चुनाव का ऐलान
चुनाव आयोग ने हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए कार्यक्रम की घोषणा कर दी है।
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21 अक्टूबर को मतदान और 24 अक्टूबर को मतगणना होगी। लेकिन उसने झारखंड विधानसभा के लिए चुनाव की घोषणा नहीं की है। कारण स्पष्ट है। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो रहा है, जबकि हरियाणा एवं महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल नवम्बर में ही खत्म हो रहा था।
झारखंड में समय-पूर्व विधानसभा चुनाव तभी हो सकता था, जब वहां की सरकार विधानसभा भंग कर चुनाव के लिए सिफारिश करती। इसके अभाव में चुनाव आयोग कुछ नहीं कर सकता था। हां, अगर कोई एक साथ चुनाव कराने के सिद्धांत पर इसकी अपेक्षा करता है, तो यह उसी स्थिति में संभव होगा, जब सभी राजनीतिक दल पर इस पर सहमत हो जाएं। बहरहाल, अब सबकी निगाहें हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर होंगी।
चूंकि लोक सभा चुनाव के बाद यह पहला चुनाव होगा, इसलिए हर कोई यह देखना चाहेगा कि मोदी सरकार की लोकप्रियता कितनी है, खासकर अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों और तीन तलाक को खत्म करने के बाद। हालांकि इसे पूरी तरह से मोदी सरकार की लोकप्रियता की कसौटी नहीं माना जा सकता, क्योंकि राज्य विधानसभा चुनाव और लोक सभा चुनाव में वोट के लिए मतदाताओं का मापदंड एक ही नहीं होता।
दूसरी ओर लोक सभा चुनाव बाद राहुल गांधी द्वारा पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद कांग्रेस का कमान संभाल चुकीं सोनिया गांधी के नेतृत्व पर भी लोगों का ध्यान होगा। यह स्पष्ट है कि इन चुनाव में राष्ट्रीय और स्थानीय-दोनों ही मुद्दे होंगे। हरियाणा और महाराष्ट्र की परिस्थितियां किंचित भिन्न हैं, फिर भी कृषि, रोजगार, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे सामान्य रूप से वहां होंगे। देखना है कि मुद्दों की राजनीति में कौन किसको घेर पाता है?
फिलहाल भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि उसने दोनों ही राज्यों में नेतृत्व विकसित कर लिया है-हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर और महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस के रूप में। विपक्ष के साथ यह समस्या होगी कि उसका चेहरा कौन होगा? ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने में विपक्ष सफल हो पाता है या नहीं? जो भी हो, इस चुनाव का राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ेगा। साथ ही आने वाले महीनों में झारखंड और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।
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