हॉकी : राष्ट्रीय टीम को आसानी

Last Updated 19 Sep 2019 03:10:40 AM IST

लुसाने में पिछले दिनों टोक्यो ओलंपिक के क्वालिफाइंग दौर के ड्रा पड़ने के बाद भारत की ओलंपिक में खेलने की राह थोड़ी आसान हो गई है।




हॉकी : राष्ट्रीय टीम को आसानी

इसकी वजह विश्व की पांचवें नंबर की टीम भारत को इस क्वालिफाइंग दौर में 22वीं रैंकिंग की रूसी टीम से खेलना है। रूस क्वालिफायर में आखिरी समय में शामिल की गई टीम है। असल में पहले मिस्र की टीम शामिल थी पर उसने आखिरी समय में क्वालिफायर में भाग लेने से मना कर दिया, जिसकी वजह से रूस को भाग लेने का मौका मिल गया। रूस की गिनती कमजोर टीमों में की जाती है और भारतीय टीम को अब ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, नीदरलैंड, अज्रेटीना और बेल्जियम वाले समूह में रखा जाता है। इसलिए कोई अनहोनी नहीं हुई तो भारतीय हॉकी टीम को टोक्यो ओलंपिक का टिकट मिलना तय है।
भारत के पक्ष में जाने वाली बात यह भी है कि वह अपने घर यानी भुवनेर में एक और दो नवम्बर को खेलेगा। भारत का क्वालिफाइंग मैच घर में खेलना पहले से तय था क्योंकि इसके प्रारूप के अनुसार बेहतर रैंकिंग वाली टीम के घर में मैच खेला जाना था। भारत टॉप पांच टीमों में शामिल है और ड्रा में उन्हें निचली रैंकिंग की टीमों से खेलना है। ड्रा से पहले यह कयास लगाए जा रहे थे कि भारत का पाकिस्तान से मुकाबला हो सकता है। अगर ऐसा होता तो राह टफ हो सकती थी। हां, पाकिस्तान की राह बेहद मुश्किल हो गई है। वह यदि 2016 के रियो ओलंपिक की तरह टोक्यो में भी खेलती नजर नहीं आए तो हैरत नहीं होगी क्योंकि उसे क्वालिफाइंग मुकाबला नीदरलैंड से खेलना है।

पाकिस्तान बड़ा उलटफेर करके ही अपनी राह बना सकती है। लेकिन टीम आजक ल जिस तरह से खेल रही है, उससे इसकी संभावनाएं कम ही दिखती हैं। इस क्वालिफाइंग दौर में दोनों टीमों के बीच दो मैच खेला जाना भी भारत के पक्ष में जाने वाली बात है। टीम यदि किसी वजह से खराब प्रदर्शन कर बैठती है तो वापसी के लिए मौका रहेगा। मगर रूसी टीम के पिछले प्रदर्शनों को देखकर इस तरह की कोई संभावना दिखती नहीं है। भारत और रूस का एफआईएच सीरीज फाइनल में इस साल जून में मुकाबला हुआ था, जिसे भारत ने 10-0 से जीत लिया था। इससे पहले 2008 के बीजिंग ओलंपिक के क्वालिफाइंग दौर में भारत का रूस से मुकाबला हुआ था और उस समय भी भारत ने 8-0 से विजय प्राप्त की थी। परंतु उस साल भारत को ओलंपिक का टिकट कटाने के लिए ब्रिटेन को फतह करना था और ऐसा नहीं कर पाने की वजह से भारत पहली बार ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर सका था और इसे भारतीय हॉकी इतिहास का काला दिन कहा गया था। पर इस बार रूस पर जीत ही टोक्यो का टिकट कटाएगी, इसलिए 2008 जैसा कोई जोखिम नहीं है। भारत ने यदि पिछले एशियाई खेलों में ढिलाई नहीं दिखाई होती तो शायद भारत को यह सब कवायद नहीं करनी पड़ती। टीम एफआईएच सीरीज फाइनल में विजेता बन चुकी है। लेकिन इसके सेमीफाइनल में जापान से पहला गोल खा जाने और फिर दो-दो की बराबरी हो जाने से एक बार तो लगा था कि टीम में अभी बहुत सुधार की जरूरत है। लेकिन भारतीय टीम ने मैच को 7-2 से जीतकर और फिर फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को सहज अंदाज में हराकर अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी। इसी तरह पिछले दिनों टोक्यो में ओलंपिक टेस्ट ईवेंट में भारत का न्यूजीलैंड को 5-0 से हराकर खिताब जीतने से लगता है कि टीम की स्कोरिंग क्षमता सुधरी है और मौजूदा समय में यह खूबी अच्छे प्रदर्शन के लिए बेहद जरूरी है। यह सही है कि ओलंपिक एक अलग ही अंदाज वाला होता है। इसमें खेलते समय जरा भी ढिलाई कई बार भारी पड़ जाती है।
असल टीम को आमतौर पर एक दिन छोड़कर पांच छह मैच खेलने होते हैं और हर मैच में अधिकतम अंक हासिल करना टीम के बढ़ाव में मददगार होता है।  इसलिए टीम का एकजुट होना बहुत जरूरी है। कोच ग्राहम रीड इस सच से अच्छे से वाकिफ हैं। इसलिए उन्होंने खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार के साथ टीम में दोस्ताना माहौल बनाने पर खास ध्यान दिया है। इसके अलावा वह हमेशा हर खिलाड़ी के लिए उपलब्ध रहते हैं। भारतीय टीम में पिछले कुछ समय से एक कमजोरी दिखने लगी थी कि हमारे खिलाड़ी एक स्थान पर खड़े होकर गेंद आने का इंतजार करते थे। लेकिन ग्राहम रीड ने इस पर काम किया और एफआईएच सीरीज फाइनल के मैचों में भारतीय खिलाड़ी आगे बढ़कर गेंद पकड़ते नजर आए। इसकी वजह से भारतीय हमलों में ज्यादा पैनापन दिखा। पर सवाल यह है कि क्या यह सुधार भारतीय टीम को टोक्यो ओलंपिक में पोडियम तक पहुंचा पाएंगे? यह तो समय ही बताएगा, पर इतना जरूर है कि टीम की तैयारियों की दिशा सही है।

मनोज चतुर्वेदी


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