हाउडी मोदी : और कद्दावर हुआ भारत

Last Updated 24 Sep 2019 03:13:12 AM IST

नरेन्द्र मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं, उन्होंने विदेश यात्राओं में भारतवंशियों को संबोधित करने की अलग किस्म की सुविचारित आकषर्क और प्रभावी परंपरा को आगे बढ़ाया है।


हाउडी मोदी : और कद्दावर हुआ भारत

मोदी एवं उनके रणनीतिकारों ने सिद्ध किया  है कि इन सभाओं का भारतवंशियों को भारत के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ने, विदेश नीति में भारत के दूत के रूप में उनका उपयोग करने तथा देश और नेता की छवि को उच्चतम सोपान पर ले जाने के रूप में सफल उपयोग किया जा सकता है। इसके माध्यम से अपनी बात मेजबान देश एवं दुनिया तक बेहतर तरीके से पहुंचाई जाती है। इन कसौटियों पर यदि अमेरिका के टेक्सास के ह्यूस्टन शहर में संपन्न हाउडी मोदी कार्यक्रम का मूल्यांकन करें तो यह भारत की दृष्टि से सफल कहा जा सकता है।
22 सितम्बर का दिन इस मायने में ऐतिहासिक था कि किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसके पूर्व किसी विदेशी नेता के साथ इतनी बड़ी सभा को संबोधित नहीं किया था। सभा में डोनाल्ड ट्रंप का आना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कद और साख के साथ इसका भी प्रमाण है कि कई मामलों में मतभेद के बावूजद अमेरिका भारत को पूरा महत्त्व देता है। सभा समाप्त होने के बाद जिस तरह दोनों नेता एक दूसरे का हाथ पकड़कर ऊपर उठाए लंबे समय तक आरएनजी स्टेडियम का चक्कर लगाकर लोगों का अभिवादन करते रहे, उसका व्यापक संदेश अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया में गया होगा।

अमेरिकी भारतीय इतनी बड़ी सभा अपने प्रधानमंत्री के लिए आयोजित कर सकते हैं तो यह इनके बढ़े हुए प्रभाव का प्रमाण है। कह सकते हैं कि ट्रंप अपने चुनाव को देखते हुए भारतीय अमेरिकियों का मत पाने की लालच में वहां पहुंचे थे। इसे सच मान भी लें तो भी यह भारतवंशियों की ताकत को ही साबित करता है। यह भी न भूलें कि वहां अमेरिका के 50 से ज्यादा सांसद तथा कई राज्यों के गवर्नर उपस्थित थे। रिपब्लिकन भी थे और डेमोक्रेट भी। अनेक महत्त्वपूर्ण अमेरिकी नागरिक आए थे जिनका वहां सत्ता और कारोबार पर प्रभाव है। अमेरिका में इतना महत्त्व किस देश और नेता को मिलता है?मोदी के नेतृत्व में आर्थिक-सामाजिक विकास की आंकड़ों के साथ बात करते हुए ट्रंप द्वारा भारत को विश्व की प्रमुख शक्ति मानना भी सामान्य बात नहीं है। महाशक्ति का नेता भारत को प्रमाण पत्र देता है तो उसका असर पूरी दुनिया में होता है। इस समय अमेरिका में दुनिया भर के नेता संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा सम्मेलन के लिए आ रहे हैं। उसमें अमेरिका और भारत के नेताओं की एकजुटता का असर लंबे समय तक रहना निश्चित है। पाकिस्तान की निराशाजनक प्रतिक्रिया हमें तुरंत मिल गई क्योंकि उनके नेता इमरान खान तथा हमारे नेता के आवभगत में जमीन और आसमान का अंतर था।
ठीक है कि ट्रंप ने वहां भारत में अपने गुणवत्तापूर्ण सामग्री के निर्यात की उम्मीद प्रकट की, लेकिन जिन लोगों ने सोचा था कि वे वहां कुछ ऐसा बोल देंगे जिससे मोदी के लिए विकट स्थिति पैदा हो जाएगी उन्हें निराशा हाथ लगी है। ट्रंप ने वही कहा जो विवेकशील भारतीय सुनना चाहते थे। जब उन्होंने कहा कि अमेरिका कट्टर इस्लामी आतंकवाद से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है, और हम मिलकर लड़ेंगे तो पूरा स्टेडियम देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा और लोगों ने स्टैंडिंग ओवेशन दिया। उनके कहने कि सीमा सुरक्षा को लेकर भारत की चिंताओं को समझते हैं, का अर्थ समझना कठिन नहीं है। हमारी सीमा सुरक्षा की समस्या सबसे ज्यादा इस समय किस देश के साथ है? ट्रंप का भाषण निश्चय ही पाकिस्तान के लिए तत्काल बड़ा धक्का है। मोदी का भाषण बहुत हद तक भारत के वर्तमान और भविष्य पर केंद्रित रहा। हाउडी मोदी यानी आप कैसे हैं मोदी का जवाब उन्होंने यह कहकर दिया कि भारत में सब अच्छा है। फिर भारत की दस भाषाओं में इसे बोलकर अमेरिकियों और दुनिया को बता दिया कि इतनी विविध भाषाओं वाले हमारे देश में एकता इसीलिए कायम है, क्योंकि निरंकुश एकरूपता का हमारा चरित्र नहीं। मोदी ने अपनी ही परंपरा का पालन करते हुए भारत में आ रहे बदलावों को रेखांकित कर स्थापित किया कि न्यू इंडिया रूपाकार ले रहा है। अर्थव्यवस्था को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए हैं, भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्या किया गया है, किस तरह कंपनियों के लिए काम करना आसान हुआ है, कर संग्रह को आसान बनाया गया है आदि की चर्चा इसलिए आवश्यक थी ताकि भारत में अपनी क्षमता का उपयोग करने पर विचार कर रहे भारतवंशियों तथा विदेशियों को निवेश करने की प्रेरणा मिले।  भारत अपने से ही प्रतिस्पर्धा कर रहा है, वर्तमान भारत चुनौतियों को टालता नहीं, उनका सामना करता है, हम 5 खरब की अर्थव्यवस्था बनाने को लेकर संकल्पित हैं आदि बातें भारत का कद उठाने वाली ही तो थीं। इसी सदंर्भ में उन्होंने अपनी एक कविता की पंक्ति सुनाई, वो जो मुश्किलों का अंबार है, वही तो मेरे हौंसलों की मीनार है।’ बाजार पूंजीवाद के दौर में अपने देश की बेहतर ब्रांडिंग करना नेता की मुख्य भूमिका में शामिल है। मोदी ने इस भूमिका का ठीक प्रकार से निर्वहन किया।
किंतु लोगों की उत्कंठा अनुच्छेद 370 हटाने, जम्मू-कश्मीर, आतंकवाद एवं पाकिस्तान पर सुनने की थी। यह इसलिए भी जरूरी था कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान ने जो रवैया अपनाया है, उसमें भारतीय कूटनीति का मुख्य फोकस अभी यही है। अमेरिकियों और दुनिया को भी इसके बारे में संदेश देना अत्यावश्यक था। मोदी ने जैसे ही 370 को फेयरवेल देने की बात की लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। यह विचार करने की बात है कि जब उन्होंने यह कहा कि इस अनुच्छेद को खत्म करने के बाद आम कश्मीरियों को भी वे सारे अधिकार मिल गए हैं, जो इस अनुच्छेद के चलते उन्हें प्राप्त नहीं थे तो ट्रंप एवं अन्य प्रभावी अमेरिकियों पर इसका क्या असर हुआ होगा? इसके बाद उन्होंने बिना पाकिस्तान का नाम लिए प्रश्न उठाया कि चाहे 26 नवम्बर का मुंबई हमला हो या 11 सितम्बर को न्यूयॉर्क हमला उसके स्रोत कहां मिलते हैं? फिर उनका स्वर दृढ़ था कि समय आ गया है कि जब आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी। इसमें उन्होंने रणनीति से यह भी जोड़ दिया कि राष्ट्रपति ट्रंप आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से खड़े हैं, और इसके लिए उनका स्टैंडिंग ओवेशन भी करवा दिया। यह ट्रंप को प्रकारांतर से बांधने की रणनीति थी और पाकिस्तान को संदेश कि कश्मीर और आतंकवाद पर अमेरिका आपके साथ नहीं।  यह लड़ाई हमें ही लड़नी है, पर ऐसी भंगिमाओं का अपना अलग असर होता है।

अवधेश कुमार


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