सरोकार : दिमाग की अंदरूनी संरचना को बदल रहा इंटरनेट

Last Updated 14 Jul 2019 06:58:21 AM IST

इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल हमारे दिमाग की अंदरूनी संरचना को तेजी से बदल रहा है, जिससे उपयोक्ता (यूजर) का ध्यान, स्मरणशक्ति और सामाजिक दृष्टिकोण प्रभावित हो सकता है।


सरोकार : दिमाग की अंदरूनी संरचना को बदल रहा इंटरनेट

दरअसल, यह बदलाव कुछ-कुछ हमारी तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं की वायरिंग और री-वायरिंग जैसा है। मनोरोग अनुसंधान की विश्व प्रतिष्ठित पत्रिका ‘र्वल्ड साइकाइट्री’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल हमारे दिमाग पर स्थाई और अस्थाई रूप से असर डालता है।

इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने उन प्रमुख अवधारणाओं की जांच की, जो यह बताते हैं कि किस तरह से इंटरनेट संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को बदल सकता है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने इसकी भी पड़ताल की कि ये अवधारणाएं मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सा और न्यूरो इमेजिंग के हालिया अनुसंधानों के निष्कर्षों से किस हद तक समर्थित हैं। इस शोध का प्रमुख निष्कर्ष यह है कि उच्च स्तर का इंटरनेट उपयोग मस्तिष्क के कई कार्यों पर प्रभाव डाल सकता है।

उदाहरण के लिए, इंटरनेट से लगातार आने वाले नोटिफिकेशन और सूचनाओं की असीम धारा हमें अपना ध्यान उसी ओर लगाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसके परिणामस्वरूप किसी एक काम पर एकाग्र होने, उसे गहराई से समझने और आत्मसात करने की हमारी क्षमता को बहुत तेजी से कम कर सकती है।

यह शोध मुख्य रूप से यह बताता है कि इंटरनेट दिमाग की संरचना, कार्य और संज्ञानात्मक विकास को कैसे प्रभावित कर सकता है। हाल के समय में सोशल मीडिया के साथ-साथ अनेक ऑनलाइन तकनीकों का व्यापक रूप से अपनाया जाना शिक्षकों और अभिभावकों के लिए भी चिंता का विषय है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा साल 2018 में जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक छोटे बच्चों (2-5 वर्ष की आयु) को प्रति दिन एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन के संपर्क में नहीं आना चाहिए।

हालांकि ‘वर्ल्ड साइकाइट्री’ में प्रकाशित शोधपत्र में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि मस्तिष्क पर इंटरनेट के प्रभावों की जांच करने वाले अधिकांश शोध वयस्कों पर ही किए गए हैं, इसलिए युवाओं में इंटरनेट के इस्तेमाल से होने वाले फायदे और नुकसान को निर्धारित करने के लिए अधिक शोध की जरूरत है।

इस शोध का लब्बोलुआब यह है कि आज हमें यह समझने की जरूरत है कि इंटरनेट की बदौलत जहां वैश्विक समाज एकीकृत हो रहा है, वहीं यह पूरी दुनिया (बच्चों से लेकर बूढ़ों तक) को साइबर एडिक्ट भी बना रहा है। इंटरनेट की लत वैसे ही लग रही है जैसे शराब या सिगरेट का। इंटरनेट की लत से जूझ रहे लोगों के मस्तिष्क के कुछ खास हिस्सों में गामा अमिनियोब्यूटिरक एसिड (जीएबीए) का स्तर बढ़ रहा है।

दरअसल, जीएबीए का मस्तिष्क के तमाम कार्यों मसलन जिज्ञासा, तनाव, नींद आदि पर बड़ा असर होता है। जीएबीए स्तर का असंतुलन अधीरता, बेचैनी, तनाव और अवसाद (डिप्रेशन) को बढ़ावा देता है। इंटरनेट की लत दिमागी सर्किटों की बेहद तेजी से और पूर्णत: नये तरीकों से वायरिंग कर रही है! इंटरनेट के शुरुआती दौर में हम निरंतर कनेक्टेड होने की बात किया करते थे और आज यह नौबत आ गई कि हम डिजिटल जहर-मुक्ति की बात कर रहे हैं! इंटरनेट के नशेड़ियों के इलाज के लिए ठीक उसी तकनीक को आजमाने की जरूरत है, जिसका इस्तेमाल शराबियों को शराब से पीछा छुड़ाने के लिए किया जाता है।

प्रदीप कुमार


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