मुद्दा : दांव पर कानून-व्यवस्था

Last Updated 11 Jul 2019 05:55:40 AM IST

यह सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के साथ खिलवाड़ ही है कि देश में पुलिस के लाखों पद रिक्त हैं और राज्य सरकारें इसे भरने को तैयार नहीं हैं।


मुद्दा : दांव पर कानून-व्यवस्था

नतीजा कानून-व्यवस्था दांव पर है और अपराधियों का हौसला बुलंद है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी ताजा आंकड़ों से उद्घाटित हुआ है कि देश में 5.28 लाख पुलिस पद रिक्त हैं, जिनमें से लगभग 1.29 लाख पद उत्तर प्रदेश में हैं। इसी तरह महाराष्ट्र में 26,195, मध्य प्रदेश में 22,355, छत्तीसगढ़ में 11,916, झारखंड में 18,931, गुजरात में 21,070, राजस्थान में 18,003, हरियाणा में 16,844, बिहार में 50,291, पश्चिम बंगाल में 48,981 ओडिशा में 10,322 आंध्र प्रदेश में 17,933, तमिलनाडु में 22,420 पद रिक्त हैं।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो 2017 में राज्यों में पुलिस की स्वीकृत संख्या लगभग 28 लाख थी। लेकिन अभी तक सिर्फ 19 लाख पुलिसकर्मियों की ही नियुक्ति की जा सकी है। यहीं वजह है कि भारत का हर भू-भाग कानून के अनुपालन, अपराध और हिंसा के लिहाज से अति संवेदनशील बना हुआ है। याद होगा अभी गत वर्ष ही सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को ताकीद किया था कि वे राज्यों में पुलिस के रिक्त पड़े पदों को जल्द भरें।

तब सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकारों के उदासीन रवैये का संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश समेत बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तमिलनाडु और कर्नाटक के गृह सचिवों को तलब किया। याद होगा गत वर्ष गृह मंत्रालय ने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की 153 अति महत्त्वपूर्ण सिफारिशों पर विचार करने के लिए मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया था। सम्मेलन में पुलिस सुधार पर चिंतन-मनन होना था। एजेंडा के तहत पुलिस जांच, पूछताछ के तौर-तरीके, जांच विभाग को विधि-व्यवस्था विभाग से अलग करने, महिलाओं की 33 फीसद भागीदारी बढ़ाने के अलावा पुलिस की निरंकुशता की जांच के लिए विभाग बनाने पर भी चर्चा की जानी थी। मगर इस सम्मेलन में अधिकांश मुख्यमंत्री अनुपस्थित रहे। नतीजा कोई रोडमैप तैयार नहीं हो सका। पुलिस सुधार के लिए जब गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों से राय मांगी गई तो सिर्फ आधा दर्जन राज्यों ने ही पुलिस सुधारों पर अपनी राय से गृह मंत्रालय को अवगत कराया। आज भी राज्य सरकारें पुलिस सुधार के मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने को तैयार नहीं हैं।
यह स्वीकारने में तनिक भी हर्ज नहीं कि भारतीय पुलिस की छवि ठीक नहीं है। जिस तरह पिछले एक दशक में फर्जी एनकाउंटर, थानों में हत्या और बलात्कार जैसी घटनाएं उजागर हुई हैं, उससे पुलिस और थानों पर भरोसा बने रहना कठिन होता जा रहा है। गृह मंत्रालय के हालिया रिपोर्ट से स्पष्ट है कि राज्य सरकारों ने पुलिस के रिक्त पड़े पदों को भरने और उनके आचरण को सुधारने के लिए तनिक भी जहमत नहीं उठाया। यहां ध्यान देना होगा कि पुलिसकर्मियों की कमी की वजह से सिर्फ कानून-व्यवस्था ही दांव पर नहीं है। पुलिस की कमी की वजह से काम के बोझ का दबाव इस कदर बढ़ गया है कि पुलिस के जवान मानसिक तनाव में आने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकारें इस वस्तुस्थिति से अवगत नहीं हैं। लेकिन उनके रवैये से साफ है कि वे लोगों की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था का अनुपालन और पुलिस के रिक्त पदों को भरने को लेकर तनिक भी गंभीर हैं। रिक्त पदों के कारण ही आज देश में एक लाख की आबादी पर बमुश्किल 144 पुलिसकर्मी हैं, जो कि आबादी के लिहाज से बेहद कम हैं। सच कहें तो आज की तारीख में लोगों में यह धारणा घर कर गई है कि पुलिस प्रशासन सत्ताधारियों के इशारे पर नाचता है और रित लेकर अपराधियों को बचाता है। सही लोगों को भी झूठे मुकदमे में फंसाने की धौंस देता है। सत्ता के इशारे पर लाठियां बरसाता है।
अच्छी बात यह है कि केंद्र की मोदी सरकार ने गत वर्ष पुलिस सुधार की दिशा में ठोस पहल करते हुए पुलिस आधुनिकीकरण के लिए अगले तीन साल में 25,060 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला किया है। यह पहल इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि 14 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय राजस्व में से राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत से 42 प्रतिशत करने के बाद पुलिस सुधारों के लिए केंद्रीय सहायता बंद हो गई थी और राज्य सरकारें अपने हाथ खड़े कर चुकी थी। लेकिन उम्मीद है कि केंद्र सरकार की पहल से पुलिस सुधार की गति तेज होगी और राज्य सरकारें अपना दायित्व निभाएंगी।

अरविंद जयतिलक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment