सरोकार : भारत पर भारी भूख की चुनौती

Last Updated 23 Jun 2019 07:25:24 AM IST

‘रामचरण मुंडा, उम्र 65 साल को विगत दो माह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन नहीं दिया गया था। हमारे अधिकारियों ने इसकी सत्यता की पड़ताल की है।’


सरोकार : भारत पर भारी भूख की चुनौती

लतेहार, झारखंड के डिप्टी कमीशनर राजीव कुमार द्वारा लतेहार के दुरूप गांव के रहने वाले आदिवासी रामचरण की मौत पर की ऐसी स्वीकारोक्ति बहुत कम देखने में आती है। अपनी पत्नी चमरी देवी और बेटी सुनिला कुमारी के साथ रामचरण गांव में ही रहते थे, उनके बेटे की मौत दो साल पहले टीबी से हुई थी। राशन डीलर की बात मानें तो चूंकि इलाके में इंटरनेट की सेवा में दिक्कते हैं, और राशन वितरण के लिए ऑनलाइन बायोमीट्रिक सिस्टम कायम किया गया है, इसलिए रामचरण को अनाज नहीं दिया जा सका था। इस मामले की असलियत कभी सामने आएगी इस पर संदेह है।

भूख से होने वाली मौतें देश में अजूबा चीज नहीं रहीं। दो साल पहले झारखंड के सिमडेगा जिले के कारीमाटी गांव की 11 वर्षीय संतोषी की मौत के बाद पता चला था कि पूरा परिवार कई दिनों से भूखा था और राशन मिलने के भी कोई आसार नहीं थे क्योंकि राशन कार्ड के साथ आधार लिंक न होने के चलते उनका नाम लिस्ट से हटा दिया गया था। अपनी मां की गोद में ‘भात-भात’ कहते दम तोड़ी संतोषी की दास्तां ने लोगों को विचलित किया था। संतोषी की मौत के एक साल बाद ‘राइट टू फूड कैंपेन’अन्न का अधिकार के लिए संघषर्रत कार्यकर्ताओं ने बाकायदा एक सूची जारी की थी कि वर्ष 2015 से ऐसी कितनी मौतें हुई हैं। उन्होंने बताया कि जहां भूख के चलते कथित मौतों की संख्या 56 है, जबकि इनमें से 42 मौतें 2017 और 2018 के दरमियान हुई। उनका यह भी कहना है कि ‘इन मौतों में से अधिकांश मौतें आधार प्रणाली के चलते हुई हैं क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की गड़बड़ियों, नेटवर्क की समस्याओं आदि के चलते वे अपना अनाज प्राप्त नहीं कर सके थे। जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और उनके सहयोगियों द्वारा झारखंड के 32 गांवों के एक हजार परिवारों का किया गया अध्ययन इसी बात की ताकीद करता है, जिसके मुताबिक आधार लिंक न होने, या लिंक होने के बावजूद अंगूठे के न पहचानने के चलते अनाज से वंचित लोगों का अनुमान 20 फीसद है।
विडम्बना ही रही है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार स्पष्ट किया हो कि राशन कार्ड अगर आधार लिंक न भी हो तो उसे अनाज से वंचित न किया जाए, भले ही सरकारों की तरफ से दावे किए जाते रहते हों कि बायोमीट्रिक आईडेंटिफिकेशन/जीवमितिक शिनाख्त/के अनिवार्य किए जाने के बावजूद किसी को अनाज से वंचित नहीं किया जा रहा है, लेकिन देखने में आ रहा है कि जमीनी हकीकत इन दावों से मेल नहीं खाती रही है। सोचने का सवाल है कि क्या इन मौतों को महज तकनीकी गड़बड़ियों तक न्यूनीकृत किया जा सकता है? क्या इसके कोई संरचनागत कारण नहीं हैं? अध्ययन बताते हैं कि किस तरह हर साल पचास लाख बच्चे कुपोषण से काल कवलित होते हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स अर्थात वैश्विक भूख सूचकांक के आंकड़े भारत की बद से बदतर होती स्थिति को ही रेखांकित करते रहे हैं। अगर 2018 में 119 मुल्कों की कतार में भारत 103 नम्बर पर स्थित था तो 2017 में 97 पर था। मुमकिन है कि अपनी असफलता छिपाने के लिए वह आइंदा ऐसे तर्क भी देने लगे कि जब दुनिया के बड़े-बड़े मुल्क इस चुनौती से निजात नहीं पा रहे हैं, तो अपने जैसे देश की कहां गिनती होगी।

सुभाष गाताडे


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