भारत-पाकिस्तान : एक बदला हुआ खेल

Last Updated 09 Aug 2019 05:12:39 AM IST

एक बात तो है कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने से एक कहावत चरितार्थ हुई है और वह है ‘सौ सुनार की एक लुहार की।’


भारत-पाकिस्तान : एक बदला हुआ खेल

दूसरी तरफ पाकिस्तान ने व्यापारिक संबंधों को समाप्त कर के एवं कूटनीतिक संबंधों को कम कर के दूसरी कहावत को धन्य किया जो है ‘घर में नहीं हैं दाने अम्मा चली भुनाने।’ नरेन्द्र मोदी सरकार कोई नई सरकार के तौर पर सत्ता में अभी हाल में ही आयी हो ऐसा नहीं है। लगभग छह साल लग गए सरकार को यह निर्णय लेने में। ऐसा क्यों हुआ? इसे समझना होगा।

दशकों से खुद भाजपा की मांग रही कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाए, किन्तु सत्ता में रहते हुए एवं एक पूर्ण कार्यकाल के समाप्त होने के जोखिम होते हुए भी उसने यह कदम नहीं उठाया और दोबारा सत्ता में आते ही पहला बड़ा कदम धारा 370 को हटाने का लिया।  इसके कई प्रमुख कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है पाकिस्तान की खस्ताहाल एवं चरमारती हुई अर्थव्यवस्था। गौर करना होगा कि 2014 से आज तक पाकिस्तानी रुपये में साठ प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है, जबकि इस दौरान भारतीय रुपये में यह गिरावट मात्र 12 प्रतिशत ही रही है। इस वजह से पाकिस्तान में आम नागरिक का जीवन बहुत कष्ट में है। पेट्रोल के दाम आसमान को छू रहे हैं। अभी हाल में रोटी और नान के दामों तक में सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है पाकिस्तान की बदहाली का। पाकिस्तान के हुक्मरानो ने ही पाकिस्तान को बेच खाया। मनी लॉन्ड्रिंग के जरिये पैसा विदेश भेजा गया और पाक की अर्थव्यवस्था कमजोर होती गई। व्यापारिक क्षेत्र में भारत की तुलना पाक से करना बेमानी है।

हां, उसकी तुलना बांग्लादेश से की जा सकती है। अगर आप बांग्लादेश से पाकिस्तान की तुलना करें तो शायद आपको जानकार आश्चर्य होगा कि बांग्लादेश की जीडीपी पाकिस्तान से आगे निकल चुकी है। उसके विदेशी ऋण पाकिस्तान से आधे हैं। और विदेशी मुद्रा भण्डार पाकिस्तान से चार गुना है। अब ऐसी स्थिति में हमें पाकिस्तान की व्यापारिक रिश्ते तोड़ने की धमकी को कितना गंभीरता से लेना चाहिए; आप स्वयं निर्णय कर सकते हैं। इस साहसिक निर्णय को लेने का दूसरा कारण है विपक्ष का खासतौर पर कांग्रेस का कमजोर होना। जिस निर्णय का क्रेडिट नेहरू जी को दिया गया हो उसको वापिस लेने का निर्णय बिना कांग्रेस के विरोध के संभव ही नहीं था।

भारत कश्मीर को लेकर एक मकड़जाल में फंसा हुआ महसूस कर रहा था। सेना अपना बलिदान भी दे रही थी और कश्मीर का अलग झंडा और संविधान भी था। अलग संविधान से मतलब एकरूपता नहीं थी। इसी बीच वह समय आया, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता जैसी गंभीर बात इमरान खान के बहकावे में आ कर दी। यह ट्रम्प की चूक थी। अमेरिका का स्टैंड नहीं। इस बात से भारत की किरकिरी हुई क्योंकि यह तो एक कूटनीतिक पराजय जैसी घटना थी। अन्य कारणों में घाटी में ऑपरेशन ऑलआउट की सफलता भी रही।

पुलवामा और करगिल की घटनाएं बताती हैं कि यह सब पाकिस्तान द्वारा की गई कार्रवाई थी और इसके कुछ निहित उद्देश्य अवश्य ही रहे होंगे, जिनमें पाकिस्तान असफल रहा। मगर इस तरह की घटनाओं से कुछ-न-कुछ आर्थिक परेशानियों से हमें भी गुजरना पड़ा। मुख्यत: विदेशी निवेशकों की घबराहट से देसी निवेशकों के मन में भी शंकाएं उत्पन्न हो जाती हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत एक सहनशील देश रहा है। न इसने कभी किसी राष्ट्र पर आक्रमण किया और न ही किसी आतंकवादी घटनाओं में कभी भारत का हाथ रहा। भारत ने कभी किसी राष्ट्र के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। बांग्लादेश जैसा पड़ोसी राष्ट्र जिसे स्वतंत्रता भारत ने दिलवाई कभी भी भारत ने उस पर कोई दबाव नहीं रखा। हमेशा उसे बराबरी का दरजा दिया। अच्छे पड़ोसी की तरह रखा। मगर इन कारणों से भारत को एक सॉफ्ट राष्ट्र मान लिया गया। आज तक हमने सिर्फ  अपने प्रति आक्रमण का जवाब दिया, मगर अब जब आतंकवाद को सहते-सहते सब्र का प्याला भर गया तो आज भारत ने पाकिस्तान के सामने सवाल रख दिए हैं।

यह सवाल है पाकिस्तान के अस्तित्व का। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के सवाल। भारत ने स्टेट द्वारा प्रायोजित पाकिस्तानी आतंकवाद के छद्म आवरण को हटा दिया है। रही बात युद्ध की तो हम तैयार थे, करगिल के समय..तैयार थे पुलवामा के बाद ..तैयार हैं आज भी। आज तक पाकिस्तान ने बाउंसर फेंके और सोचा अब इमरान जैसा बॉलर आ गया है तो खुल कर गेंदबाजी की जाएगी। मगर मोदी जी ने बॉल हाथ में लेकर इमरान के हाथ में जैसे ही बल्ला दिया तो पता चला वह तो टेल एन्डर है। उसे बैटिंग नहीं आती। भारत अब अपनी विकेट बचाने वाला राष्ट्र नहीं रहा। आज तो वह अपनी तेज गेंदबाजी से दूसरे की विकेट उखाड़ने को तैयार है। यह बात पाकिस्तान को समझ लेनी चाहिए, यह दूसरी किस्म का खेल है।

आज पाकिस्तान को विचार करना चाहिए की वह क्या चाहता है? और यह कि उसका फायदा किसमें है? कश्मीर का मसला द्विपक्षीय था और भारत यह दृढ़ निश्चय कई बार दोहरा चुका है तो इमरान के पहले अमेरिका दौरे में ही तीसरे पक्ष की बात करना भारत को उकसाने के लिए ही था। भारत से कूटनीतिक रिश्ते समाप्त करने की राह पर जाते पाकिस्तान को सोचना होगा-समझना होगा और मानना होगा कि भारत से उसकी प्रतिस्पर्धा बेमानी है और यह उसके हित में ही होगा कि वह भारत से मधुर सम्बन्ध बनाए, आतंकवाद को पोषित करना बंद करे-निर्दोष जनता को कष्ट में न डाले। यदि वह ऐसा करेगा तो शायद वह भविष्य में उस बांग्लादेश को पछाड़ सके, जो कभी उसका हिस्सा रहा था। 

सिर्फ  एटम बम को साथ लिये घूमने और उसका राग अलापने से कुछ नहीं होगा। ऐसा कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने किसी अमेरिकी राजनयिक को करगिल युद्ध के दौरान कहा था, जब पाकिस्तान ने एटम बम की धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि मैं तो आधा हिन्दुस्तान दे दूंगा मगर पाकिस्तान कल सुबह का सूरज भी न देख पाएगा। आज शायद वह आधी रात का चन्द्रमा भी न देख पाए। यदि उसने कोई मूर्खतापूर्ण दु:साहस किया तो।

अनिल उपाध्याय


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