बतंगड़ बेतुक : फुफकारती हुंकारती हमारी ये देशभक्ति

Last Updated 18 Aug 2019 05:43:34 AM IST

झल्लन ने हमें देखते ही टेर लगाई, ‘बधाई हो ददाजू!’ हमने पूछा, ‘काहे झल्लन, काहे मजे ले रहा है किस बात की बधाई दे रहा है?’ वह बोला, ‘क्या बात करते हो ददाजू, कश्मीर से कन्याकुमारी तक जन मन गया, लाल किले से लाल चौक तक झंडा फहर गया, बिना किसी बम-गोली के समारोह संपन्न हो गया तो देश के हर देशभक्त नागरिक को बधाई तो बनती है।


बतंगड़ बेतुक : फुफकारती हुंकारती हमारी ये देशभक्ति

आपको बधाई इसलिए कि आपकी भी देशभक्त नागरिकों में गिनती है।’
देशभक्ति के मुद्दे पर हमारे चिंतन और मनन दोनों ही उजड़ गये थे। उखड़े-उखड़े तो हम पहले से ही थे इस दौर में थोड़े और उखड़ गये थे। यह कैसा उत्सव था जो गहरी सुरक्षा के साये में मनाया जाये और जिस जनता के लिए उत्सव होता है वही उसमें भागीदारी न कर पाये? हम सोचते आये थे कि जन वह होता है जिसमें कोई किसी के आड़े नहीं आये, हर कोई उत्साह से भागीदारी करे और उल्लास से उत्सव मनाये। न किसी को विघ्न-बाधा का डर सताये न किसी के मन में असुरक्षा की आशंका आये। झल्लन ने हमें अनुत्तर और आत्ममग्न देखा और बोला, ‘काहे ददाजू, कहां खो लिये, हमारी बधाई भी नहीं लिये?’ हमने कहा, ‘क्या बताए झल्लन, देश में जो नजारा नजर आ रहा है उसे देखकर मन थोड़ा घबरा रहा है।’ फिर हम जो सोच रहे थे वह उस पर जता दिया, जो हमारे मन में उमड़-घुमड़ रहा था उसे बता दिया।

देश के लोग दो फाड़ हो गये थे और अपनी-अपनी पहचानें और अपने-अपने आग्रहों-दुराग्रहों के साथ 370 के इस पार या उस पार खड़े हो गये थे। जो इस पार खड़े थे वह उस पार को गरिया रहे थे और जो उस पार को खड़े थे वह इस पार को दोषी ठहरा रहे थे, लगातार किसी बड़ी अनहोनी की आशंका जता रहे थे। हमारे मन में डर जगा रहे थे। झल्लन बोला,‘आप तो नाहक परेशान हो रहे हैं, फालतू में चिंता-आशंकाओं का बोझ ढो रहे हैं। जिसे हटना था वह हट गयी जिसे मिटना था वह मिट गयी। ददाजू आप अपने मन की दुविधा मिटाइए, अपने भीतर की देशभक्ति को जगाइए और स्वतंत्रता दिवस निर्विघ्न मन गया इसकी खुशियां मनाइए।’ हमने कहा, ‘तू तो ऐसे कह रहा है जैसे हमारी देशभक्ति सो गयी हो या उसकी धार कुंद हो गयी हो। भई, हमारी देशभक्ति तो आठों पहर जगी रहती है, अपने करने के काम में लगी रहती है। हमारी देशभक्ति का संकट यह है कि वह खुशी मनाए तो किस बात पर मनाए न मनाए तो किस कारण न मनाए। हमारी देशभक्ति की यह दुविधा ही हमें परेशान कर रही है, वर्तमान पर सवाल उठा रही है और भविष्य को आशंकित कर रही है।’
झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आपकी देशभक्ति भी निराली है, देशभक्ति के रूप में आपने न जाने कौन सी बला पाली है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, तू इसे अला समझ या बला लेकिन जो खुशियां मना रहे हैं हम अपनी देशभक्ति के कारण न उनसे जुड़ पा रहे हैं और जो मातम की मुद्रा में हैं तथा विरोध और विद्रोह की चेतावनियां जारी कर रहे हैं न उनसे जुड़ पा रहे हैं। सच कहें तो हम अपने आपको कुछ निरुपाय-सा, कुछ असहाय-सा पा रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, देशभक्ति जैसी सरल चीज को आप खामखां इतनी जटिल बना रहे हैं। आपकी देशभक्ति में ऐसा क्या है, जो इन लोगों की तरफ नहीं मुड़ती और इनके ढोल-नगाड़ों से नहीं जुड़ती?’
हमने सोचा पता नहीं झल्लन हमारी बात का क्या अर्थ लगाएगा, समझ पाएगा या नहीं समझ पाएगा, पर हमने कहा, ‘झल्लन देशभक्ति चोला नहीं आत्मा होती है। यह चीखने-चिल्लाने में नहीं शिष्ट भाषा और व्यवहार में प्रकट होती है। खुद को बेहतर इंसान बनाना देशभक्ति है, दिलों की नफरत मिटाना देशभक्ति है, लोगों की इंसानियत जगाना देशभक्ति है। देशभक्ति है जाति, धर्म की कट्टरताओं से लड़ना, पारस्परिक सद्भाव पैदा करना, अंधआस्थाओं को त्यागना और विवेक को आगे रखना। देशभक्ति है अपने हर अहंकार को छोड़ना, दूसरों को भी अपने जैसा इंसान समझना, उन्हें समझना और उनका सम्मान करना। वह आग है देशभक्ति जिसमें निजी स्वार्थ जल जाते हैं, सब कुछ हड़प लेने के भाव गल जाते हैं, अन्याय के पहाड़ पिघल जाते हैं। देशभक्ति है उन्माद से बचना, इस पर नियंत्रण रखना। उन्माद इधर का हो या उधर का विनाशक टकराव की ओर ले जाएगा, हमारा सब कुछ बहा ले जाएगा। देशभक्ति सबके कल्याण की कामना है, सबसे जुड़ने की उदात्त भावना है, बेहतर भविष्य की संभावना है..।’
हम अपनी रौ में बहे जा रहे थे कि झल्लन ने मुंह बनाकर अपने दोनों हाथ कानों पर रख लिये। यह देख हम भी रुक लिये। झल्लन बोला,‘ददाजू, ऐसी देशभक्ति न 370 के उस पार दिखाई दे रही है न इस पार दिखाई दे रही है। यह आपकी निजी जागीर है इसे अपने पास रखिए और इसका स्वाद भी आप ही चखिए। आप बधाई स्वीकार करो या मत करो यह आपकी मर्जी मगर जो हमारी देशभक्ति है वह फुफकार रही है, देशभर में हुंकार रही है।’

विभांशु दिव्याल


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