ट्रेडवार : नई सरकार के लिए चुनौती

Last Updated 21 May 2019 04:56:36 AM IST

इन दिनों अमेरिका और चीन के बीच तेजी से बढ़ते ट्रेडवार के खतरों से भारत को बचाना आने वाली सरकार की बड़ी चुनौती होगी।


ट्रेडवार : नई सरकार के लिए चुनौती

एक ओर चीन अपने उन उत्पादों को भारतीय बाजार में तेजी से भेजना चाहेगा जिन पर अमेरिका में आयात शुल्क बढ़ गया है। दूसरी तरफ अमेरिका भी भारत के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर भारत को ट्रेडवार की चपेट में ले सकता है। ऐसे में जरूरी होगा कि नई सरकार भारत को ट्रेडवार के नये खतरों से बचाने के लिए रणनीति बनाए।
वैिक स्तर पर एक अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत हुई है। इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में अमेरिका और चीन के ट्रेड वार के कारण इन दोनों देशों में भारत से 3.5 फीसदी निर्यात बढ़ेंगे। अमेरिका ने पिछले वर्ष कुछ चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क लगातार व्यापार युद्ध की शुरुआत की। जवाब में चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर आयात शुल्क लगा दिए। इस व्यापार युद्ध से भारी हानि की आशंका को देखते हुए अमेरिका और चीन ने 24 अगस्त, 2018 के बाद लगातार समाधान वार्ता की, लेकिन 10 मई तक कोई समाधान नहीं निकला। वार्ता को टूट के कगार पर देखकर अमेरिका ने 10 मई से चीन से आयातित 200 अरब डॉलर की वस्तुओं पर शुल्क की दर मौजूदा 10 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दी। इस पर 13 मई को चीन ने कहा कि वह 1 जून से अमेरिका से आयात होने वाले 60 अरब डॉलर मूल्य की 5140 वस्तुओं पर आयात शुल्क 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 फीसद कर देगा। यद्यपि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध वैिक अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है, लेकिन भारत को इन दोनों देशों में निर्यात बढ़ाने के जो मौकों को भुनाना होगा। इससे देश का व्यापार घाटा कम करने में भी मदद मिलेगी।

विदेश व्यापार विशेषज्ञों का मत है कि अमेरिका से चीन में अमेरिकी सामानों की आवक घटने पर भारत-चीन को करीब 100 उत्पादों की आपूर्ति बड़े पैमाने पर कर सकता है। इनमें तंबाकू, ताजा अंगूर, रबर, गोंद, ल्युब्रिकेंट्स, सोयाबीन, ऑयल, अलॉय स्टील, कॉटन, बादाम, अखरोट, कृषि उत्पाद, विभिन्न रसायन आदि शामिल हैं। भारत संतरे, बादाम, अखरोट, गेहूं और मक्का का निर्यात दूसरे देशों को तो करता है, लेकिन चीन को नहीं। चीन इन्हें अमेरिका से खरीदता है। अप्रैल, 2019 में चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत ने 380 उत्पादों की सूची चीन को भेजी है, जिनका चीन को निर्यात बढ़ाया जा सकता है। इनमें मुख्य रूप से बागवानी, वस्त्र, रसायन और औषधि क्षेत्र के उत्पाद शामिल हैं। वर्तमान में चीन भारतीय उत्पादों का तीसरी बड़ा निर्यात बाजार है, वहीं चीन से भारत सबसे ज्यादा आयात करता है। दोनों देशों के बीच 2001-02 में आपसी व्यापार महज तीन अरब डॉलर था, जो 2018-19 में बढ़कर करीब 88 अरब डॉलर पर पहुंच गया। ऐसे में अमेरिका और चीन के ट्रेडवार के बीच भारत से चीन को निर्यात बढ़ने की संभावनाओं से भारत-चीन व्यापार घाटे में और कमी आएगी। निश्चित रूप से मई, 2019 में अमेरिका से बढ़ते व्यापार युद्ध के मोर्चे पर अमेरिका का सामना करने के लिए भारत को अपने पक्ष में करने के लिए चीन करीब आते नजर आ रहा है। इसी तरह अमेरिका में चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क संबंधी प्रतिबंधों के कारण अमेरिका में चीनी उत्पादों की आमद घट जाएगी। ऐसे में भारत अमेरिका में मशीनरी, इलेक्ट्रिकल उपकरण, रबड़ जैसे उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्यात बढ़ा सकता है। भारत अमेरिका को टेक्सटाइल, गारमेंट और जेम्स-ज्वैलरी का निर्यात भी बढ़ा सकता है। अमेरिका के लिए मेक्सिको के बाद चीन ऑटो पार्ट्स का दूसरा बड़ा सप्लायर है। कुछ अमेरिकी कंपनियां भारत से इन्हें खरीदने में रु चि दिखा रही हैं।
यद्यपि अमेरिका को भारत के निर्यात की नई संभावनाएं हैं, लेकिन जरूरी है कि भारत के अमेरिका के साथ व्यापार मतभेदों का उपयुक्त समाधान हो। बेशक, भारत का यह सराहनीय कूटनीतिक कदम है कि भारत में अमेरिका से आयातित, बादाम, अखरोट और दालें समेत 29 वस्तुओं पर जवाबी शुल्क लगाने की समय सीमा को लगातार आगे बढ़ाया है, और अब यह सीमा 16 जून, 2019 तक के लिए बढ़ा दी गई है। ऐसे में भारत-अमेरिका के बीच कारोबारी तनाव को कम करने के लिए व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाना होगा। ऐसा होने पर ही अमेरिका चीन के ट्रेड वार का फायदा लेते हुए भारत अमेरिका को निर्यात में नये सिरे से वृद्धि कर सकेगा। हम आशा करें कि केंद्र में बनने वाली नई सरकार भारत को एक ओर ट्रेडवार के खतरों से बचाने तथा दूसरी ओर अमेरिका और चीन में निर्यात बढ़ाने के लिए सुनियोजित रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी।

जयंतीलाल भंडारी


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