बतंगड़ बेतुक : उसका यह मार्मिक सुसाइड नोट
झल्लन हैरान-परेशान सा निकट आया और एक बड़ा सा कागज हमारी ओर बढ़ाया, बोला, ‘ददाजू, ये सुसाइड नोट पढ़ो।’ हमने आश्चर्य से पूछा, ‘तू सुसाइड कर रहा है झल्लन?’ वह लंबी सांस लेकर बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, हमने कौन किसी की भैंस खोल ली है जो हम सुसाइड करेंगे।’
![]() मार्मिक सुसाइड नोट (Symbolic photo) |
हमने हैरानी से पूछा, ‘तो फिर ये क्या कर रहा है, किसका सुसाइड नोट लिये फिर रहा है?’ झल्लन ने कागज हमारी ओर बढ़ा दिया, ‘देख लीजिए, खुद पढ़ लीजिए।’ हमने उत्सुकतावश कागज हाथ में लिया तो लगा जैसे यह कागज इतिहास का पन्ना हो जिसमें कुछ बन गया हो और कुछ अभी बनना हो। मगर हमारी कमजोर आंखों के आगे अक्षर धुंधलाने लगे बिना अर्थ दिये भरमाने लगे। हमने कागज उसे वापस किया और कहा, ‘तू ही पढ़ के बता किसने क्या किया है, सुसाइड नोट में क्या लिख दिया है।’
झल्लन पढ़ने लगा, ‘मैं समूची आत्ममुग्धता के साथ आत्मपीड़ित, आत्मशंकित, आत्मधिक्कृत और आत्मग्लानि महसूस कर रही हूं। इसलिए ये सुसाइड नोट लिख रही हूं। मैं चीखी-चिल्लाई, मैंने कानून-विधान की दुहाई-फिराई, इतिहास की बात उठाई, पुराने कसम-वादों की याद दिलाई, डरावने खतरों की डरावनी आशंका जताई मगर फिर भी धारा के अपहरण-हत्या को नहीं रोक पायी, उसे नहीं बचा पायी।’
हमारे कान झनझना गये, दिमाग के तार तनतना गये। हमने हैरत से पूछा, ‘ये क्या है झल्लन?’ झल्लन बोला, ‘आप सुनिए तो ददाजू।’उसने कहा और आगे पढ़ने लगा, ‘मैंने संसद सर पर उठा ली, अपनी बहनों के साथ जितनी ताकत लगा सकती थी लगा ली,अपनी समूची विद्वता जगा ली पर सब व्यर्थ हो गया, भारी अनर्थ हो गया और धारा के साथ जो नहीं होना चाहिए था वो हो गया।’ हमारे दिमाग के कपाट थोड़े से खुलने लगे, अंदर के अंडबंड विचार जगने लगे-जब इतने दिन से सुगबुगाहट हो रही थी, कहीं गोली चल रही थी कहीं हत्या हो रही थी, नफरत हर जगह अपने बीज बो रही थी तब तू क्यों सो रही थी? जब सत्ता तेरे हाथ में थी, तेरी सहेलियों की ताकत तेरे साथ में थी तब तूने ऐसा कुछ क्यों नहीं किया जिससे ये दिन नहीं देखना पड़ता और तुझे ये खत नहीं लिखना पड़ता?’
झल्लन ने आगे पढ़ना शुरू किया, ‘अगर मैं एक धारा को नहीं बचा सकती, धारा को बचाने के लिए संसद को नहीं समझा सकती, खुद कोई रास्ता नहीं बना सकती तो जो अब कर रही हूं वह न करूं तो और क्या करूं? देश बौरा गया है, धारा की हत्या के समर्थन में आ गया है। सब जगह जश्न मनाये जा रहे हैं जो मुझे भीतर-ही-भीतर खाये जा रहे हैं।’ हमने सोचा कि जो बेचारी धारा लगातार कुटती आ रही थी, अपनों और परायों दोनों के हाथों लुटती आ रही थी, न शांति पैदा कर पा रही थी न सद्भाव जगा कर पा रही थी, न भविष्य की कोई उम्मीद बना पा रही थी न लोगों को कोई राह दिखा पा रही थी, यहां और वहां के बीच न कोई पुल बना पा रही थी तो ऐसी धारा का क्या रहना और क्या मिटना। अगर तुझमें माद्दा होता तो तू कोई ठोस काम करती, अपनी पराजय पर ये बेहूदा चिट्ठी न लिखती।
झल्लन ने सुसाइड नोट आगे पढ़ना शुरू किया, ‘मेरे लिए शर्म की बात यह है, जब मैंने चिल्ला-चिल्लाकर कहा कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर को बर्बाद कर दिया है, खत्म कर दिया है, तबाह कर दिया है तो मेरे घर में ही बगावत हो गयी और मेरी एक पूरी पीढ़ी ही दुश्मन सरकार के साथ हो गयी।’ झल्लन पढ़ते-पढ़ते रुका तो हमारा दिमाग कौंधा-अगर तूने पहले सोच-विचार किया होता तो तेरा ये हाल नहीं हुआ होता। तू न इधर का विश्वास प्राप्त कर रही थी, न उधर का विश्वास प्राप्त कर रही थी। तू तो बस एक ही काम कर रही थी कि धारा के भीतर जो भी हिंसक, विघटक, विध्वंसक हो रहा था उसका दोष सीधे अपनी दुश्मन सरकार पर मढ़ रही थी, दोष मढ़ने के नये-नये बहाने गढ़ रही थी। तूने कब सोचा कि तू भी कुछ करे, लोगों के दिल मिलाये और उनके घाव भरे। तू तो ओछी राजनीति को अपनी गोद में पाल रही थी, आग में घी डाल रही थी, अब तेरी बगल में कौन रुकेगा, तेरा यह रंडवा राग कौन सुनेगा।
झल्लन ने आगे पढ़ा, ‘ऐसी हालत में मैं सोच-समझकर सुसाइड कर रही हूं और सुसाइड का दोष सरकार पर धर रही हूं।’ हमने पूछा, ‘तू ये सुसाइड नोट कहां पा गया, ये तेरे हाथ में कैसे आ गया?’ वह बोला, ‘क्या ददाजू, क्या करते हो, कौन सी दुनिया में रहते हो, ये तो पूरे देश में पहुंच गया है, घर-घर बंट गया है। आप चाहें तो एक कॉपी आप भी रख लीजिए ताकि बिसर न जावे, सनद रहे और वक्त जरूरत काम आवे।’ हमने उठते-उठते पूछा, ‘इस सुसाइड नोट पर हस्ताक्षर किसके हैं?’वह बोला, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हस्ताक्षर तो साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं, सपा जैसे कुछ और भी हस्ताक्षर हैं जो अभी थोड़ा मोड़-घुमाव ले रहे हैं।’
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