सामयिक : बढ़ती आबादी की चिंताएं

Last Updated 27 Jun 2019 07:00:00 AM IST

हाल ही में 18 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व आबादी पर अपनी जो ताजा रिपोर्ट प्रकाशित की है, उसमें कहा गया है कि 2027 तक भारत की आबादी दुनिया में सर्वाधिक होकर 150 करोड़ के पार पहुंच जाएगी।


सामयिक : बढ़ती आबादी की चिंताएं

अभी भारत की आबादी 137 करोड़ है, वहीं चीन की आबादी 143 करोड़ है। ऐसे में 2027 तक चीन को पीछे करके भारत दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। इन आंकड़ों के साथ जो चिंताएं जुड़ी हुई हैं, वे परेशान करने वाली हैं।  नई वैश्विक जनसंख्या रिपोर्ट में ऐसे कई ट्रेंड्स रेखांकित किए गए हैं, जो भारत को सबसे अधिक सजग होने की मांग करते हैं।
ऐसे में भारत के समक्ष जनसंख्या के भारी दबाव के कारण गरीबी, रोजगार, आवास, खाद्यान्न, कुपोषण, जनस्वास्थ्य एवं शहरीकरण की विभिन्न समस्याएं और अधिक चिंताजनक रूप में दिखाई देंगी। साथ ही भारत में तेजी से बढ़ते हुए बुजुगरे का समाज बनने का परिदृश्य भी उभरता दिखाई देगा। जरूरी है कि इन आसन्न चुनौतियों पर अब गंभीरतापूर्वक विचार मंथन हो और जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपयुक्त रणनीति के साथ आगे बढ़ा जाए। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया के विभिन्न देशों की जनसंख्या से संबंधित जो नवीनतम रिपोर्ट 2019 जारी की गई है, उसके अनुसार पूरी दुनिया की आबादी जो अभी 760 करोड़ है, 2050 तक बढ़कर 970 करोड़ हो जाएगी। दुनिया की आधी से ज्यादा जनसंख्या वृद्धि नौ देशों में होगी। इनमें भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, तंजानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमेरिका हैं। अन्य सभी देशों की तुलना में भारत को जनसंख्या समस्या के भीषण रूप  का सामना करना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की आबादी आने वाले कई वर्षो तक बढ़ती रहेगी।

निश्चित रूप से सात साल बाद जब भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा तो भारत के समक्ष वर्तमान में दिखाई दे रही जनसंख्या की चुनौतियां और अधिक गंभीर रूप में दिखाई देंगी। दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की जनसंख्या की हिस्सेदारी करीब 18 फीसद हो गई है, जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 फीसद हिस्सा ही भारत के पास है। चूंकि भारत में संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि की दर से कम है, इसलिए जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक-सामाजिक समस्याओं का दुष्प्रभाव और बढ़ेगा। चाहे देश की विकास दर बढ़ती रहेगी, लेकिन देश में हासिल सुविधाओं के न्यायपूर्ण वितरण की ठोस व्यवस्था न होने पर आबादी के एक बड़े हिस्से की अनिवार्य जरूरतें ढंग से पूरी नहीं हो पाएंगी। तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जननी बनकर देश के विकास के  लिए खतरे की घंटी दिखाई देगी।
निस्संदेह शहरों के आवास परिदृश्य पर सबसे अधिक चुनौतियां बढ़ेंगी। अभी देश के शहरों में दो करोड़ मकानों की कमी है। यह कमी और विकराल रूप लेते हुए दिखाई देगी और अधिक संख्या में लोग या तो जर्जर मकानों या फिर झुग्गी-झोपड़ी और मलिन बस्तियों में जीवन गुजारते हुए दिखाई देंगे। बढ़ती जनसंख्या से कृषि संसाधनों का बंटवारा बढ़ जाएगा और भारत में खाद्यान्नों की उत्पादन वृद्धि के बावजूद मांग की तुलना में पर्याप्त पूर्ति न होने का संकट दिखाई दे सकता है। बढ़ती जनसंख्या की दृष्टि से शिक्षण संसाधनों की भारी कमी दिखाई देगी। देश में बेरोजगारों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी और विकास परिदृश्य पर गांव और अधिक पिछड़े दिखेंगे। गांवों से लोगों का बड़ी संख्या में रोजगार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के लिए शहरों की ओर पलायन बढ़ेगा। पर्यावरण पर दबाव बहुत बढ़ जाएगा। शहरों में जनस्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं दयनीय स्थिति में होती जाएंगी। शहरों में प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े-करकट को हटाने और ठिकाने लगाने की व्यवस्था और चुनौतिपूर्ण बन जाएगी। बिजली-पानी की भारी कमी, खराब सड़कें, जमीन और जल का गहरा प्रदूषण, बेकाबू बीमारियां, ट्रैफिक जाम, घटिया जल-मल निकास व्यवस्था, हिंसक लूटपाट, भीड़-भाड़ और संकरी गलियां भारतीय शहरों का अभिन्न अंग बनते हुए दिखाई दे सकती हैं। 
निस्संदेह देश में आदर्श जनसंख्या की नई रणनीति अपनानी होगी। जनसंख्या विशेषज्ञों का मत है कि भारत में जहां जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं चीन को सामने रखते हुए जनसंख्या में ऐसी कमी से भी बचना होगा कि भविष्य में विकास की प्रक्रिया और संसाधनों का विदोहन मुश्किल हो जाए। हम चीन की ओर देखें तो पाते हैं कि चीन के इतिहास की प्रमुख घातक भूलों में 1979 में अपनाई गई एक दंपति एक बच्चे की नीति भी है। कोई 40 साल पहले चीन द्वारा छलांगें लगाकर बढ़ती आबादी को कानूनी तरीके से नियंत्रित करना उपयुक्त कदम समझा गया था। जनसंख्या वृद्धि पर कठोर प्रतिबंध लगाते समय भविष्य में श्रमिकों की कमी संबंधी मुद्दा नजरअंदाज हो गया था। चीन उत्पादन और विकास के मोर्चे पर युवा श्रम बल में कमी से होने वाली आर्थिक हानि का अनुभव कर रहा है। ऐसे में अब भारत को विकास के मद्देनजर आदर्श जनसंख्या की नई रणनीति के तहत ध्यान देना होगा कि 2050 तक लगभग 55 देशों की आबादी एक फीसद तक घटने का अनुमान है ऐसे में भारत चीन की तरह एक दंपति एक बच्चे की नीति को कठोरता से न अपनाए किन्तु एक बार फिर से देश को ‘हम दो हमारे दो’ के नारे को मूर्तरूप देने की डगर पर आगे बढ़ना होगा।
यह भी जरूरी होगा कि सरकार स्मार्ट शहरों के निर्माण के साथ-साथ शहरीकरण की बढ़ती चुनौतियों से निपटने की स्पष्ट रणनीति बनाए। जिस तरह चीन ने पिछले कुछ समय में ऐसा आर्थिक तंत्र खड़ा किया है, जिसमें उसने अधिक आबादी को अपनी कामयाबी का आधार बनाया उसी के मद्देनजर भारत में भी जरूरी होगा कि युवा जनसंख्या को श्रम कौशल से युक्त मानव संसाधन के रूप में बदल कर आर्थिक विकास का घटक बनाया जाए ताकि देश की युवा जनसंख्या नई वैश्विक रोजगार जरूरतों के मुताबिक तैयार होकर भविष्य में ऐसी पूंजी साबित हो, जिसकी मांग देश के साथ दुनिया के विभिन्न देशों में भी हो। हम आशा करें कि मोदी-2 सरकार संयुक्त राष्ट्र की नई जनसंख्या रिपोर्ट 2019 के मद्देनजर बढ़ती जनसंख्या के कारण देश के आर्थिक-सामाजिक परिदृश्य पर भयावह होती जा रही चुनौतियों का सामना करने और उनके निदान लिए सुनियोजित प्रयासों की डगर पर आगे बढ़ेगी। साथ ही, बढ़ती जनसंख्या को उपयुक्त रूप से नियंत्रित करेगी।

जयंतीलाल भंडारी


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