कांवड़ यात्रा : कुछ विसंगतियां भी विचारणीय

Last Updated 26 Jul 2019 06:53:30 AM IST

उत्तर भारत में श्रावण मास की शिवरात्रि का विशेष महत्त्व है। देश के कई राज्यों समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में श्रावण मास की शिवरात्रि बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।


कांवड़ यात्रा : कुछ विसंगतियां भी विचारणीय

दस-पंद्रह दिन पहले से ही भक्तगण (कांवड़िये) गंगा (हरिद्वार) की ओर कूच करना शुरू कर देते हैं। कांवड़िए गंगा जी से जल लेकर पैदल ही अपने गंतव्य पर पहुंचते हैं और शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। शिवरात्रि के दस-पंद्रह दिन पहले से ही पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश शिवमय हो जाता है। सड़कों पर कांवड़िये ही नजर आते हैं। बोल बम और बम-बम भोले के उद्घोष से हर जगह उत्सव का वातावरण नजर आता है।
इन दस-पंद्रह दिनों में बहुत कुछ अनुचित भी घटित होता है। शिवरात्रि से कई दिन पहले ही कांवड़ियों के कारण दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग बंद कर दिया जाता है और वाहनों को वैकल्पिक मागरे से निकाला जाता है। इससे यात्रा की दूरी कई किलोमीटर बढ़ जाती है। इस व्यवस्था से जहां एक तरफ यात्रा में बहुत अधिक समय लगता है और यात्रा कष्टमय हो जाती है, वहीं परिवहन विभाग को लाखों रुपये का नुकसान भी होता है। रोगियों को ले जाने में काफी परेशानी उठानी पड़ती है। तो किसी को इंटरव्यू के लिए जाना पड़े तो वह भी इस व्यवस्था का शिकार होता है। इस दौरान इस कष्टमय यात्रा से बचने के लिए यात्रियों का रुख ट्रेन की ओर होता है। इसी कारण इन दिनों ट्रेनों में भी भारी धक्का-मुक्की रहती है। कुल मिलाकर आठ-नौ दिनों में इस मार्ग पर यात्रा करना खासा मुश्किल और कष्टप्रद होता है। कांवड़ यात्रा के दौरान सड़कों पर तेज ध्वनि के लाउडस्पीकर लगे रहते हैं।

इन पर फिल्मी गीतों की धुनों पर आधारित भक्ति संगीत बजता रहता है। डाक-कांवड़ वाले अपने वाहनों पर कानफोडू स्पीकर लगाए रखते हैं सो अलग। इस सारे वातावरण से अचानक ध्वनि प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है। हालांकि कुछ लोगों के तर्क भी हास्यास्पद होते हैं। मसलन; कांवड़ के दौरान इस क्षेत्र में अपराध कम हो जाते हैं। गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ हमेशा ऊंचा रहता है। लोगों का मानना है कि इस दौरान कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग कांवड़-उत्सव में लग जाते हैं। कांवड़ियों के लिए सड़कों के किनारे भण्डारों का आयोजन चलता रहता है। ऐसे में इन लोगों को खाने-पीने की कोई चिंता नहीं होती है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कांवड़ लाने वाले सभी लोगों का उद्देश्य मौज-मस्ती होता है और सभी लोग आपराधिक प्रवृत्ति के ही होते हैं। कांवड़ियों में जवान लोगों के साथ-साथ बच्चे, बूढ़े और औरतें भी होती हैं। इनकी हिम्मत, भक्ति और श्रद्धा देखते ही बनती है और इन पर किसी भी तरह से शक नहीं किया जा सकता है। श्रद्धा और भक्ति का यह सागर हर साल बढ़ता ही जा रहा है। मगर इन लोगों के बीच आपराधिक मानसिकता वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। ऐसे लोगों की सोच धर्मविरोधी होती है। उनकी सोच में मानव कल्याण का भाव नहीं होता है। यदि यह कहा जाए कि ऐसे लोग खोखले आदर्शवाद को बढ़ावा देते हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। गतवर्ष ही कांवड़ियों की धर्म विरोधी एक करतूत देखने का मौका मुझे भी मिला। मुझे किसी कार्यवश कांवड़ यात्रा के इसी मौसम में दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरना पड़ा। मैंने देखा कि कांवड़िये पूरी सड़क को घेरकर चल रहे थे। इस सड़क से एक टैक्सी गुजर रही थी। भीड़ हटाने के लिए टैक्सी ड्राइवर बार-बार हॉर्न बजा रहा था। ड्राइवर ने जब कई बार हॉर्न बजाया तो कांवड़ियों को गुस्सा आ गया और उन्होंने इस जरा सी बात पर ही ट्रैक्सी ड्राइवर की अच्छी-खासी धुनाई कर दी।
दरअसल, कांवड़ियें समूह में रहते हैं और उस समय उन्हें इस बात का भान नहीं रहता है कि उनका आचरण धर्मविरोधी है या नहीं। यह तो एक नमूना भर है। कांवड़ यात्रा के इस मौसम में रोज इस तरह की घटनाएं घटती रहती हैं। बहरहाल, इन दस-पंद्रह दिनों में कुछ मुट्ठी भर लोगों की वजह से दिल्ली-हरिद्वार राजमार्ग पर जनसाधारण का जीवन नरक बन जाता है। दरअसल, आज हमने धर्म को प्रदर्शन की चीज बना दिया है। हमारे आचार-विचार धर्म के अनुरूप नहीं होते हैं, लेकिन कर्मकाण्ड के दिखावे में हम सबसे आगे रहना चाहते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान जब कांवड़ियें समूह में रहते हैं तो वे स्वयं को ही ईश्वर समझने लगते हैं। हम यह नहीं सोचते हैं कि हमारे धर्मविरोधी आचरण से आम जनता को कितना कष्ट होगा? कांवड़ यात्रा के दौरान स्वयं कष्ट सहकर और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने मात्र से ही हमें नारायण प्राप्त नहीं हो सकते। सबसे पहले हमें नर में नारायण देखने की कोशिश करनी होगी। तभी हमें सच्चे अथरे में नारायण मिलेंगे।

रोहित कौशिक


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