बतंगड़ बेतुक : पाकिस्तान जाना चाहता है झल्लन

Last Updated 15 Sep 2019 06:16:16 AM IST

झल्लन हमें देखते ही बोला, ‘ददाजू, किसी तरह हमारा एक काम कराइए, कोई जुगाड़ लगाकर हमें पाकिस्तान भिजवाइए।’


बतंगड़ बेतुक : पाकिस्तान जाना चाहता है झल्लन

हमने झल्लन की ओर नजर उठाई तो उसकी मुद्रा कहीं से भी मजाकिया नजर नहीं आयी। हमने कहा, ‘अभी तक तो तू अच्छा-भला था ये दिमागी बुखार कहां से उठा लाया, पाकिस्तान जाने का खयाल कहां से ले आया?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम बहुत चिंतन-मनन किये फिर सोचे कि पाकिस्तान जायें, शांति-सुलह का एक मसौदा साथ ले जायें, वहां सबको समझाएं और ये जो किचर-किच सालों से चली आ रही है उसे बातचीत से निपटाएं।’
जिस दिन झल्लन गंभीर दिखता था उस दिन हमारी गंभीरता रुआंसी हो जाती थी, सारी समझदारी सो जाती थी। हमने पूछा, ‘क्या मसौदा ले जाएगा, किससे बात करेगा, किसे दिखाएगा, किसको क्या समझाएगा?’ झल्लन ने पहले अपना सर खुजाया फिर हमें समझाया, ‘सुनो ददाजू, मसौदे का क्या है वो तो हमारे दिमाग में लिखा है। यह कि दुश्मनी ठानने से कोई बात नहीं बनेगी, दुश्मनी से तनातनी बढ़ेगी, तनातनी से जंग की आशंका बढ़ेगी और जंग हुई तो इधर भी बुरा करेगी और उधर भी बुरा करेगी।’ ‘वाह, वाह झल्लन,’ हमने कहा, ‘तूने तो कमाल कर दिया, गजब मसौदा तैयार कर दिया। अब तक यह विचार किसी के दिमाग में आया ही नहीं था, शांति का इतना मनोहर मसौदा किसी ने बनाया ही नहीं था। तेरी बात सुनते ही पाकिस्तान तेरे गले झूल जाएगा, अपनी सारी दुश्मनी भूल जाएगा, फिर हिंदुस्तान भी तुझे गले लगाएगा और शांति का जश्न मनाएगा।

ओम शांति, शांति, शांति।’ झल्लन बोला, ‘हम आपको अपने मन की बात बता रहे हैं और आप हमारा मजाक उड़ा रहे हैं। आप चाहते हैं कि हम हिंदुस्तान-पाकिस्तान को लड़ जाने दें और दोनों को मिट जाने दें।’ हमने झल्लन की गंभीरता देखी तो जो ठहाका फूट रहा था उसे भीतर ही दबा गये, जो कहना चाहते थे उसे पचा गये। हमने पहले झल्लन की तारीफ की फिर उससे हमदर्दी प्रकट की, ‘भई, मजाक नहीं कर रहे हैं कुछ समझा रहे हैं तो कुछ समझ रहे हैं। हम भी कब चाहते हैं कि एक पेट की पैदाइश दोनों मुल्क एक-दूसरे के घर में आग लगा डालें और अपनी-अपनी खुशहाली मिटा डालें। हम भी चाहते हैं कि दोनों के बीच शांति हो, प्यार-महोब्बत हो, दोनों अपने भेद-मतभेद दूर करें, दोनों मिलकर तरक्की की मंजिल तय करें।’ झल्लन मुस्कुराते हुए बोला, ‘यही तो, हम भी तो यही कह रहे हैं, आप ही इधर-उधर बह रहे हैं। जनता यहां भी शांति चाहती है, जनता वहां भी शांति चाहती है। जनता की बात दोनों मुल्कों के नेताओं को समझा दो, बस सारे झगड़े-टन्टे मिटा दो।’
हमने पूछा, ‘जनता की शांति का सपना तुझे कहां से आया, दोनों मुल्कों की जनता शांति चाहती है ये तुझे किसने बताया?’ झल्लन बोला, ‘यह तो सामान्य सी बात है ददाजू जिसे सभी पढ़े-लिखे समझदार विद्वान बार-बार कहते हैं। आप ही को कुछ नहीं पता, न जाने कौन सी दुनिया में रहते हैं।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, तू सीधा-सादा आदमी है जो हर उल्टी-सीधी बात पर ध्यान देता है, कोई कुछ भी आलतू-फालतू बोलता है तो तू सही मान लेता है।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आप कहना चाहते हैं कि जनता को शांति नहीं चाहिए, अपना सुख-चैन नहीं चाहिए?’ हमने कहा, ‘अगर जनता सचमुच शांति चाहती तो किसी भी मुल्क के हाकिम की हिम्मत नहीं होती कि वह लड़ाई की बात करता। लड़ाई की बात करने से पहले सौ बार सोचता, हजार बार डरता।’ झल्लन बोला, ‘लगता है ददाजू, आप उल्टी गंगा बहा रहे हैं। युद्ध नेता लोग चाहते हैं पर आप तोहमत जनता पर लगा रहे हैं।’ हमने कहा, ‘तूने कभी सोचा है कि नेता लोग बदला, लड़ाई जैसी बात बार-बार क्यों करते हैं और क्यों बार-बार युद्ध का हुंकारा भरते हैं।’ झल्लन बोला, ‘आप ही बताइए तो, जरा समझाइए तो।’ हमने कहा, ‘वे इसलिए करते हैं कि मूर्ख जनता खुश रहे और उनकी नेतागिरी सुरक्षित रहे। जब नेता युद्ध की रौ में होता है तो वह अपनी जनता की ही आवाज होता है। अगर किसी मुल्क की जनता सचमुच आतंक के खिलाफ हो जाये तो किस आतंकवादी की हिम्मत पड़ेगी कि वह कहीं कोई वारदात कर जाये। अगर किसी मुल्क की जनता सचमुच युद्ध के विरुद्ध हो जाये तो किस नेता की हिम्मत पड़ेगी कि वह युद्ध का नगाड़ा बजाए।’
झल्लन थोड़ा शंकाग्रस्त हुआ और हमसे मुखातिब हुआ, ‘आप कह रहे हैं जनता ही युद्ध चाहती है इसीलिए दोनों ओर के नेता एक-दूसरे को धमका रहे हैं, लगातार युद्ध की डुगडुगी बजा रहे हैं।’ हमने कहा, ‘नेता जनता की भावनाओं से पैदा होते हैं इसलिए वे वही कहते हैं जो जनता सुनना चाहती है, उसे वही स्वप्न दिखाते हैं जो वह देखना चाहती है।’ झल्लन  थोड़ा निराश होकर बोला, ‘तो हम मान लें कि युद्ध होकर रहेगा, विनाश का दरिया बहकर रहेगा। तब तो यह भी हारेगा और वह भी हारेगा।’ हमने कहा, ‘नहीं पता कौन जीतेगा कौन हारेगा मगर जो भीतर से खोखला हो, व्यवहार में दोगला हो और जहां जनता को भ्रष्ट-बेईमानी-विवेकहीन बनाने के अनुष्ठान चल रहे हों और जहां घर-घर में उन्मादी पल रहे हों, वह जरूर हारेगा।’

विभांशु दिव्याल


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