वाटर हार्वेस्टिंग : सख्ती और समझदारी से पालन हो

Last Updated 15 Jul 2019 06:59:52 AM IST

विश्व में पर्यावरण और जल संकट से विकट समस्या पैदा हो गई है। जीवन के लिए पानी जरूरी है। पानी नहीं है तो जीवन नहीं है। नदियां सूख रही हैं, ग्लेियर पिघल रहे हैं।


वाटर हार्वेस्टिंग : सख्ती और समझदारी से पालन हो

ये कब तक जीवन जीने की आवश्यकताएं पूरी कर पाएंगे? इसी परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी हो रहा है कि हम प्रकृति द्वारा मिले उस बारिश के पानी की एक-एक बूंद को संचित करें, जिसे हम वेसे ही जाया कर रहे हैं। गंभीरता से वाटर हार्वेस्टिंग की जरूरत है। जैसे बरसात के मौसम में जल का कुछ भाग धरती की गहराई में स्वत: ही चला जाता है।
यह कार्य प्रकृति खुद ही करती है। जाहिर है कि धरती बरसात का जल पूरी तरह से नहीं सोख सकती। यह स्थान विशेष की मिट्टी और उसके नीचे पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर ही निर्भर करता है। रेत, बजरी की परतों और मौसम के कुप्रभाव से चट्टानों में पानी सबसे अधिक रिसता और संरक्षित होता रहता है। तेज बरसात क्षणभर में पूरा पानी बहा ले जाती है। उसके संरक्षण की गुंजाइश उतनी नहीं होती, जितनी रिमझिम बरसात होने से भूमि पानी को अपने अंदर रोक लेती है। इसके साथ ही स्थान विशेष और भूमि का उपयोग भी जमीन में रिसने पर असर डालता है। बंजर भूमि और चट्टानों पर पानी का अधिकांश भाग सतह पर से ही बह जाता है, दूसरी ओर रेतीली भूमि और जुते खेतों का बीस प्रतिशत  पानी ही आगे जा पाता है। इस कार्य को प्रकृति का ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ कह सकते हैं। इन दिनों ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ शब्द का उपयोग हम कृत्रिम तरीकों से बरसाती पानी के संचय की विधि को कहते हैं। इसके लिए विभिन्न उपाय किये जाते हैं; जैसे तालाब, चेकडैम, गेबियन स्ट्रर, स्टाप डेम, परकोलेन टैंक जमीन के ऊपर या नीचे बनाये जाते हैं। शहरों में भीषण गहराते जल संकट के कारण ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का प्रयोग होने लगा है। गांव इससे अछूते नहीं रहे हैं, आज वहां भी इसकी आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।

वास्तव में लगातार विषम होती परिस्थितियों के कारण नगरीय एवं ग्रामीण इलाकों में समान रूप से ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ की जरूरत है। गहराते जल संकट से मुक्ति पाने में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ ही सक्षम और एक मात्र विकल्प है।  ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ की जरूरत उसी क्षेत्र में होती है, जहां भू जल का स्तर जमीन की सतह से काफी नीचे होता है। इसलिए बरसात के दिनों में इन स्थानों के भू जल स्तर को उठाने में ‘वाटर हार्वेस्टिंग’ सबसे बेहतरीन तरीकों में से एक है। इसके विपरीत यदि किसी क्षेत्र में भू जल का स्तर जमीन की सतह के काफी करीब है तो वहां कम पानी के संचय की जरूरत है। उथले भूजल स्तर वाले इलाकों में ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के स्थान पर पानी का संचय तालाब या टैंक में करना चाहिए। आज देश का शहरी क्षेत्र बुरी तरह से जलाभाव से गुजर रहा है। ग्रामीण क्षेत्र तो हैं ही, पर शहरी क्षेत्र इससे और ज्यादा प्रभावित हैं। उसके कारण हैं भूजल का दोहन अधिक से अधिक मात्रा में होना, इस दोहन ने भयंकर जल संकट पैदा कर दिया है। बारिश के पानी को संरक्षित नहीं किये जाने ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। कानून भी इतने कठोर नहीं बने हैं, जो वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य मानें। हम कितनी भी पानी की खपत कम करें, पर आबादी के लिहाज से देश को अधिक पानी की जरूरत है। इस संकट का एक ही विकल्प है- वाटर हार्वेस्टिंग। हमने इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया है। शहरी क्षेत्र में बहुत सारी निर्माण योजनाएं कार्यान्वित हो रही हैं, आवासीय कॉलोनियां बन रही हैं, पर उन कॉलोनियों में भू जल संरक्षण की गंभीर योजनाएं नहीं हैं। यह तय किया जाना चाहिए कि जो भी बिल्डिंग बने उसमें वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान हो। बगैर प्रावधान के ऐसा निर्माण न शहरों में और न देश के किसी भी इलाके में हो।
दिल्ली में केंद्रीय भू जल प्राधिकरण ‘सीजीडब्लूए’ ने बरसात के पानी की हार्वेस्टिंग को कानूनी जामा पहनाया। सभी संस्थाओं और आवासीय कालोनियों में हार्वेस्टिंग जरूरी किया गया। कई देशों में ‘राष्ट्रीय जल कानून’ है। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है। हालांकि राष्ट्रीय जल नीति है। 2002 की इस नीति को-जिसका 2012 में पुनर्निरीक्षण किया गया-को कानून में बदला जा सकता है। अब जरूरत इस बात की है कि राष्ट्रीय जल नीति को पूरी तरह से कानून के दायरे में लाया जाए। इंदौर, कानपुर, हैदराबाद, तमिलनाडु, हरियाणा, राजस्थान, मुंबई ने भी अपने यहां वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर दिया है। कुछ स्थानों पर लोगों ने सफलतापूर्वक अपने प्रयोग कर वाटर हार्वेस्टिंग पारंपरिक तौर से किए हैं। जैसे बुंदेलखंड के जखनी गांव ने अपने सूखे कुओं में पानी भरा है। इसी तरह महाराष्ट्र में हलगारा पानी के संग्रह में एक मॉडल गांव बना है।

भगवती डोभाल


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