दखल : नगालैंड की दवा कश्मीर में जहर क्यों?

Last Updated 18 Aug 2019 05:51:21 AM IST

अचरज नहीं कि मोदी-शाह जोड़ी के संविधान की अनुच्छेद-370 को व्यावहारिक मानों में खत्म ही कर देने की धमक, सुदूर उत्तर-पूर्व के राज्यों में और खास तौर पर नगालैंड में सुनाई दी है।


दखल : नगालैंड की दवा कश्मीर में जहर क्यों?

बेशक, शेष भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण के कथित रूप से सरदार पटेल के अधूरे सपने को पूरा करने के दावे के साथ जम्मू-कश्मीर को विशेष दरजा देने वाली संविधान के उक्त अनुच्छेद को खत्म किए जाने और जम्मू-कश्मीर राज्य के ही तोड़े जाने तथा उसका दरजा राज्य से घटाकर केंद्र-शासित प्रदेश का किए जाने ने पूरे देश को चौंकाया है। जाहिर है कि इन कदमों के लिए इस अभागे राज्य पर पूरी तरह से लॉकडाउन थोपे जाने का देश भर ने ही नहीं, शेष दुनिया ने भी नोटिस लिया है।
बहरहाल, इस सब के संदर्भ में देश के दूसरे सिरे से आई एक खबर ने सब को और भी चौंकाया है। यह खबर, नगालैंड में तथा अन्य नगा आबादी वाले इलाकों में भी, 14 अगस्त को और नगा राष्ट्रीय झंडा ध्वज फहरा कर, बड़े पैमाने पर 73वां नगा स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने की थी। इस मौके पर हर जगह नगा राष्ट्रीय गीत भी गाया गया। बेशक, विभिन्न नगा संगठन हर साल ही यह ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाते आए हैं। 1947 में नगा विद्रोहियों ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी और उसी दिन को नगा स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। बहरहाल, जैसा कि अधिकांश खबरों में दर्ज किया गया है, इस साल जितने बड़े पैमाने पर और लोगों की जितनी बड़ी हिस्सेदारी के साथ यह दिन मनाया गया, वैसा पिछले अनेक वर्षो में नहीं हुआ था। इसके लिए यह एहसास भी जिम्मेदार था कि अनुच्छेद-370 को खत्म करने वाली मोदी सरकार से, नगा जन की स्वायत्तता तथा पहचान के लिए खतरा बढ़ गया है। तो क्या यह माना जाए कि जिस समय कश्मीर को एक तरह से कैद कर के, उस पर ‘एक विधान, एक निशान’ का आरएसएस का पुराना एजेंडा थोपा जा रहा है, ठीक उसी समय उत्तर-पूर्व में एकाधिक निशान का शोर जोर पकड़ रहा है। इसमें इतना और जोड़ दें कि कम से कम मौजूदा शासन ने नगालैंड के स्वतंत्र निशान के फहराए जाने का व्यावहारिक मानों में कोई विरोध नहीं किया था। हां! रस्मी तौर पर प्रशासन द्वारा आयोजकों को यहां-वहां सूचित जरूर कर दिया गया था कि यह राष्ट्र ध्वज नहीं है!

बहरहाल, मुद्दा सिर्फ यही नहीं है कि जिन्हें जम्मू-कश्मीर में अलग ‘निशान’ राष्ट्रीय एकीकरण में बहुत भारी बाधा लगता था, उन्हें नगालैंड के अलग निशान पर वैसी ही आपत्ति क्यों नहीं है? मुद्दा यह भी नहीं है कि नगा अलगाववादियों के साथ जो समझौता वार्ता रुक-रुक कर 22 बरस से चलती आ रही थी, और जिस वार्ता के सफलतापूर्वक नतीजे तक पहुंच जाने का ऐलान करते हुए, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, 2015 के अगस्त के महीने में स्वतंत्रता के नारे पर सशस्त्र लड़ाई चलाते आए, एनएससीएन (आइएम) ग्रुप के साथ, समझौते की रूपरेखा पर दस्तखत किए गए थे, उसमें अलग नगा ध्वज की नगा संगठनों को मांग को, जिसके माने जाने की इस बीच खबरें आई थीं, अंतत: स्वीकार भी किया जाएगा या नहीं! आखिरकार, मोदी राज की खास शैली में, जिसकी पहचान अति-केंद्रीयकृत तथा अपारदर्शी निर्णय प्रक्रियाओं से होती है, चार साल पहले धूम-धड़ाके के साथ हुए उक्त समझौते के ब्योरे, अब तक गोपनीय ही बने हुए हैं। और इसी शैली के एक और पक्ष के रूप में, जिसे मोदी राज की ‘निर्णायकर्ता’ के रूप में पेश किया जाता है, उक्त वार्ताओं में केंद्र सरकार के वार्ताकार, आर एन रवि को बाद में नगालैंड का राज्यपाल बनाकर ही बनाकर भेज दिया गया ताकि उक्त समझौते का नतीजे तक पहुंचना सुनिश्चित किया जा सके।
खैर, दर्ज करने वाली खास बात यह है कि केंद्र सरकार के कश्मीर धमाके के बाद, राज्यपाल की हैसियत से आर एन रवि को, भारत के स्वतंत्रता दिवस के अगले ही दिन, नगा जन को यह भरोसा दिलाना बहुत जरूरी लगा कि नगालैंड के विशेषाधिकारों को कमजोर किए जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। अनुच्छेद-370 के हटाए जाने के बाद, उत्तर-पूर्व के राज्यों को ऐसे ही अनेक विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद-371 (ए) के भी खत्म किए जाने की शंकाओं को दूर करने की कोशिश में उन्होंने कहा कि यह पवित्र वचन है जो भारत सरकार ने नगा जन को दिया है, और यह भी कि यह अनुच्छेद-370 की तरह ‘अस्थायी’ नहीं है। मोदी सरकार द्वारा बैठाए राज्यपाल के नाते, रवि ने अपने अभिनंदन समारोह में बेशक, इस तरह के दावे किए कि अनुच्छेद-370 और अनुच्छेद-371 (ए) में कोई समानता ही नहीं है, दोनों अनुच्छेदों के बीच समानता खोजने वाले या तो भ्रमवश ऐसा कर रहे हैं, या शरारतन ऐसा कर रहे हैं, आदि।
फिर भी, इसे कोई देखे बिना नहीं रह सकता था कि वार्ताकार से राज्यपाल बने रवि को, इसका खतरा नजर आ रहा था कि केंद्र का कश्मीर धमाका कहीं नगालैंड में बड़ी मेहनत के साथ बनी समझौते की सहमति पर पानी ही नहीं फेर दे। इस सिलसिले में उन्होंने यह रेखांकित करना भी जरूरी समझा कि, ‘इस समय हमारी जो वार्ताएं चल रही हैं उनमें भी, हम तो अनुच्छेद-371 (ए) जो देता है, उससे कुछ फालतू ही लाने की कोशिश कर रहे हैं और उसे कमजोर किए जाने का कोई सवाल नहीं है, बल्कि उसे और मजबूत करने का सवाल है।’
इस सब का अर्थ स्वत:स्पष्ट है। नगा समस्या के समाधान के लिए, जिसके लिए वार्ताओं में खुद आर एन रवि के अनुसार ज्यादातर महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल कर लिया गया है और प्रधानमंत्री तीन महीने में समझौता हुआ देखना चाहते हैं, नगाओं को विशेषाधिकार देने को, जिनमें ध्वज से लेकर पासपोर्ट तक की राष्ट्रीय निशानियों के मामले में विशेषाधिकार भी शामिल बताए जाते हैं, समाधान के एक जरूरी उपाय के रूप में देखा जा रहा है। जाहिर है कि इसके पीछे यह समझ भी होगी कि ऐसे निशानों को सबसे मनवाने की जिद के बजाए, एकीकरण के लिए संबंधित जनगण का विश्वास जीतना ज्यादा जरूरी है। और किसी भी जनगण का विश्वास उसके अधिकारों की समुचित सुरक्षा के जरिए, उसके लिए बराबरी तथा जरूरी स्वाधीनता सुनिश्चित कर के ही जीता जा सकता है। वास्तव में इस सच्चाई को समझने के लिए किसी बहुत भारी राजनीतिक दूरदर्शिता की भी जरूरत नहीं है पर जो स्वायत्तता नगालैंड के लिए अमृत है, जम्मू-कश्मीर के लिए जहर क्यों हो जाएगी?
बहरहाल, यह भारत में उत्तर सत्य युग है। इस कॉमनसेंस के तर्क का भी मोदी सरकार के लिए कोई अर्थ नहीं है। तर्क का अर्थ होता तो अमित शाह एक ही सांस में अनुच्छेद-370 को सारी बुराइयों की जड़ बताने के साथ ही संसद में यह ऐलान नहीं कर रहे होते कि देश के करीब आधा दर्जन राज्यों को कमोबेश वैसे ही विशेषाधिकार देने वाला अनुच्छेद-371 को, छुआ तक नहीं जाएगा। आखिर क्यों? क्योंकि देश के एकलौते मुस्लिम बहुल राज्य के लिए, मोदी राज दूसरे ही सिद्धांत पर चलता है, जहां केंद्रीयकरण ही एकीकरण है, और एकरूपता ही एकता है!

राजेंद्र शर्मा


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