ओबीसी : कोटे के भीतर कोटा की तैयारी

Last Updated 28 Jun 2019 05:25:23 AM IST

प्रचंड बहुमत से दोबारा सत्ता में लौटी मोदी सरकार पूरे कान्फिडेंस में है और चुनाव से पहले सवर्णो को दस फीसद आरक्षण के मास्टर स्ट्रोक के बाद उसकी अब अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) में आरक्षण के भीतर आरक्षण देने की तैयारी है।


ओबीसी : कोटे के भीतर कोटा की तैयारी

इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। अगले महीने जुलाई तक इस आशय की रिपोर्ट आ जाने की संभावना है। ओबीसी के उप-वर्गीकरण को लेकर केंद्र सरकार द्वारा गठित रोहिणी कमीशन के तीसरे अवधि विस्तार की अवधि 31 जुलाई को समाप्त हो रही है। माना जा रहा है कि इसके पहले कमीशन अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी। आने वाले समय में बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं, लिहाजा, इसकी संभावना भी तेज हो गई है कि केंद्र सरकार ओबीसी के उपवर्गीकरण को अमलीजामा पहनायेगी।
इस कड़ी में पिछड़ी जातियों के उप-वर्गीकरण की व्यवहार्यता की जांच के लिए गठित रोहिणी आयोग ने खाका तैयार कर लिया है और आंध्र प्रदेश द्वारा तैयार की गई सब-कैटिगरीज के आधार पर सिफारिश करने की तैयारी है। आंध्र प्रदेश में ओबीसी को ए, बी, सी और डी में बांटा गया है। इस पूरी कवायद का एकमात्र मकसद ज्यादा बैकर्वड ओबीसी के लिए सब-कोटा बनाना है, जिनके बारे में कहा जाता है कि ज्यादा दबदबे वाली बैकर्वड जातियों द्वारा आरक्षण का अधिकांश लाभ लेने के चलते उन्हें (बैकर्वड ओबीसी) फायदा नहीं मिल पाता है।

हालांकि इससे मंडल आयोग के तहत सबसे अधिक लाभान्वित होते आने वाले ‘बैकर्वड में फॉर्वड’ की नाराजगी बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो सकता है क्योंकि उप-वर्गीकरण से इनका कोटा घटकर एक हिस्से तक फिक्स्ड हो जाएगा, जबकि अब तक 27 फीसदी में से अधिकांश हिस्से का लाभ ये ही उठाते रहे हैं, जबकि 983 पिछड़ी जातियों को अब तक इस आरक्षण का लाभ तक नहीं मिल पाया है। इन बातों का केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी में उप-वर्गीकरण के लिए गठित रोहिणी पैनल ने ध्यान रखा है और उसकी आंध्र प्रदेश द्वारा तैयार की गई सब-कैटिगरीज के आधार पर सिफारिश करने की तैयारी है। आंध्र में ओबीसी को ए, बी, सी और डी में बांटा गया है। वहीं, कर्नाटक में ओबीसी के सब-ग्रुप के नाम ‘1, 2 ए, 2 बी, 3 ए और 3 बी हैं। रोहिणी पैनल की आरक्षण लाभ के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए ओबीसी लिस्ट को समूहों में बांटने की योजना है, जिससे 27 फीसद आवंटित मंडल आरक्षण में कुल पिछड़ी जाति की आबादी को शामिल किया जा सके। इसके बाद ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ 27 फीसद में से केवल एक हिस्से के लिए योग्य होंगे, जो मौजूदा स्थिति से बिल्कुल उलट है। फिलहाल इनका शेयर असीमित है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये बहुत अधिक कोटा लाभ झटक लेते हैं। 27 फीसद कोटे का बाकी हिस्सा सबसे ज्यादा बैकर्वड समूहों के लिए होगा और इससे उन्हें ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ के साथ प्रतिस्पर्धा से बचने में मदद मिलेगी। अगर ऐसा होता है तो सब-कैटगरी बनने से ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ नाराज हो सकते हैं क्योंकि वे खुद को लूजर समझ सकते हैं।
मंडल की राजनीति के सहारे शीर्ष पर पहुंचे लालू और मुलायम को ओबीसी उपवर्गीकरण से जबरदस्त घाटा होने की संभावना हैं। भाजपा की ओबीसी में विभाजन की रणनीति कामयाब होती दिख रही है। माना जा रहा है कि भाजपा अपनी राजनीतिक पकड़ को बनाए रखने के लिए ओबीसी का उप-वर्गीकरण करेगी। इस बार के लोक सभा चुनाव में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टयिों ने ओबीसी के शीर्ष में शामिल यादव जाति को अलग-थलग कर दिया। उत्तर प्रदेश में क्या कुछ हुआ, यह जगजाहिर है। जबकि बिहार में सोशल जस्टिस के कभी चैंपियन रहे लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का सूपड़ा साफ हो गया है। इसे भाजपा की ओबीसी उपवर्गीकरण की रणनीति का नतीजा माना जा रहा है।
भाजपा यह जानती है कि लालू हों या मुलायम अब वे इस स्थिति में नहीं हैं कि ओबीसी के उपवर्गीकरण को रोक सकें। वैसे भी सामाजिक संरचना और आरक्षण के समुचित बंटवारे के लिहाज से यह जरूरी हो गया है कि पिछड़े वर्ग की वे जातियां जो कमजोर हैं, उन्हें मौका मिले। ऐसे में लालू और मुलायम जैसे मंडल नेताओं की बेहतरी इसी में है कि वे ओबीसी उपवर्गीकरण का समर्थन करें और अपनी पार्टी में भी परिवार को दूर रखकर पिछड़ी वर्ग की सभी जातियों को समुचित हिस्सेदारी दें। परिवारवाद के दिन अब लद चुके हैं। यह बात वे जितनी जल्दी समझ लें, उनके लिए उतना ही बेहतर होगा।

कुमार समीर सिंह


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