सरोकार : एंटीबायोटिक्स बेअसर तो वहीं चरक के नुस्खे भरपूर
यकीनन खबर छोटी जरूर है लेकिन बेहद चिंताजनक है। बेहिसाब एंटीबायोटिक्स सेवन के चलते 60 फीसदी मरीजों पर प्राइमरी और सेकेंड्री लाइन के एंटीबायोटिक नाकाम हो रहे हैं।
![]() सरोकार : एंटीबायोटिक्स बेअसर तो वहीं चरक के नुस्खे भरपूर (प्रतिकात्मक चित्र) |
इतना ही नहीं, आईसीयू में भर्ती 80 फीसदी मरीजों पर 18 से 20 प्रकार के खास एंटीबायोटिक्स भी असर नहीं कर रहे। ये आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। इतना तो समझ आता है कि अब शुरु आती दौर में लिखी जाने वाली दवाएं मरीजों पर असर नहीं दिखाती हैं, जिसके चलते बहुतेरे चिकित्सक भी अक्सर एडवांस स्टेज की दवा शुरू में ही लिख देते हैं। बाद में इसके परिणाम घातक होते हैं। लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि सिरदर्द, पेटदर्द या बुखार होने पर बिना एक्सपर्ट की सलाह के कोई भी एंटीबायोटिक ले लेने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है। अक्सर बेवजह और लगातार सेवन से भी शरीर में मौजूद परजीवी सूक्ष्म जीव यानी माइक्रोब्स या बैक्टीरिया इनसे प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर खुद को बदल लेते हैं। नतीजा निकलता है कि दवा, केमिकल या संक्रमण हटाने वाले इलाज पर एंटीबायोटिक का असर या बिल्कुल नहीं या ना के बराबर हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मानता है कि बिना जरूरत के एंटीबायोटिक दवाओं से शरीर में इसका असर घटने लगता है।
दरअसल, एंटीबायोटिक्स को आम दवा समझने की भूल कर लोग बिना डॉक्टर की सलाह के दवा खरीद कर धड़ल्ले से उपयोग करते हैं। नतीजतन, इनसे बैक्टीरिया मरना तो दूर उल्टा एंटीबायोटिक खाकर और मजबूत हो जाते हैं। चालू भाषा में ज्यादा ढ़ीठ हो जाते हैं, और जिससे बीमारियां खतरनाक हो जाती हैं। वहीं आयुर्वेद में तमाम संभावनाओं के बावजूद लोगों की रु चि पैदा न होना या न करना भी चिंताजनक है। कई उदाहरण सामने हैं, जिनसे साबित होता है कि कि हमारी देशी जड़ी-बूटी से बने चरक के नुस्खे कई बार एलोपैथी के मुकाबले कारगर साबित हुए हैं। नहीं भूलना चाहिए चरक संहिता विश्व चिकित्सा विज्ञान का मुख्य आधार है। यही कारण है कि कई एलोपैथ डॉक्टर भी अब प्राकृतिक बैक्टीरिया रोधक क्षमता के नुस्खों का उपयोग बेझिझक करने लगे हैं। अक्टूबर, 2017 में इलाज की नई तकनीक और बाजार में मौजूद नई दवाओं के वैज्ञानिक तौर तरीकों पर दिल्ली में हुए दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आधुनिक चिकिसकों ने माना था कि कुछ बीमारियों में आयुर्वेद चिकित्सा ज्यादा कारगर है।
अब जो भी मौजूदा एंटीबायोटिक्स हैं, पूरी दुनिया की उन्हीं पर निर्भरता है। उस पर भी अंधाधुंध और हर रोग में धड़ल्ले से हो रहा उपयोग जहां उनके असर को दिनों दिन घटाता जा रहा है, वहीं मेडिकल एक्सपर्ट्स के सामने तमाम बीमारियों के इलाज में इन एंटीबायोटिक के आगे दूसरी दवाओं के असरहीन होते जाने से गंभीर और नई चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में भारत के सामने चुनौती से ज्यादा शानदार मौका है कि हम चरक संहिता और आयुर्वेद के जरिए वर्षो से प्रचलित पद्धति को नये, आधुनिक और असरदार रूप से सामने लाने की दिशा में काम करें और दुनिया भर में चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपना डंका बजवा सकें। कहना न होगा कि भले ही दुनिया भर के लिए जो एंटीबायोटिक चुनौती है, हमारी चरक संहिता में वर्णित जड़ी-बूटियों में बिना साइड इफेक्ट के वह बड़ा वरदान साबित होगा जो भारत को विश्व स्वास्थ्य गुरु और बड़ा बाजार बनाने के लिए भी नया रास्ता होगा।
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