अर्थव्यवस्था : आर्थिक शिथिलता की गिरफ्त में
कहना न होगा कि 2014 की तुलना में इस बार राजग सरकार से जनापेक्षाएं और जनांकाक्षाएं कहीं ज्यादा है। विभिन्न वगरे-ग्रामीण, शहरी और कॉरपोरेट-सभी की मोदी सरकार से खासी अपेक्षाएं हैं।
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कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के नाजुक दौर में होने से लोगों की सरकार से उम्मीद और भी बढ़ गई है। सरकार जिन आर्थिक सुधारों को लागू करने की तरफ अग्रसर है, या जिन आर्थिक बदलावों को लाने को तत्पर है, उनसे आमजन को उम्मीद है कि इनसे रोजगार अवसरों का नवसृजन होगा। आम जन का जीवन बेहतर हो सकेगा।
केंद्र में मजबूत सरकार होने से अर्थव्यवस्था के कायाकल्प का यह मुफीद समय कहा जा सकता है। आर्थिक सुधारों को पूरी संजीदगी से लागू करने का है यह समय। लेकिन सच यह है कि आर्थिक मोच्रे पर निराशाजनक स्थिति है। यूनाइटेड नेशंस र्वल्ड इकनॉमिक सिचुएशन एंड प्रोस्पेक्ट्स ने अनुमान जताया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कैलेंडर वर्ष 2019 में वृद्धि 7% रहेगी। कैलेंडर वर्ष 2020 के लिए 7.1% का अनुमान लगाया है। लेकिन अभी 6.8% का एक अन्य बेहद निराशाजनक आंकड़ा भी सामने आया है। कहना यह कि अर्थव्यवस्था आर्थिक शिथिलता की गिरफ्त में है। आर्थिक विकास के दो इंजन-उपभोग और निवेश-थम से गए हैं। निवेश तो जैसे जड़वत है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ठहराव है। इन कारणों से कॉरपोरेट भी चिंतित है। उसे उम्मीद है कि सरकार आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज लाएगी। अर्थव्यवस्था नकदी के संकट से जूझ रही है। ऐसे में ढांचागत निर्माण परियोजनाओं में निवेश बढ़ाना जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम तेजी से कार्यान्वित करने होंगे। लेकिन दो अंकीय विकास दर हासिल करने के लिए इतना भर काफी नहीं है। उपभोग चक्र को तत्काल गतिमान करना होगा। पिछले कुछ महीनों से उपभोग का पहिया ठहरा हुआ सा है। नकदी संकट से समूचा वित्तीय क्षेत्र सहमा है। ऋण उपलब्धि के सिलसिले को झटका लगा है। वित्तीय क्षेत्र की अनेक इकाइयों के अस्तित्व पर बन आई है।
दरअसल, अनेक कारक रहे जिनके चलते नकदी संकट की गिरफ्त कसी। विमुद्रीकरण, जरूरत मुताबिक ऋण की कमी, बैंकों की बैलेंस शीट पर भारी पड़ते डूबत ऋण (एनपीए), भारतीय रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीति (जिसमें मुद्रास्फीति को काबू रखने पर ज्यादा बल दिया गया) और सरकार खर्च में कमी आदि तमाम घटनाक्रम करीब-करीब एक साथ घटने से आर्थिक वृद्धि का चक्र धीमा पड़ गया। अर्थव्यवस्था में नकदी के संकट से पार पाने के लिए सरकारी खर्च में वृद्धि करनी होगी। इससे ही आर्थिक गतिविधियों में रवानी आ सकेगी। अलबत्ता, इस उपाय के परिणामस्वरूप महंगाई में इजाफे से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही, यह भी होगा कि इस उपाय के परिणाम थोड़े विलंब से मिलेंगे। इतना तय है कि इससे अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति बेहतर होगी। उपभोक्ता मांग बढ़ाया जाना बहुत जरूरी है। करों की दरों को युक्ति संगत बनाया जाना भी इस दिशा में एक माकूल उपाय है। खासकर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के स्लैबों को तर्क संगत बनाया जाना चाहिए। विभिन्न उद्योग एवं कारोबारी संगठन मांग करते रहे हैं कि जीएसटी का सरलीकरण किया जाए। करों के युक्ति संगत होने से करों के भुगतान संबंधी अनुपालना की स्थिति बेहतर होती है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर होती चली जाने से बीते एक वर्ष के दौरान ग्रामीण क्षेत्र की क्रय क्षमता खासी घटी है। मानसून भी सामान्य या कम रहने के अनुमान के मद्देनजर जरूरी हो गया है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सर्वाधिक तवज्जो दी जाए वरना तो इस क्षेत्र की स्थिति और भी खराब हो जाने का अंदेशा है। वित्तीय वर्ष 19 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.8% रहने का अनुमान है, जो बीते तीन वर्षो में सबसे कम है। हालांकि किसानों को सालाना छह हजार के पैकेज, साठ वर्ष की आयु पूरी कर चुके किसानों के लिए पेंशन योजना आदि उपायों से कृषि परिवारों को निश्चित ही फायदा होगा। फिर विभिन्न राज्यों में कर्जमाफी योजना से किसान पर आर्थिक बोझ कम होगा। और ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक हालात साजगार हो सकेंगे। एक बात जरूर है कि ग्रामीण क्षेत्र के प्रोत्साहन के लिए लागू होने वाली इन योजनाओं के प्रतिफल मिलने में थोड़ा समय तो लगेगा। लेकिन यह भी यकीन के साथ कहा जा सकता है कि इनसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के हालात सुधरेंगे। जहां तक निवेश के मोच्रे की बात है, तो कारोबारी सुगमता की सूची में भले ही भारत कुछ पायदान ऊंचे पहुंच गया हो लेकिन अभी तक इसका लाभ नहीं मिल पाया है। न तो घरेलू निवेश के मोच्रे पर और न ही विदेशी निवेश के मामले में।
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