पांच उप मुख्यमंत्री : एक फूहड़ नजीर

Last Updated 17 Jun 2019 07:38:51 AM IST

किसी भी राज्य की सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाया जाना कोई नई बात नहीं है। विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल में अपने सूबे की राजनीतिक और सामाजिक समीकरण साधने या प्रशासनिक तकाजे के तहत अपने किसी वरिष्ठ मंत्री को उप मुख्यमंत्री मनोनीत करते रहे हैं।


पांच उप मुख्यमंत्री : एक फूहड़ नजीर

किसी-किसी प्रदेश में गुटीय या सामाजिक संतुलन साधने के मकसद से दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाने के भी कई उदाहरण हैं। लेकिन आंध्र प्रदेश में नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने अपने मंत्रिमंडल के भीतर ही एक उप मुख्यमंत्री मंडल भी बना डाला है। अपनी 25 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में उन्होंने पांच उप मुख्यमंत्री बनाए हैं। ये पांच उप मुख्यमंत्री पांच अलग-अलग वगरे-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछडा वर्ग, अल्पसंख्यक और कापू (किसान) समुदाय से बनाए गए हैं। आजाद भारत के राजनीतिक इतिहास में इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।
हाल ही में हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। जाहिर है, सामान्य वगरे के अलावा उन्हें इन पांचों समुदायों का भी समर्थन मिला है और वे चाहते हैं कि अपनी सरकार में इन्हें समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाए। जगनमोहन की मंशा सही हो सकती है पर यह तरीका हमारे राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था को हल्का बनाने वाला है। जब से गठबंधन राजनीति का दौर शुरू हुआ है, उप मुख्यमंत्री का पद आमतौर पर सबसे बड़े साझीदार दल को दिया जाता है। अलग-अलग समुदायों का प्रतिनिधित्व दिखाने के लिए एक या दो उप मुख्यमंत्री बनाने का चलन भी पहले से चला ही आ रहा है। हालांकि अपने देश के संविधान में उप प्रधानमंत्री या उप मुख्यमंत्री जैसे पदों का कोई प्रावधान ही नहीं है।

फिर भी कई मौके ऐसे आते हैं, जब प्रधानमंत्री अपने किसी वरिष्ठ मंत्री को उप प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अपने किसी वरिष्ठ मंत्रिमंडलीय सहयोगी को उप मुख्यमंत्री मनोनीत करते हैं। चूंकि यह पद संवैधानिक नहीं होते हैं, लिहाजा इन पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों को कोई विशिष्ट अधिकार या शक्तियां हासिल नहीं होती हैं और व्यावहारिक तौर पर वे भी अन्य कैबिनेट मंत्रियों की तरह ही काम करते होते हैं। इन पदों पर मनोनयन विशेष परिस्थितियों में ही होता है, खासकर गठबंधन सरकारों में संतुलन साधने और सरकार को मजबूती देने के लिए। कभी-कभी किसी मंत्री के विशिष्ट राजनीतिक कद को गरिमा प्रदान करने के लिए भी उसे इस पद पर मनोनीत किया जाता है। आमतौर पर उप प्रधानमंत्री का दर्जा गृह, वित्त और रक्षा जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे मंत्री को ही दिया जाता है। आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में गठित पहले मंत्रिमंडल में गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को इसी मकसद से उप प्रधानमंत्री बनाया गया था। 1950 में उनकी मृत्यु के बाद लंबे समय तक कोई उप प्रधानमंत्री नहीं रहा। 1967 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुटीय संतुलन साधने के मकसद से वित्त मंत्री मोरारजी भाई देसाई उप प्रधानमंत्री बनाए गए थे। इसके बाद भी उप प्रधानमंत्री बनाए जाने के कई उदाहरण सामने आए। और यह सिलसिला 2002 तक चला, जब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री बनाए गए।
बहरहाल आंध्र प्रदेश में पांच अलग-अलग वगरे से जो पांच उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं, उसमें भी प्रदेश की आधी आबादी यानी महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं है। मुख्यमंत्री जगनमोहन से पूछा जा सकता है कि किसी महिला को उप मुख्यमंत्री बनाने लायक उन्होंने क्यों नहीं समझा? यह भी संभव है कि आने वाले दिनों में कुछ और समुदायों के लोग अपना-अपना उप मुख्यमंत्री बनाने की मांग करें। अगर ऐसा हुआ तो जगनमोहन किस-किसको यह पद बांटेंगे? यह भी विचारणीय है कि दिखावटी पद बांटकर विभिन्न समुदायों को संतुष्ट करने की यह राजनीति सूबे की प्रशासनिक व्यवस्था की कैसी गत बनाएगी? असल में यह एक नेता में आत्मविश्वास की कमी का सूचक है। शायद जगनमोहन को यह भरोसा नहीं है कि अपने कामकाज से वे राज्य की पूरी जनता का दिल जीत सकते हैं या शायद उन्हें यह आशंका है कि विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधि कहीं बीच में ही उनका साथ न छोड़ दें। क्या इसी स्थिति से बचने के लिए जगनमोहन ने उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद बतौर एडवांस में पेश कर दिया है? जो भी हो, जगनमोहन ने पांच उप मुख्यमंत्री बनाकर देश के अन्य राज्यों के लिए एक बहुत ही फूहड़ राजनीतिक नजीर पेश की है।

अनिल जैन


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