ओडिशा : ’मो सरकार‘ बनाम गांधी

Last Updated 19 Sep 2019 03:23:23 AM IST

सुशासन के मामले में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इतिहास रच दिया है।


ओडिशा : ’मो सरकार‘ बनाम गांधी

उन्होंने 2018 में क्रांतिकारी सुझाव दिया था कि महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिवस पर संविधान की प्रस्तावना में अहिंसा शब्द जोड़ा जाना चाहिए। जोरदार शब्दों में कहा कि ऐसा किया जाना मौजूदा पीढ़ी को समझाने के लिए बेहद जरूरी है कि अहिंसा के बल पर ही घृणा और धर्माधता को शिकस्त दी जा सकती है, लोगों को गरीबी के दलदल से निकाला जा सकता है, और सामूहिक जीवन के तमाम हिस्सों में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
पिछले लोक सभा चुनाव में ओडिशा में अपनी पार्टी-बीजू जनता दल-की टिकट पर राज्य की लोक सभा सीटों में से 33 प्रतिशत पर महिला प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने का उन्होंने साहसी और युगांतकारी फैसला किया। उनके फैसले में महात्मा गांधी की दृष्टि की झलक मिलती है, जो कहते थे कि विधायिका में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को शामिल किए जाने से बेहतर सुशासन सुनिश्चित किया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं से पार पाते हुए लाखों लोगों का बेशकीमती जीवन बचाने में पटनायक का शानदार रिकॉर्ड दुनिया भर में सराहा गया है। ओडिशा में साल दर साल कहर ढाने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बरक्स सुशासन के महत्त्व को उन्होंने मुखर किया है।

बेहतर शासन और इसे लोगों के लिए सार्थक बनाने के अपने अनथक प्रयासों के क्रम वह ‘मो सरकार’ (मेरी सरकार) को कार्यान्वित करने में जुटे हैं। देश में यह अपनी तरह की पहल है। इसमें महात्मा गांधी के दृष्टिकोण को तरजीह मिली है ताकि सुनिश्चित हो कि लोगों को लक्षित करके सरकारी मशीनरी प्रभावी तरीके से उनकी सेवा करे। यह कार्यक्रम पांच टी’ज पर आधारित है। ये पांच टी’ज हैं-टेक्नोल्ॉजी (तकनीक), ट्रांसपेरेंसी (पारदर्शिता), टीम स्प्रिट (सहयोगी भाव), टाइमली कंपलीशन (समयबद्ध समापन); और ट्रांसफोरमेशन (कायाकल्प)। इसमें एक विधिक औपचारिक सरकार की प्रक्रिया के ऊपर नागरिकों की भलाई और जरूरतों को तरजीह दी गई है। तात्पर्य यह कि सरकार का कामकाज नागरिकों की संतुष्टि के मद्देनजर संचालित होगा। पांच टी’ज के प्रभारी सचिव कार्तिकेयन पांडियन स्पष्ट करते हैं कि ‘मो सरकार’ का अर्थ है कि सरकार लोगों को सेवाएं मुहैया कराएगी जो दिनोंदिन सुधार के बजाय एक तय समय सीमा के भीतर उनका कायाकल्प करेंगी। नागरिक अपनी समस्याओं के निवारण के लिए सरकारी मशीनरी तक पहुंचने के लिए हलकान रहते हैं। उनके कायाकल्प से उनकी परेशानियों को काफूर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
‘मो सरकार’ कार्यक्रम का कार्यान्वयन महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर से आरंभ होगा। इसके तहत बल दिया जाएगा कि सरकारी कर्मचारी जनता का सेवक होता है। मुख्यमंत्री के सवाल, कि ‘क्या हम जानते हैं कि थानों में अपनी समस्याएं लेकर पहुंचे लोगों के साथ कैसा बर्ताव होता है?’, से ही लोगों के प्रति उनकी चिंता का पता चल जाता है। उन्हें यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि पुलिस के पास अपनी समस्याओं का समाधान कराने पहुंचे लोगों की समस्याओं का समाधान होना तो दूर बल्कि उन्हें इधर से उधर भटकना पड़ जाता है। पटनायक पूरे विास के साथ कहते हैं कि ‘मो सरकार’ योजना के तहत ‘हम चाहते हैं कि ऐसा न होने पाए बल्कि समूची प्रणाली का ही कायाकल्प हो ताकि लोगों को भटकना न पड़े। ‘लोगों को हमारे पीछे-पीछे नहीं आना पड़ेगा बल्कि हम उनकी शिकायतों के पीछे चलेंगे। देखेंगे कि उनकी शिकायतों को थाने में किस तरह प्राप्त किया गया और उन पर कार्रवाई किस तरह से की गई।’ ‘मो सरकार’ पोर्टल पर थाने पहुंचने वाले लोगों के नाम और फोन नंबर दर्ज किए जाएंगे और हर हफ्ते मुख्यमंत्री स्वयं कम से कम दस लोगों से फोन पर बात करेंगे। जानने का प्रयास करेंगे कि उनकी शिकायत पर सरकारी अधिकारियों का क्या रवैया रहा, उनके साथ कैसा बर्ताव किया गया और उनकी शिकायत किस हद दूर हुई। इसी प्रकार से अन्य मंत्री और उच्च अधिकारी भी लोगों से संपर्क करके वस्तुस्थिति की जानकारी लेंगे। जो अधिकारी अच्छे से जनता की शिकायतों का निवारण करेंगे और जनता से अच्छा बर्ताव करेंगे उन्हें प्रशस्ति दी जाएगी। कोताही दिखाने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाएगा। लोगों के साथ सम्मानजनक व्यवहार और उनकी शिकायतों के पेशेवराना और मानवीय अंदाज में निवारण के लिए सुशासन के पांच टी’ज को अपनाया जाएगा। यह संयोग ही है कि ‘मो सरकार’ को उन महात्मा गांधी के जन्म दिन से आरंभ किया जा रहा है, जो कहते थे कि पुलिस को आम जन के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए और चाहते थे कि पुलिस बल में मानवीय पुट होना ही चाहिए। 1916 में गांधी जी ने लिखा था : ‘यदि आप पुलिसकर्मी हैं, तो रित लेने से बचना चाहिए। गरीबों को टरकाना नहीं चाहिए और उनके साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। आपको लोगों का स्वामी नहीं बल्कि सेवक समझना चाहिए। यह आपका कर्त्तव्य है कि उनकी परेशानियों का समाधान करें।’
एक सितम्बर, 1940 को ‘हरिजन’ में प्रकाशित अपने लेख ‘माई आइडिया ऑफ अ पुलिस फोर्स’ में महात्मा गांधी ने लिखा था :‘मेरी सोच की पुलिस, आज जैसी है वैसी पुलिस से भिन्न होगी..वह जनता की स्वामी नहीं, बल्कि सेवक होगी। लोग मन से उसका सहयोग करने को तत्पर होंगे। जनता और पुलिस परस्पर मिल कर दरपेश अड़चनों और परेशानियों का समाधान करेंगे। पुलिस के पास कुछ सख्ती बरतने के अधिकार तो होंगे लेकिन वह प्राय: इन्हें इस्तेमाल करने से बचेगी। सच तो यह है कि पुलिसकर्मी सही मायनों में समाज सुधारक होंगे’। तीन दिसम्बर, 1947 को जनरल करियप्पा से बातचीत में महात्मा गांधी ने खासी संवेदनशीलता दिखाते हुए कहा था, ‘..पुलिसकर्मी का फर्ज है कि जातीय और सांप्रदायिक आग्रहों से ऊपर रहें। उन्हें बहादुरी से देश की सेवा करनी चाहिए।’ ‘मो सरकार’ के तहत गांधी के दृष्टिकोण को मुखर किए जाने के प्रयास को हर हाल में पूरे मन से समर्थन मिलना चाहिए। इससे सरकार लोगों के प्रति ज्यादा से ज्यादा संवेदनशील और जवाबदेह होगी। लोगों की अपेक्षाओं और जरूरतों के प्रति ज्यादा से ज्यादा संवेदनशील हो सकेगी। महात्मा गांधी कहते थे, ‘..सच्चा लोकतंत्र वही है, जो लोगों के कल्याण को तरजीह दे।’
(लेखक बीजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

एस. एन. साहू


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