सरोकार : युवाओं में बढ़ती नशे की लत चिंताजनक
सब जानते हैं कि शराब स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है, पर इस बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी उपलब्ध है कि इससे सबसे अधिक खतरा युवा वर्ग को है।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की शराब व स्वास्थ्य स्टेटस रिपोर्ट (2018) के अनुसार विश्व में वर्ष 2016 में शराब से 30 लाख मौतें हुई। यह जानकारी अपने आप में डराने वाली है, पर हम केवल युवा वर्ग के आंकड़ों को देखें तो स्थिति और भी खतरनाक नजर आती है। रिपोर्ट के अनुसार 20 से 29 आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 13.5 प्रतिशत शराब से होती हैं। शराब उद्योग मिथक फैलाने के लिए प्रयासरत है कि थोड़ी सी शराब पीने से नुकसान नहीं होता है। सच्चाई एक हालिया अध्ययन में सामने आई है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है। इसके मुख्य लेखक मैक्स ग्रिसवोल्ड ने बताया कि एल्कोहल की कोई ऐसी सुरक्षित मात्रा नहीं है। (न्यूनतम मात्रा से भी नुकसान होता है)। अमेरिकी और यूरोपीय महाद्वीपों के अनेक स्कूलों के सव्रेक्षणों से पता चलता है कि 15 वर्ष से कम आयु से ही शराब पीना शुरू हो जाता है। सव्रेक्षणों में छात्राओं का प्रतिशत छात्रों के प्रतिशत के लगभग बराबर ही पाया गया। पिता (या अभिभावक) के शराब पीने से बच्चों पर कई दुष्परिणाम होते हैं जैसे अवसाद, भावनात्मक क्षति, अकेलापन। बच्चों की शिक्षा और सीखने की क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।
अनेक देशों में कच्ची उमर में ही शराब पीने की प्रवृत्ति बढ़ चुकी है जो विशेषकर किसी-किसी दिन मिलकर बहुत छककर पीने में प्रकट होती है, जिसे एचईडी ड्रिंकिंग (हैवी एपीसोडिक ड्रिंकिंग) कहा जाता है। एचईडी ड्रिंकिंग मस्तिष्क के लिए विशेष हानिकारक मानी गई है। जो कच्ची उमर में एचईडी ड्रिंकिंग करते हैं, उन्हें आगे चलकर एल्कोहल की लत लगने की संभावना बढ़ जाती है। एक अन्य प्रवृत्ति ड्रंकोरेक्सिया विशेषकर कॉलेज की छात्राओं में चल निकली है-वे छरहरापन बनाए रखने और इसके लिए कैलोरी का उपभोग कम करने के लिए बिना भोजन किए शराब का उपभोग करती हैं जो और भी अधिक हानिकारक सिद्ध होता है क्योंकि इससे एल्कोहल बहुत शीघ्र ही रक्त में पंहुच जाता है। मार्टिन और हमर के एक चर्चित अनुसंधान पत्र में बताया गया है कि अनेक सामाजिक पार्टियों और समारोहों में महिलाओं पर शराब पीने के लिए दबाव बनाया जाता है, जिससे उनके यौन शोषण में आसानी हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रति व्यक्ति शराब की खपत अमेरिका और यूरोप के धनी देशों में सबसे अधिक है, पर वृद्धि की दर चीन और भारत में अधिक है। शराब और अन्य तरह के नशे के विरुद्ध भारत में जो सामाजिक मान्यता बहुत पहले से रही है, उसे समाप्त नहीं होने देना चाहिए बल्कि उसे तो और मजबूत करने की जरूरत इस समय है। जिस तरह दूर-दूर के गांवों तक में शराब का चलन तेजी से बढ़ रहा है, और शराब के बढ़ते चलन के साथ अपसंस्कृति का प्रसार बढ़ रहा है, इस दौर में तो शराब और नशे के विरुद्ध सामाजिक मान्यताओं को और भी मजबूत करना जरूरी हो गया है। युवाओं और छात्रों तक शराब से जुड़ी तमाम गंभीर समस्याओं की जानकारी असरदार ढंग से पंहुचानी चाहिए। पाठय़क्रम में भी इस विषय को स्थान मिलना चाहिए। युवाओं और छात्र-छात्राओं को इस अभियान में सक्रिय भागेदारी के लिए भी तरह-तरह से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
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