बाल यौन शोषण : जागिये सरकार! बच्चे हैं

Last Updated 17 Jul 2019 06:00:11 AM IST

आए दिन अखबारों में बाल यौन शोषण की खबरें आ रही हैं, कई घटनाएं तो इतनी वीभत्स होती हैं कि मन तृष्णा से भर जाता है।


बाल यौन शोषण : जागिये सरकार! बच्चे हैं

खासकर तब जब बलात्कारी कम पढ़े-लिखे नहीं अलबत्ता, समाज का मार्गदशर्न करने वाले होते हैं। जब शिक्षण संस्थाओं और धार्मिंक संस्थाओं के भीतर धर्म गुरु ओं को यौन शोषण में संलिप्त पाया जाता है तो लगता है कि हवस इतनी बढ़ गई है कि सामाजिक ताना बाना खत्म होता जा रहा है। केरल के पल्लुरूथी में एक ब्वॉयज होम में रहने वाले बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोप में पिछले रविवार 14 जुलाई को एक ईसाई पादरी को गिरफ्तार किया गया। यह ब्वॉयज होम एक गिरजा घर चलाता है। सात बच्चों के माता-पिता ने शिकायत की थी कि पादरी काफी समय से बच्चों का यौन शोषण कर रहा था।
इसी साल पॉप फ्रांसिस ने इस खुलासे के बाद दुनिया भर के ईसाई धर्मगुरुओं की बैठक बुलाई थी। इसमें कहा गया कि पादरी बड़े पैमाने पर बच्चों का यौन शोषण कर रहे हैं। पोप ईसाई मिशनिरयों में चल रहे यौन अपराधों को दबाने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन एक फ्रांसीसी पत्रकार फ्रेडरिक मार्टेल ने हाल ही में एक पुस्तक लिखी है, ‘इन द वैटिकन ऑफ द वैटिकन : पावर, होमोसेक्सुलिटी, हिपोक्रेसी’, जिसमें कहा गया है कि 80 प्रतिशत वेटिकन पादरी समलैंगिक हैं, और उनमें से ज्यादातर बच्चों का यौन शोषण करते हैं। इस किताब के कारण पोप फ्रांसिस को ईसाई धर्म स्थलों में बाल यौन अपराधों को रोकने के लिए सम्मेलन बुलाना पड़ा। उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद से सटे साहिबाबाद के एक मदरसे में 11 साल की बच्ची के साथ मदरसे का मौलवी कई दिन तक दिन रेप करता रहा, बच्ची को जब मदरसे से बरामद किया गया, तो वह सिर्फ  एक कपड़े में लिपटी थी, बाद में बच्ची ने बताया कि मौलवी हर घंटे बाद उस से रेप कर रहा था। मेरठ जिले के खेड़ीकलां गांव की खबर भी जुलाई महीने की है, जहां मदरसे के हाफिज शाहिद ने गांव की 12 साल की बच्ची के साथ मदरसे में रेप किया। सिर्फ  ईसाई और मुस्लिम धर्म गुरु  क्यों, बाकी धार्मिंक गुरुओं में भी बाल यौन शोषण की बीमारी पाई जाती है। हिंदुओं में काफी लोकप्रिय रहे आसाराम बापू नाबालिग बच्ची से रेप के आरोप में 2013 से जोधपुर जेल में बंद है।

बच्चों के साथ यौन शोषण असल में एक बीमारी है, जिसे पैडीफिलिया कहते हैं। इसे भी कई वगरे में बांटा गया है। कई यौन कुंठित लोगों में तो 3 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन करने की बीमारी होती है, जिसे इन्फेटोफिलिया या नेपोफिलिया कहते हैं, ग्यारह से 14 वर्ष के बच्चों के साथ यौन करने वालों को हेबोफिलिया बीमारी से ग्रस्त कहा जाता है। बच्चों से यौन अपराध करने वालों से निपटने के लिए 2012 में पोक्सो कानून बनाया गया था। इसे और सख्त बनाने के लिए अब नया प्रावधान यह किया जा रहा है कि 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे के साथ बलात्कार करने वाले को फांसी दी जाएगी। पोक्सो कानून के अंतर्गत सभी प्रावधान जेंडर न्यूट्रल होते हैं। 
हालांकि क्रिमिनल एक्ट में संशोधन करके 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची के साथ रेप में फांसी का प्रावधान कर दिया गया है, लेकिन बच्चों (लड़कों) के साथ बढ़ रहे रेप मामलों के कारण पोक्सो में फेरबदल किया जा रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक देश में 53.22 प्रतिशत बच्चों को कभी न कभी यौन शोषण का सामना करना पड़ा है। यौन शोषण या यौन शोषण प्रयास का शिकार होने वाले बच्चों में से 52.94 प्रतिशत लड़के होते हैं। भारत में 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ रेप पर फांसी का प्रावधान किया जा रहा है, लेकिन अमेरिका  के अल्बामा में बाल यौन शोषण करने वाले को नपुंसक बनाने वाला इंजेक्शन लगाने का प्रावधान किया गया है।‘केमिकल कैस्ट्रेशन’ विधेयक में 13 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के दोषियों को नपुंसक बनाने का प्रावधान किया गया है।
भारत में अदालतें सरकारों से ज्यादा संवेदनशील लगती हैं। गत शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पहल पर कोर्ट ने खुद बाल यौन शोषण के मामले में पीआईएल दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने खुद पिछले छह महीनों में हुए बाल यौन शोषण का डाटा तैयार करवाया। जस्टिस गोगोई ने पीआईएल दाखिल करते हुए कहा कि एक जनवरी, 2019 से 30 जून, 2019 तक देश भर में बच्चों के यौन शोषण के 24,212 केस दर्ज हुए। इनमें से सिर्फ 12,231 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई और 11,981 मामलों में तो अभी तफ्तीश ही चल रही है। सरकार की ओर से संसाधनों की कमी के कारण सिर्फ  900 केसों की सुनवाई पूरी हो सकी और फैसले सुनाए जा सके। अदालत ने सोमवार को दिल्ली में बढ़ते बाल यौन शोषण के मामलों पर दिल्ली पुलिस की खिंचाई की। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि दिल्ली में हर रोज चार बच्चे यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं।
दिल्ली पुलिस ने पिछले छह महीनों में सिर्फ 129 केस दर्ज किए, जिसमें से सिर्फ 110 का ट्रायल शुरू हुआ और सिर्फ  2 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ है। इनमें में से सिर्फ  469 केसों में चार्जशीट दाखिल की है, जबकि 260 केसों की अभी तफ्तीश की जा रही है। सुनवाई में यह भी खुलासा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार के निर्देशों के बावजूद दिल्ली सरकार ने पोक्सो की अलग अदालतों का गठन नहीं किया है। यह पहला मौका नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन शोषण के मामले में सरकार को कटघरे में खड़ा किया हो। 2012 में बाल यौन शोषण के खिलाफ बने पोक्सो कानून के सभी प्रावधानों को सभी राज्यों में लागू करवाने, विशेष अदालतों का गठन करवाने और बाल यौन शोषण के शिकार बच्चों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाने के लिए फंड बनाने के लिए कोर्ट को कई बार निर्देश जारी करने पड़े हैं।
असल में मोदी सरकार के पिछले पांच सालों में बच्चों के अधिकारों, उन की शिक्षा, बाल मजदूरी बंद करवाने, बाल भिक्षावृत्ति रुकवाने और बच्चों की सुरक्षा के लिए जमीनी कदम उठाए जाने की अपेक्षा थी, लेकिन मोदी सरकार एक की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी सिर्फ किताबी बातों तक सीमित रहीं। अब यह जिम्मा स्मृति इरानी को मिला है तो कुछ उम्मीद की जा सकती है, बशर्ते उन्हें गाइड करने वाले संवेदनशील व अनुभवी लोग मिलें। (लेखक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, उत्तराखंड के अध्यक्ष रहे हैं)

अजय सेतिया


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