मुद्दा : सूखे का गहराता संकट

Last Updated 27 Jun 2019 06:57:47 AM IST

भीषण गरमी, मॉनसून में देरी और प्री-मॉनसून बारिश की कमी ने इस साल देश में सूखे के संकट को गंभीर बना दिया है।


मुद्दा : सूखे का गहराता संकट

आईआईटी, गांधीनगर के वैज्ञानिकों के मुताबिक देश का लगभग आधा हिस्सा सूखे से पीड़ित है, और इसमें भी 16 फीसद इलाके तो भीषण सूखे की मार झेल रहे हैं। यह जानकारी रियल टाइम मॉनिटिरंग सिस्टम के जरिए हासिल हुई है। आईआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर विमल मिश्र के मुताबिक देश में सूखे की स्थिति के अध्ययन के लिए रियल टाइम मॉनिटिरंग सिस्टम उनकी टीम द्वारा चलाया जाता है। सिस्टम आईआईटी, गांधीनगर के वैज्ञानिकों ने ही विकसित किया है।
आने वाले सालों में ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन के चलते सूखे के ज्यादा आसार हैं। वैज्ञानिकों ने जमीनी पानी (ग्राउंड वॉटर) के गैर-जिम्मेदाराना इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए चेताया है कि हमने ग्राउंड वॉटर के स्रोतों को और नहीं बढ़ाया, उन्हें ठीक से नहीं संभाला तो आने वाले सालों में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। ड्राउट अर्ली वार्मिग सिस्टम (ड्यूज) के अध्ययन के मुताबिक भी देश के 44 फीसद हिस्से कम या ज्यादा सूखे से पीड़ित हैं। दरअसल, इस वर्ष मॉनसून का आगमन आठ दिन की देरी से हुआ है। उसकी रफ्तार भी धीमी है। साथ ही कई राज्यों में प्री-मॉनसून की बारिश भी सामान्य से काफी कम हुई है। इससे भयावह जल संकट पैदा हो गया है। कृषि पैदावार भी कमी रहने की आशंका गहरा रही है। दरअसल, इस साल मार्च से मई तक होने वाली प्री-मॉनसून वष्रा में औसत 21 प्रतिशत की कमी आई है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार उत्तर-पश्चिम भारत में प्री-मॉनसून वष्रा में 37 फीसद की, जबकि प्रायद्वीपीय भारत में 39 फीसद की कमी रही। हालांकि फोनी तूफान की वजह से हुई वष्रा ने मध्य भारत, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में इस कमी की भरपाई कर दी। लेकिन प्रशांत महासागर में अल नीनो की वापसी के अंदेशे से इस बार मॉनसून के कमजोर होने की आशंका मंडरा रही है।

गैर-सरकारी मौसम एजेंसी स्काईमेट के अनुसार इस साल बारिश के औसत से कम, 93 प्रतिशत रहने की संभावान है। कुछ समय पहले मौसम विभाग ने 96 प्रतिशत बारिश का पूर्वानुमान जताया था। स्काईमेट के मुताबिक मध्य भारत में सबसे कम, सिर्फ  91 प्रतिशत बारिश की संभावना है। 2018 में मॉनसून की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रहने के बावजूद बड़े बांधों में पिछले वर्ष के मुकाबले 10-15 फीसद कम पानी है। केंद्रीय जल आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले सप्ताह के दौरान देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 27.265 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) जल संग्रह हुआ। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का मात्र 17 प्रतिशत है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं। पिछले दिनों चेन्नई के संकट की खबर आई। वहां इसी सप्ताह चार जलाशय सूख गए। देश के बाकी महानगरों का सूरत-ए-हाल भी बेहतर नहीं है। बेंगलुरू का भूजल स्तर पिछले दो दशक में 10-12 मीटर से गिर कर 76-91 मीटर तक जा पहुंचा है। दिल्ली का भूजल भी लगातार कम हो रहा है। महाराष्ट्र पिछले 47 साल का सबसे बड़ा सूखा झेल रहा है। अन्य कई राज्य भी इसकी चपेट में हैं।
नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अगले एक वर्ष में जल संकट की इस समस्या से 10 करोड़ लोग पीड़ित होंगे, वहीं 2030 तक देश की 40 फीसद आबादी इस गंभीर समस्या की चपेट में होगी। सच तो यह है कि मौसम में बदलाव लगातार हमारे जन-जीवन पर गहरा असर डाल रहा है। वर्ष 2018 बारिश में लगातार कमी का पांचवां साल था। इसे नोटिस में लेने की जरूरत है। हम मानकर नहीं बैठ सकते कि हालात कभी बदल भी सकते हैं। सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय का गठन कर यह जताने की कोशिश की है कि हालात की गंभीरता को लेकर सचेत है। लेकिन यह फालतू की चोंचलेबाजी है, क्योंकि केंद्रीय स्तर पर जल संसाधन मंत्रालय तो पहले से ही अस्तित्व में है। असल दरकार तो ऐसे विशेष तंत्र की है जो मॉनसून के आकलन और उसके मुताबिक रणनीति तैयार कर सके। राहत के लिए तमाम फौरी उपाय तो किए ही जाने चाहिए, लेकिन कई दीर्घकालीन कदम भी उठाने होंगे। जल प्रबंधन के साथ सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने के साथ ही पौधारोपण जैसे कार्यक्रमों को भी बढ़ावा देना होगा।

अनिल जैन


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