वैश्विकी : जयशंकर: फलित आत्मविश्वास

Last Updated 09 Jun 2019 12:23:57 AM IST

नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में विदेश नीति को संचालित करने का ताना बाना बुनना शुरू कर दिया है।


वैश्विकी : जयशंकर: फलित आत्मविश्वास

सबसे पहले उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में किसी राजनीतिक की बजाय अनुभवी पेशेवर लोक सेवक को चुना है। एस. जयशंकर की नियुक्ति से साफ है कि मोदी विदेश नीति को पेशेवर अंदाज में चलाना चाहते हैं। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने  वरिष्ठता क्रम को नजरअंदाज करते हुए जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया था। इसका एक कारण था कि जयशंकर चीन और अमेरिका में राजदूत रह चुके हैं। भारत की विदेश नीति की सफलता इसी में निहित है कि वह अमेरिका और चीन के बीच अपने संबंधों का निर्धारण कैसे करता है, और कैसे संतुलन कायम करता है। जयशंकर के साथ ही प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पर विश्वास कायम रखा है। जयशंकर के कैबिनेट स्तर के मंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद मोदी ने डोभाल का दर्जा भी कैबिनेट स्तर का कर दिया है। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में जयशंकर और डोभाल के बीच हैसियत को लेकर कशमकश के कयास लगाए जा रहे थे। मोदी ने सरकार की शक्ति का आधार बनने वाले इन दोनों व्यक्तियों के बीच तालमेल बिठा दिया है।
लोक सभा चुनाव में विराट जनादेश से मोदी में जो आत्मविश्वास पैदा हुआ है, वह विदेश नीति में भी दिखाई देगा। उनकी सक्रिय विदेश नीति जारी रहने की संभावना है। उन्होंने सबसे पहले ध्यान पड़ोसी देशों पर केंद्रित किया है। शपथ ग्रहण के दौरान बंगाल की खाड़ी से जुड़े देशों के संगठन ‘बिम्सटेक’ के नेताओं को आमंत्रित किया। पाकिस्तान को दरकिनार  करके अन्य पड़ोसी देशों को भारत की सद्भावना व सहयोग के प्रति आस्त किया है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने राजनयिक की अपनी दूसरी पारी शुरू कर दी है। उन्होंने अपनी विदेश यात्रा के लिए पड़ोसी मालदीव को चुना, वहीं विदेश मंत्री जयशंकर भूटान की यात्रा पर गए हैं। पश्चिम में मालदीव और पूरब में म्यांमार भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा के विषय हैं। मोदी इन दोनों देशों के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को पुख्ता करने के लिए प्रयासरत हैं। इससे चीन के प्रभाव को सीमित रखा जा सकेगा। इसी महीने के मध्य में मोदी शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में भाग लेने किर्गिस्तान जाने वाले हैं। यहां उन्हें रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने का अवसर मिलेगा। बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भाग लेने की संभावना है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक, मोदी इमरान से कोई बातचीत नहीं करने वाले हैं। बैठक में भारत मध्य एशिया के देशों के साथ आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में मिलकर काम करने की पेशकश कर सकता है। शंघाई सहयोग संगठन आतंकवाद से लड़ने का मंच है। 
विदेश मंत्री बनने के बाद पहले संबोधन में जयशंकर ने विदेश नीति के संबंध में अपनी प्राथमिकताओं का ब्योरा दिया है। उनके राजनय में निरंतरता भी है, और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन की संभावनाएं भी। वह पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की विरासत को आगे बढ़ाएंगे और विदेशों में रहने वाले भारतीयों के हितों पर भी ध्यान देंगे। जयशंकर ने पड़ोसी प्रथम की नीति को प्राथमिकता में रखा है, लेकिन विदेश नीति में पुनर्रचना का इस अर्थ में संकेत दिया है कि ‘बिम्सटेक’ सार्क की जगह ले रहा है। इसका आशय है कि भारत अपने क्षेत्रीय संबंधों को सुदृढ़ बनाने के लिए बिम्सटेक को प्राथमिक मंच बना रहा है। अब तक इस क्षेत्र की समस्याओं को भारतीय विदेश नीति में उपेक्षित किया गया था, लेकिन जयशंकर ने जो संकेत दिया है, उसके मुताबिक इस क्षेत्र को और यहां के लोगों को प्राथमिकता में लिया जा रहा है। जयशंकर का कथन दिखाता है कि पारंपरिक तौर पर हमारी विदेश नीति पहले से ही निर्धारित हुआ करती थी। लेकिन अब तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार ही इसकी घोषणा होगी। यह बताता है कि विदेश नीति वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में होने वाले उतार-चढ़ाव और अमेरिका तथा चीन के बीच छिड़े नये शीत युद्ध से विचलित नहीं होगी, बल्कि नई विश्व व्यवस्था में अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए आगे बढ़ेगी। मोदी की विदेश नीति के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, उसे  किया कैसे जाएगा, यह महत्त्वपूर्ण सवाल है।  मोदी के दूसरे कार्यकाल में इसकी परीक्षा भी होगी।

डॉ. दिलीप चौबे


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