स्टेडियम हो या मंदिर पाबंदी, एकदम गलत

Last Updated 22 Sep 2019 05:29:18 AM IST

तेहरान में फुटबॉल प्रेमी महिला साहर खोदायरी की आत्महत्या के बाद फीफा अध्यक्ष ने ईरान सरकार से अपील की है कि वह स्टेडियम में महिलाओं को फुटबॉल देखने पर लगी पाबंदी खत्म कर दे।


स्टेडियम हो या मंदिर पाबंदी, एकदम गलत

पिछले ही महीने साहर ने खुद पर पेट्रोल छिड़कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। वह फुटबॉल की फैन थी और वेश बदलकर स्टेडियम में मैच देखने आई थी। ईरान में महिलाओं को स्टेडियम में फुटबॉल मैच देखने पर पाबंदी है। साहर को सुरक्षाकर्मिंयों ने पकड़ लिया और उसे अदालत में पेश किया गया। उसे छह महीने की सजा सुनाई जा सकती थी। इस भय से साहर ने यह कदम उठाया। वह 90 फीसद जल गई और इसके बाद एक हफ्ते में उसने दम तोड़ दिया।

अब दुनिया भर से ईरान पर दबाव बनाया जा रहा है। फीफा ने खुद इस मामले में ईरान सरकार से अपील की है। ईरान में 1979 से महिलाओं के स्टेडियम में मैच देखने पर प्रतिबंध है। इस्लामिक क्रांति के बाद यह प्रतिबंध लगाया गया था। वैसे वहां विदेशी महिलाओं को कुछ मैच देखने की इजाजत है। 1997 में कुछ दर्शकों ने पुलिस बैरियर्स को तोड़कर ईरान के नेशनल स्टेडियम में घुसने की कोशिश की थी। तब 1998 के र्वल्ड कप में ईरानी टीम को चुना गया था और वे लोग इसका जश्न मनाना चाहते थे। अप्रैल 2006 में ईरान के राष्ट्रपति ने इस प्रतिबंध को हटाने का ऐलान किया था, लेकिन एक महीने में ही दोबारा यह पाबंदी लगा दी गई। दिलचस्प यह है कि ईरान र्वल्ड कप में कई बार खेल चुका है मगर उसके महिला फैन्स इन मैचों को स्टेडियम में नहीं देख पातीं। फीफा भी इस भेदभाव पर मुंह बंद किए रहता है और लगातार ईरान को खेल के लिए आमंत्रित करता है। यों किसी अन्य देश में लगी पाबंदी पर हम कितना विरोध प्रदर्शन करते हैं। अपने यहां स्टेडियम में मैच देखने पर तो पाबंदी नहीं, हां- मंदिर में घुसने पर जरूर प्रतिबंध लगा रहा है।

केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के घुसने पर पाबंदी रही है। 10 से 50 साल के बीच की औरतें वहां पूजा अर्चना करने नहीं जा सकती थीं। 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस पाबंदी को हटाया तो, लेकिन अब भी मंदिर के कपाट खुलने पर औरतों को वहां घुसने नहीं दिया जाता। कुछेक औरतें घुसीं, तो रात के अंधेरे में। बाद में सबको बताया कि उन्होंने ऐसी हिमाकत की। एक औरत से तो उसके ससुरालियों ने इस बात पर नाता ही तोड़ दिया। कुल मिलाकर केरल के अति साक्षर, अति प्रगतिशील समाज ने अदालत के आदेश की अनदेखी कर दी। वैसे भारत के कई मंदिरों में औरतों के प्रवेश पर पाबंदी है। इनमें से एक हरियाणा के पेहोवा में स्थित कार्तिकेय का मंदिर भी है।

कुछ मस्जिदों में महिलाएं नमाज अदा नहीं कर सकतीं, और रोमन कैथोलिक औरतें पादरी नहीं बन सकतीं। इन परंपराओं पर सवाल किए जाएंगे तो धर्म की सत्ता की चूलें हिलने लगेंगी। यह बात ईरान पर भी लागू होती है, भारत पर भी। प्रतिबंध भेदभाव का ही दूसरा रूप है। ईरान में यह प्रत्यक्ष दिखाई देता है, अपने यहां अप्रत्यक्ष रूप से। यह अप्रत्यक्ष पाबंदी ही है कि देर रात तक बाहर मत रहो। चुस्त कपड़े मत पहनो। अपनी पसंद का जीवनसाथी चुन लिया तो ऑनर किलिंग के लिए तैयार रहो। घर में रहो और नौकरी के सपने मत देखो। ईरान में कानूनन कुछ प्रतिबंधों पर अमल किया जाता है। वहां औरतें इन पाबंदियों के खत्म होने का इंतजार करते बैठी हैं। जिद कर रही हैं। कहीं यह जिद सुनी जाती है, कहीं सबरीमाला की तरह रात का इंतजार किया जाता है।

माशा


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