विश्व जनसंख्या दिवस : गुणवत्ता बढ़े आबादी की

Last Updated 11 Jul 2019 06:00:31 AM IST

प्रजनन स्वास्थ्य एवं लिंग समानता जनसंख्या गुणवत्ता और सतत विकास के मुख्य आधार हैं। कुछ समय पहले जनसंख्या के चौंकाने वाले आंकड़े आए हैं।


विश्व जनसंख्या दिवस : गुणवत्ता बढ़े आबादी की

विश्व की जनसंख्या 7.6 बिलियन (अरब) है, जो 1800 में 1 बिलियन थी। अनुमान है कि 2030 के मध्य में यह 8.6 बिलियन और 2050 में 9.8 बिलियन हो जाएगी। आने वाले आठ सालों में भारत की आबादी चीन से भी अधिक हो जाएगी। जब हम प्रजनन दर विश्व के रेश्यो में देखते हैं तो वह 3.2 प्रति बच्चा प्रति स्त्री 1990 में था। 2019 में 2.5 में हो गया। 2050 में 2.2 होने का अनुमान है।
भारत के संदर्भ में प्रति स्त्री प्रजनन दर 2.2 है। संयुक्त राष्ट्र संघ 25 सितम्बर, 2015 के बाद सतत विकास की परिकल्पना लाया,  उसमें जनसंख्या वृद्धि महत्त्वपूर्ण बाधक है। इसमें ध्यान देने वाली बात है कि जो गरीब देश हैं, वहां जनसंख्या वृद्धि तेजी से हो रही हैं। इनमें भारत, चीन, नाईजीरिया, पाकिस्तान, इथोपिया, कांगो, तंजानिया, इंडोनेशिया और मिस्र महत्त्वपूर्ण देश हैं। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि गरीबी दूर करने, समानता लाने, भूख और पोषण खत्म करने और स्वास्थ्य एवं शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में मुख्य बाधक हैं। जीवन प्रत्याशा भी विश्व औसत से 7 साल कम है। इसमें एक महत्त्वपूर्ण कारण स्वास्थ्य पर कम खर्च किया जाना है। भारत में सबसे कम खर्च स्वास्थ्य पर है। 1994 में जनसंख्या व विकास पर विस्तरीय कांफ्रेंस, जो काहिरा में हुआ था, में दो मुख्य विषय लिंग समानता तथा प्रजनन स्वास्थ्य उभरकर आया। 

लिंग समानता स्त्रियों के सशक्तिकरण तथा उनकी गरिमा से जुड़ा हुआ मसला है। शिशु मृत्यु दर का 1950 से विश्लेषण करें तो विश्व के हरेक क्षेत्रों में यह कम ही हुआ है। लेकिन दक्षिण एशिया, जिसमें भारत सम्मिलित है, में अभी भी काफी ज्यादा है। जनांकिकीय परिवर्तन में भौगोलिक विभिन्नताएं हैं। दक्षिण भारतीय राज्य केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में यह बदलाव तेजी से हो रहा है, जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में बहुत धीमी गति से। एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में 35 करोड़ 56 लाख लोग 24 वर्ष की आयु होने के कारण विश्व में युवाओं की सर्वाधिक संख्या भारत में है। उसके बाद चीन (26 करोड़), इंडोनेशिया (67 लाख), अमेरिका (65 लाख) आदि आते हैं। समय आ गया है कि हम युवाओं को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करा के जनसंख्या की गुणवत्ता को बढ़ाते हुए जनांकियीय दबाव से उबरते हुए लाभ की ओर बढ़ें। इसके लिए स्वच्छ भारत, उज्ज्वला योजना, मेक इन इंडिया तथा स्केलिंग इंडिया (कौशल विकास) जैसी महत्त्वाकांक्षी योजनाएं अहम योगदान दे सकती हैं। यदि हम विश्व के बहुत गरीब 10 देशों को लें तो उनमें भारत का प्रथम स्थान है। इसलिए हम प्रजनन स्वास्थ्य तथा लिंग समानता में सुधार लाकर महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। जब हम प्रजनन स्वास्थ्य की बात करते हैं,  तो एक आंकड़ा उद्धृत करना आवश्यक है कि करीब 23 फीसद एडोलसेंस (13 से 19 साल के युवा) वो प्रजनन तथा बच्चे के जन्म से जुड़ीं बीमारियों से संबंधित हैं।
भारत में कम उम्र में बच्चा पैदा करने के कारण मातृत्व मृत्यु दर काफी ज्यादा है तथा युवा स्त्रियों में अवैध तथा असुरक्षित अबॉर्शन की समस्या अभी बनी हुई है। प्रति वर्ष 22 मिलियन असुरक्षित अर्बाशन होता है। इसमें 15 फीसद युवतियां, जिनकी उम्र 15-19 साल है-तथा 26 फीसद 20-24 साल के हैं। दो बच्चों के बीच में गैप अभी भी काफी कम है, जिसे हमें जागरूकता द्वारा बढ़ाने का प्रयास करना पड़ेगा। कुछ सव्रे के अनुसार ग्रामीण भारत में युवा महिलाएं परिवार नियोजन, प्रजनन आदि के बारे में कभी बात नहीं करतीं। करीब चालीस प्रतिशत अपने पति तथा सास से कभी-कभी परिवार नियोजन के बारे में बात कर लेती हैं। शादी के बाद अपने घर भी जाने की बारंबारता बहुत ही कम है। इसलिए अपनी सहेलियों से भी बात करने का काफी कम मौका मिलता है। भारत तथा कई विकासशील देशों ने परिवार नियोजन तथा प्रजनन स्वास्थ्य पर कई योजनाएं चलाई है। मगर एक अनुमान के अनुसार करीब विकासशील देशों में 225 मिलियन औरतों को परिवार नियोजन की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती। इसमें वित्तीय तथा स्वीकृति न मिलना, स्टिग्मा आदि प्रमुख कारण हैं। परिवार नियोजन की आवश्यकता पूरी न हो पाने से 74 मिलियन अनियोजित गर्भधारण होता है। 28 मिलियन करीब अनियोजित बच्चे पैदा होते हैं। इसके साथ ही 36 मिलियन सालाना गर्भपात होते हैं।
जरूरी है कि भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया आदि परिवार नियोजन तथा प्रजनन स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दें। एक अनुमान के अनुसार यदि 9.4 बिलियन डॉलर हम वाषिर्क खर्च आधुनिक कंट्रासेप्टिव्स पर खर्च करें तो अप्रत्याशित गर्भधारण 70 फीसद कम कर सकते हैं। 74 फीसद असुरक्षित गर्भपात कम कर सकते हैं, 25 फीसद मातृत्व मृत्यु कम कर सकते हैं और 18 प्रतिशत शिशु मृत्यु कम कर सकते हैं। यदि हम स्त्रियों की कंट्रासेप्टिव्स आवश्यकता पूरी कर दें तो असुरक्षित गर्भपात 20 मिलियन से कम होकर 5 मिलियन पर आ जाएगा। मातृत्व मृत्यु जो असुरक्षित गर्भपात से होती हैं, 22 हजार से 4200 रह जाएगी। पोषण तथा प्रजनन स्वास्थ्य में भी गहरा संबंध है। यूएनएफपीए भारत को 1984 में संपन्न आईसीपीडी में तैयार समग्र रणनीति को कार्यान्वित करने में सहयोग कर रहा है। जनसंख्या और विकास को अलग करके नहीं देखा जा सकता। जनांकियीय लाभ के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए भारत में महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य में ध्यान देने की जरूरत है। यहां तक कि पर्वतीय क्षेत्रों में स्त्री और बच्चे एनीमिया तथा कम वजन से ग्रसित हैं।
इसके लिए मिड डे मिल योजना काफी प्रभावित हो रही है। अभी भी विश्व में 1.4 बिलियन लोग कृषि पर आश्रित हैं, अत: फूड प्रोसेसिंग को कारगर रूप से लागू करने के लिए छठे उद्योग की संकल्पना भारत में जरूरी हो गई है। छठे उद्योग का तात्पर्य है प्राथमिक वन, द्वितीयक दो और तृतीयक तीन। जैसे कृषि उत्पादन को हम प्रसंस्करण में परिवर्तित कर दें तथा उसमें बाजारीकरण जोड़ दें तो किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। वर्तमान सरकार का यह महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। हमें जनजातीय और अनु. जाति महिलाओं पर विशेष ध्यान देना होगा।  माइक्रो फाइनेंस द्वारा मजबूती प्रदान कर और सेल्फ हेल्प ग्रुप से जोड़कर के उनको विकास की मुख्यधारा में अधिक से अधिक साझेदारी दिलाई जा सकती है।
(भूगोल विभागाध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय)

प्रो, आर.बी. सिंह


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