सरोकार : अधिकार चाहिए खैरात नहीं
हम खुश हैं कि सऊदी अरब में औरतों को अकेले ट्रैवल करने की इजाजत मिल गई है। भारत की तरफ से भी एक खबर है। अकेली महिला ट्रैवलर्स के लिए भारत नौवां सबसे असुरक्षित देश है।
सरोकार : अधिकार चाहिए खैरात नहीं |
फोर्ब्स की तरफ से एक पत्रकार दंपति ने यह सर्वेक्षण किया है। जिस दौर में अकेली महिला सैलानियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, उस दौर में उनकी सुरक्षा को लेकर दी जाने वाली चेतावनी कानों में घंटी बजाने जैसी है। हम फिर भी खुश हैं, चूंकि अपने यहां सऊदी जैसी पाबंदियां नहीं हैं। वहां औरतों को अपनी जिंदगी के अहम फैसले लेने के लिए किसी पुरुष संबंधी की मंजूरी की जरूरत होती है। अपने देश में सिर्फ प्रत्यक्ष तौर पर ऐसी इजाजत की जरूरत नहीं है। जीवन के बुनियादी निर्णय के लिए घर परिवार के बड़े बुजुगरे (अक्सर पुरु ष) के तथाकथित आशीर्वाद की जरूरत पड़ती है। यूं ही नहीं, ऑनर किलिंग पर लगातार कानून बनाने की वकालत की जा रही है। यहां बात अकेले ट्रैवल करने की निकली है।
पिछले साल के गूगल ट्रेंड से पता चलता है कि एक करोड़ से भी ज्यादा औरतों ने सोलो ट्रैवल के लिए तरह-तरह की साइट्स खंगाली थीं। पिंटरेस्ट का कहना है कि सोलो ट्रैवलिंग के विकल्प को तलाशने वाली महिलाओं की संख्या में साढ़े तीन सौ प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। औरतें मस्ती करने, बिजनेस टूर्स और अपने पारिवारिक कामों के लिए ट्रैवल करती हैं-बहुत बार अकेले। अकेले घूमने निकल पड़ना उनके लिए आसान हो रहा है। मुश्किल हो रहा है, स्टीरियोटाइप्स से बाहर निकलना। स्टीरियोटाइप यह है कि अकेली औरत को हम जीने नहीं देना चाहते। जजमेंटल हो जाते हैं। 2017 में हैदराबाद के एक होटल में नूपुर सारस्वत के साथ बदसलूकी की गई। नूपुर सिंगापुर से हैदराबाद एक कार्यक्रम के सिलसिले आई थीं। एक ऑनलाइन साइट से बुकिंग करने के बाद भारत आकर उन्हें पता चला कि होटल वाले सिंगल औरतों के लिए कमरे बुक नहीं करते। उन्हें होटल से बाहर निकाल दिया गया। होटल वाले लगातार यह कहते रहे कि अकेली औरतों के लिए यह इलाका सुरक्षित नहीं है, इसीलिए हम उन्हें कमरा नहीं देते। दूसरे शहर, दूसरे देश की बात छोड़ दी जाए-तो शहरों में अकेले निकलना भी सुरक्षित नहीं माना जाता। देर रात, सुनसान, अंधेरी सड़कों पर लड़कियां निकलने से कतराती हैं। शिल्पा फड़के, समीरा खान और शी रानाडे की एक किताब है ‘वाय लॉयटर’। इसमें पब्लिक स्पेस और जेंडर पर शोधपरक जानकारियां हैं। किताब वकालत करती है कि औरतों को यूं ही अकेले शहरों में घूमने निकल पड़ना चाहिए। इसी से पब्लिक स्पेसेज पर उनका दावा मजबूत होगा। पर यहां बात सऊदी से शुरू हुई थी।
सऊदी में औरतों के लिए बाहर निकल पड़ने का रास्ता साफ हुआ है। कुछ पारिवारिक मसलों के संबंध में भी आजादी मिली है-वे शादियों को रजिस्टर करा सकती हैं, तलाक ले सकती हैं। उन्हें पारिवारिक डॉक्यूमेंट्स जारी हो सकते हैं। लेकिन यह सब अधिकार के तौर पर नहीं मिला है-खैरात में मिला है। सऊदी अरब मानवाधिकारों के मामले में फिसड्डी देश है। इत्तेफाक ही है कि औरतों को ड्राइविंग की आजादी देने के कुछ ही दिन पहले महिला एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार कर लिया गया था। कस्टडी में उन पर होने वाले अत्याचार से साफ था कि आजादी को हक की तरह नहीं मांगा जाना चाहिए- वह खैरात में दी गई है। जब यह खैरात बंटनी बंद होगी, तभी असली आजादी मिल सकती है।
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