वैदेशिक : चीनी रुख के मायने

Last Updated 11 Aug 2019 12:16:03 AM IST

अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनियंग ने 6 अगस्त को दो बयान जारी किए।


वैदेशिक : चीनी रुख के मायने

एक बयान में तो चीन ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताते हुए इसे फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच का विवादित मुद्दा बताया। चीन ने अपील की कि दोनों देशों को क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए अपने विवादों का बातचीत और परामर्श के जरिए शांतिपूर्ण समाधान तलाशना चाहिए। चीन का दूसरा बयान ज्यादा अहम था। इसमें उसने अक्साई चीन का हवाला देते हुए कहा चीन-भारत सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में चीनी क्षेत्र को भारत में मिलाने की भारत में शामिल करने की मंशा का हमेशा विरोध करता रहा है। अक्साई चिन से मतलब भारत और चीन के बीच विवादित पश्चिमी सरहदी इलाके से है। चीन ने अपने इस बयान में आगे यह जोड़ा कि ‘हम भारत से आग्रह करते हैं कि सीमा प्रश्न के संबंध में वह शब्दों और कर्मो में विवेक बरते, दोनों पक्षों के बीच संपन्न प्रासंगिक समझौतों का सख्ती से पालन करे और आगे कोई भी ऐसा कदम उठाने से बचे जो सीमा प्रश्न को और जटिल कर सकता है।’

गौरतलब है कि 1962 में भारत और चीन युद्धक्षेत्र में एक दूसरे का सामना कर चुके हैं और उसके बाद से अक्साई चिन के इलाके को लेकर विवाद चला आ रहा है। चीनी बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कोई भी देश उसके अंदरूनी मामले में प्रतिक्रिया न दे। सरहदी विवाद पर भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में विशेष रूप से कहा गया कि ‘जहां तक भारत-चीन सीमा प्रश्न का ताल्लुक है तो राजनीतिक मानदंडों और मार्गदशर्क सिद्धांतों के आधार पर दोनों पक्षों ने राजनीतिक आधार पर सीमा प्रश्न के उचित, तार्किक और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य निपटान पर सहमति व्यक्त की है। इस निपटान के लंबित रहने तक दोनों देश इस बात पर भी सहमत है कि सरहदी क्षेत्र में शांति बनाए रखा जाए।’
भारत और चीन के बीच सीमा समस्या कोई नई बात नहीं है। हां, यह जरूर है कि हाल के दौर में इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। जहां तक लद्दाख का सवाल है तो इस पर 2013 में तब तनाव काफी बढ़ गया था, जब तीन हफ्तों तक भारतीय और चीनी सैनिक वहां के दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में एक दूसरे के खिलाफ आमने-सामने की स्थिति में आ गए थे। तनाव का यह पूरा सिलसिला चीनी सैनिकों के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ के साथ शुरू हुआ था। इस मुश्किल हालात को तब चीन में भारत के राजदूत एस जयशंकर ने संभाला था। इसके बाद 2017 में फिर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बढ़ी। यह मौका था जब डोकलाम में चीनी और भारतीय सेना तकरीबन एक-दूसरे के सामने भिड़ने की स्थिति में आ गए थे। डोकलाम समस्या का भी राजनयिक रास्ते से ही हल निकाला गया। इस बार चीन में भारत के राजदूत वीके गोखले ने तनाव को शांतिपूर्ण हालात तक लाने में अहम भूमिका निभाई। दिलचस्प है कि आज एस जयशंकर जहां भारत के विदेश मंत्री हैं, वहीं वीके गोखले विदेश सचिव। इन दोनों राजनयिकों को चीन के साथ तनावपूर्ण स्थितियों से निपटने का यश और तजुर्बा हासिल है। मौजूदा हालात में जयशंकर और गोखले प्रधानमंत्री मोदी के लिए वरदान की तरह हैं। खासकर तब जबकि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद चीन की तरफ से सख्त प्रतिक्रिया अपेक्षित है। आज ही विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन जा रहे हैं। जयशंकर की यह यात्रा वैसे समय में हो रही है, जब कश्मीर का सवाल नए संदर्भों के साथ सामने आया है। लिहाजा यह देखना खासा दिलचस्प होगा कि इस यात्रा के दौरान चीन का इस मुद्दे पर रुख किस रूप में सामने आता है।
यह एक तथ्य है कि चीन भारत का निकट सहयोगी है और भारत के साथ चीन का सीमा विवाद लगातार चला आ रहा है। ऐसे में खासकर चीन का अक्साई चिन को लेकर रुख काफी अहम गो जाता है, क्योंकि भारत भी इस मुद्दे पर काफी हद तक स्पष्ट और दो टूक बात करता रहा है। बहरहाल, जो एक उम्मीद मौजूदा संदर्भों के विश्लेषण से सामने आती है, वह यह कि इस बात कि संभावना कम ही है कि दोनों देश कम से कम कश्मीर के सवाल पर एक-दूसरे से ज्यादा उलझेंगे। यही नहीं, भारत तो चीन से इस बात के लिए भी कह सकता है कि वह अपने नजदीकी साथी पाकिस्तान को समझाए कि वह अनुच्छेद 370 हटाने के मुद्दे पर गैरजिम्मेदार प्रतिक्रियाओं से बाज आए।

धनंजय त्रिपाठी


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