विचारधारा की खोज में झल्लन
आज झल्लन हमें कुछ चिंतातुर कुछ चिंतनमग्न दिखा। हमें यह कुछ अटपटा सा लगा और हमारे मन में तुरंत प्रश्न जगा,‘काहे झल्लन, आज तूने न कोई खुशखबरी सुनाई, न कोई शुभकामनाएं लाया, न कोई नयी बधाई दी, न कोई किस्सा सुनाया।
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तेरी तबीयत ठीक तो है न?’ झल्लन गंभीर मुद्रा में बोला, ‘क्या कहें ददाजू, अपुन गहन चिंतन कर रहे हैं, सोच रहे हैं किसी नये विचार की खोज कर डाले सो उसी में लग रहे हैं।’ हमें अचम्भा हुआ कि अच्छे-खासे झल्लन को ये क्या हो गया। हमने कहा,‘फालतू में दिमाग मत खपा, जाकर किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा।’
झल्लन ने अपनी धीर-गंभीर नजर हमसे मिलाई और बड़ी गंभीर मुद्रा में अपनी बात हमें समझाई,‘ददाजू, हम देश की चिंता में मरे जा रहे हैं और आप हमारा मजाक उड़ा रहे हैं। हमें लग रहा है कि देश विचारशून्य हो गया है, इसलिए हम सोचे किसी नये विचार की रचना कर लें और उसे विचारधारा बनाकर देश की राजनीति में स्थापित कर दें।’ हमने अपनी हंसी रोकर नकली गंभीरता ओढ़ ली और अपनी नकली चिंता झल्लन से जोड़ ली, ‘लगता है तू राजनीति में उतर रहा है, तभी यह सब प्रपंच कर रहा है। देश में अनगिनत विचारधाराएं हैं, अनगिनत दल हैं इनमें से किसी एक को चुन ले और उसी के साथ राजनीति के तार बुन ले।’
झल्लन बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, लगता है आप सठिया गये हो तभी ऐसी बात कह रहे हो और हमें गलत सलाह दे रहे हो। बताओ ऐसा कौन सा दल है जो हमें रास भी आये और जो हमें पचा भी पाये।’ हमने कहा, ‘इन दिनों राष्ट्रवादी भाजपा की डुगडुगी बज रही है, सत्ता में उसी की दुकान सज रही है। तू भी उसी की सदस्यता ले ले, बहती गंगा में हाथ धो ले।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम आपका सम्मान करते हैं इसका मतलब ये नहीं कि आप हमारा अपमान करते रहो और जो हम नहीं कर सकते वो करने को कहो। राष्ट्रवादी हम भी हैं पर सोचिए जब साधु-साध्वियों के फूहड़ बोल-बयान हमारी खोपड़ी में दंड पेलेंगे तो हम कैसे चुप रहेंगे, कैसे उन्हें झेलेंगे?’
हमने कहा,‘अगर तुझे सत्ताधारी दल रास नहीं आता तो विपक्षी धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस में शामिल क्यों नहीं हो जाता?’ झल्लन बोला, ‘जो पार्टी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा की बात तो दूर, अपनी गति की धारा भी खो रही हो, अपने गले में खुदकुशी का फंदा डाल रही हो, आप चाहते हो हम उसी को पाल लें, खुदकुशी का फंदा अपने गले में डाल लें?’हमने कहा,‘भई, देश में यादवों की एक समाजवादी पार्टी भी है तो समाजवादी होकर उसी में शामिल हो ले और अपनी राजनीति का खेत बो ले।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, जिस पार्टी से समाजवाद अपनी जान बचाकर भाग रहा हो, इधर-उधर पनाह मांग रहा हो आप चाहते हैं हम उस पार्टी से लिपट जाएं और बिना कुछ किये ही निपट जाएं?’ झल्लन अपनी शंकाएं आगे बढ़ा रहा था और हमें उसकी बातों में मजा आ रहा था।
हमने कहा, ‘सुना है तू दलितों का हमसफर है, उनका समर्थक है, प्रबल पक्षधर है तो फिर बहनजी की दलित पार्टी में शामिल हो जा। जब बहनजी की सत्ता आएगी तो तेरा मनोरथ पूरा हो जाएगा, मंत्री या विधायक बन जाएगा।’ झल्लन झल्लाया, ‘आपसे ये उम्मीद नहीं थी कि आप हमसे ये कहोगे, हमारे दलित प्रेम को यूं लांछित करोगे। वहां से टिकट खरीदने के पैसे होते तो अब तक हम मकान मालिक होते, यहां वहां नहीं सोते। दूसरे, जिस पार्टी में खुद दलित हलकान हो रहे हों उस पार्टी में हम क्यों जाएंगे, क्यों अपना आत्मसम्मान गंवाएंगे?’
हमने कहा, ‘तो ऐसा कर लालू के लाल से हाथ मिला ले, अपना विचार और अपनी राजनीति वहीं आजमां ले।’ झल्लन बोला,‘जहां लाल को खुद अपने लाले पड़े हैं वहां जाने की सलाह दे रहे हैं, लगता है आप हमारे मजे ले रहे हैं।’ हम बोले, ‘तो एक काम कर, तू प. बंगाल उड़ जा और दीदी के विचार से जुड़ जा।’ झल्लन बोला, ‘फिर वही बात ददाजू, जब दीदी को खुद अपने विचार का पता नहीं है तो हम वहां क्या विचार लेकर जाएंगे, विचार के नाम पर जो थोड़े बहुत रहे-बचे हैं हम उससे भी लुट जाएंगे।’
हमने मुस्कराते हुए कहा,‘तू राष्ट्रवादी नहीं हो सकता, धर्मनिरपेक्षतावादी नहीं हो सकता, समाजवादी नहीं हो सकता, बहनजीवादी नहीं हो सकता, लालूवादी नहीं हो सकता, दीदीवादी नहीं हो सकता तो इस लोकतंत्र में क्या करेगा? हमारा लोकतंत्र तो इन्हीं के सहारे चल रहा है, इन्हीं के सहारे चलेगा।’ झल्लन हमें टोकते हुए बोला,‘ददाजू, लोकतंत्र चले या न चले पर हम इनके साथ नहीं जाएंगे। लोकतंत्र चलाने के लिए हम तो अपनी नयी विचारधारा लाएंगे, अपनी विचारधारा पर नयी पार्टी बनाएंगे और जब पार्टी बन जाएगी तभी राजनीति में आएंगे।’ हमें लगा शेखचिल्लियों की जमात में एक शेखचिल्ली और जुड़ गया है। हमने कहा,‘लगा रह झल्लन, तू असफल हुआ तो योगेन्द्र यादव हो जाएगा और सफल हुआ तो केजरीवाल हो जाएगा, पर देश जहां था वहीं रहेगा इसका कुछ नहीं हो पाएगा।’
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