेरिका का मानवाधिकारों के लिए आग्रह कहीं गायब-सा हो गया। मोदी, जिन्होंने अपने संबोधन में भारत की विविधता का बखान किया, ने अपने हिंदू राष्ट्रवादी आधार को नियंत्रण में रखने की मंशा नहीं दिखाई। विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ते उनके देश के लिए यह रवैया खतरनाक साबित हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या मोदी के पास कश्मीर में कोई और विकल्प था? और सवाल यह भी कि क्या एक अस्थायी अनुच्छेद के खात्मे से भविष्य में बेहतर स्थितियां उभर सकेंगी? स्थानीय भ्रष्ट संभ्रांतों पर शिंकजा कसा जा सकेगा? मुझे लगता है कि ऐसा संभव है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मुझे बताया, ‘हमने एक अस्थायी संवैधानिक प्रावधान से निजात पा ली है, जिसने विकास की गति को धीमा कर रखा था, अलगाव को बढ़ाया, आतंकवाद को पोसा और इस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए समस्या पैदा कर दी थी।’ कहा, ‘हम जानते हैं कि बीते सत्तर साल कुछ न हुआ। इस दौरान हम रक्तरंजित रहे। इस स्थिति में कुछ अच्छे की उम्मीद करना निरा उन्माद ही होता।’ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया जताई है। उन्होंने कहा कि मोदी का सहानुभूति जताना किसी फासीवादी नेता जैसा रवैया है। इमरान के मुताबिक, मोदी ‘नरसंहार’ करा सकते हैं। हालांकि यह अति प्रतिक्रिया है। परमाणु युद्ध की संभावना जताना भी नासमझी है। इमरान के रुख और प्रतिक्रिया से लगता है जैसे वे धमकाने पर उतर आए हों। पाकिस्तान नाजी जर्मनी जैसे रुख से इतना चिंतित है, तो इस्रयल से बात शुरू कर सकता था। क्या पाकिस्तान कश्मीर का वास्तव में समाधान चाहता है, जहां के लिए ज्यादा सैन्य बजट रखा जाना तार्किक है, तथा क्या कभी पूरी पारदर्शिता से बता सकता है कि उसकी खुफिया सेवाओं ने विभिन्न इस्लामी हिंसक तरीके इस्तेमाल करने छोड़ दिए हैं? इन सवालों के उत्तर अभी तक नहीं मिले हैं।
अमेरिका के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सवाल हैं। इसलिए कि वह अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी पर गंभीरता से विचार कर रहा है। अब ट्रंप के लिए पाकिस्तान से समर्थन पाने में उलझन होगी, बल्कि पाकिस्तान इस कार्य में अड़चन पैदा करने की कोशिश कर सकता है। बहरहाल, नरेन्द्र मोदी कश्मीर की स्वायत्तता खत्म करने संबंधी अपने कदम को पीछे नहीं हटाएंगे। स्वायत्तता का वह दौर तो भारत के इतिहास में समा चुका है। ट्रंप और मोदी, दोनों ताकतवर नेता हैं, मीडिया-सेवी राजनेता हैं। लेकिन दोनों एक जैसे नहीं हैं। मोदी सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जिन्होंने अपने दम पर अपना भविष्य लिखा है। वह संतुलित मनोभावों वाले त्यागी नेता हैं, जिनमें व्यघ्रता नहीं है। ट्रंप चंचल स्वभाव वाले, अपने अहं की संतुष्टि चाहने वाले नेता हैं। मैं शर्तिया कह सकता हूं कि मोदी भारत का कायाल्प कर सकते हैं, और नया कश्मीर क्षेत्र भी इसमें शामिल होगा, जिसका कायाकल्प होना भी तय है।
(साभार न्यूयार्क टाइम्स)
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