धोखाधड़ी : आखिर ग्राहक क्यों भुगते
एटीएम के असुरक्षित होने की घटनाओं ने आम लोगों को बेचैन कर दिया है। डेबिट कार्ड की क्लोनिंग, डाटा चोरी और तरह-तरह की चार सौ बीसी घटनाओं ने एटीएम और डेबिट व क्रेडिट कार्ड के दुरुपयोग से जुड़ी चिंता बढ़ा दी है।
धोखाधड़ी : आखिर ग्राहक क्यों भुगते |
नोटबंदी के बाद से कैशलेस इकॉनमी के सपने ने डिजिटल ट्रांजेक्शन समेत डेबिट-क्रेडिट कार्ड, एटीएम और पीओएस पर लोगों को निर्भर बनाया है। इससे घर बैठे-बैठे लुट जाने की चिंता भी कई गुणा बढ़ गई है। जहां 2015-16, 2016-17 और 2017-18 में एटीएम/डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग से जुड़ी धोखाधड़ी की घटनाएं 1191, 1372 और 2059 रहीं, वहीं 2018-19 में 30 सितम्बर 2018 तक यह आंकड़ा 921 था। खास बात यह कि ये आंकड़े 1 लाख से अधिक रकम की धोखाधड़ी की घटनाओं से जुड़े हैं। ताजा आंकड़े निश्चित रूप से पुराने रिकॉर्ड तोड़ रहे होंगे। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक 9622 साइबर क्राइम के मामले 2014 में दर्ज किए गये थे जो 2015 में बढ़कर 11, 592 हो गए।
विगत वर्ष का आंकड़ा है कि देश में एक अरब डेबिट कार्ड हैं, और क्रेडिट कार्ड की संख्या भी 4 करोड़ से ज्यादा है। छह तरीके के डेबिट कार्ड भारत में प्रचलन में हैं। इनमें शामिल हैं वीजा कार्ड, वीजा इलेक्ट्रॉन डेबिट कार्ड, मास्टर कार्ड, कॉन्टेक्टलेस कार्ड, रूपै डेबिट कार्ड, मैएस्ट्रो डेबिट कार्ड। डेबिट और क्रेडिट कार्ड को लेकर जो ख़्ातरे बढ़े हैं, उनकी वजह भी समझना जरूरी है। धोखाधड़ी के लिए जो तरीके अपनाए जा रहे हैं। उनमें शामिल हैं-खरीददारी करते समय चोरी से कार्ड की डिटेल स्कैन कर लेना, एटीएम में स्किमिंग के माध्यम से डेबिट कार्ड की डिटेल चुराना (एक छोटी डिवाइस होती है स्किमर जिसे दुकानों पर पेमेंट करते समय या एटीएम में भी फिट कर लिया जाता है और सारी डिटेल चुरा ली जाती है), स्पूफिंग यानी धोखाधड़ी। इसके जरिए फर्जी कॉल आदि के जरिए कार्ड की ओटीपी, पिन जैसी बातें पता कर ली जातींहैं, और क्लोनिंग के लिए स्कीमिंग का इस्तेमाल होता है (डेटा इकट्ठा कर लेने के बाद उसी से डुप्लीकेट डेबिट कार्ड बना लिया जाता है।
अपनी गलती से भी हम मुश्किल में पड़ जाते हैं। अगर हमने पिन, पार्सवड और दूसरी जानकारियां साझा की हैं, तो हम डेबिट या क्रेडिट कार्ड की धोखाधडी के शिकार हो जाते हैं। एक बार अगर अकाउंट से पैसे निकल जाएं तो उन्हें दोबारा पाना मुश्किल हो जाता है। देश का कानून भी ऐसे धोखेबाजों पर बहुत सख्त नहीं है। ऐसे में सुरक्षा ही बचाव है। आप अहतियातन कुछ कदम उठा सकते हैं ताकि धोखेबाजी की आशंका को कमतर कर सकें-पहला काम यह होना चाहिए कि हम अपने फोन नम्बर को उस बैंक के साथ रजिस्र्टड करा कर रखें जिनका एटीएम या क्रेडिट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे ट्रांजेक्शन की जानकारी मिलती रहती है। जैसे ही संदेहास्पद ट्रांजेक्शन हो, तुरंत कस्टमर केयर पर फोन कर आपत्ति दर्ज करा दें। उसके बाद थाने में शिकायत करें और शिकायत की कॉपी लेकर बैंक से संपर्क करें। दूसरा यह काम करें कि हम अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड की लिमिट कम से कम रखें जिससे जरूरत भी पूरी हो और दुरुपयोग होने की स्थिति में नुकसान कम से कम हो। तीसरी पहल बैंक की ओर से बीमा कराए जाने को स्वीकार करना भी है, जिसमें एक निश्चित रकम देनी होती है। धोखाधड़ी की स्थिति में डूबी हुई रकम वास्तव में वापस मिल जाती है। चौथा यह करने की जरूरत है कि अपने कार्ड को इंटरनेशनल सुविधा से युक्त बनाकर न रखें। ऐसी स्थिति में दूसरे देश से धोखाधड़ी की आशंका खत्म हो जाती है। जब जरूरी हो, तो आग्रह करके यह सुविधा हासिल कर लें।
पांचवी पहल उस सुविधा को हासिल करना हो सकता है, जिसके तहत कई बैंक प्रीमियम कार्ड पर खर्च को चालू करने या बंद करने का विकल्प देते हैं। और छठी पहल हमेशा सुरक्षित साइट का इस्तेमाल करना हो सकती है। सुरक्षित साइट वह है जिसमें ण्द्यद्यद्रद्म :// हो और ताले का निशान दिख रहा हो। एटीएम या डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड की धोखाधड़ी बड़ी चिंता की बात है। रकम वापस मिलने, धोखेबाजों को सजा दिलाने जैसी व्यवस्था अभी शैशव अवस्था में है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि ग्राहक खुद अपनी रकम बचाने के लिए सचेत रहें। बैंक को जिम्मेदारी से बांधने की जरूरत है। अगर उनके पास ग्राहक की जमा रकम कोई चुरा ले जाता है, तो इसका खमियाजा ग्राहक क्यों भुगते?-यह बड़ा सवाल है।
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