सरोकार : लोग ही लोग होंगे तब संसाधन नहीं

Last Updated 14 Apr 2019 07:03:27 AM IST

भारत की बढ़ती जनसंख्या वृद्धि दर को देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक वैश्विक जनसंख्या में भारत चीन को मात देकर दुनिया का नंबर वन देश बन जाएगा।


सरोकार : लोग ही लोग होंगे तब संसाधन नहीं

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की जारी ‘स्टेट ऑफ र्वल्ड पॉपुलेशन 2018 रिपोर्ट’ के मुताबिक भारत की जनसंख्या साल 2010 से 2019 के बीच में हर साल 1.2 फीसद बढ़ी है। जबकि इस अवधि में वैश्विक औसत 1.1 फीसद रही। भारत का आंकड़ा चीन से दोगुना अधिक है। इस समय के दौरान चीन में हर साल जनसंख्या में 0.5 फीसद की वृद्धि हुई है।
गौरतलब है कि विश्व की जनसंख्या 2019 में बढ़कर 771.5 करोड़ हो गई है, जो पिछले साल 763.3 करोड़ थी। बढ़ती जनसंख्या न केवल वर्तमान विकास क्रम को प्रभावित करती है, बल्कि अपने साथ भविष्य की कई चुनौतियां भी लेकर आती है। चीन के मुकाबले भारत की ये बढ़ती हुई जनसंख्या की खबर सुनकर हम खुश तो हो सकते हैं। परंतु ये आगे चलकर एक गंभीर समस्या बनेगी। जहां चीन में प्रशिक्षित लोगों की संख्या इक्यानवे प्रतिशत है, वहीं भारत में करीब बीस प्रतिशत ही लोग ठीक से प्रशिक्षित हैं। जाहिर है कि जैसे-जैसे भारत की जनसंख्या बढ़ेगी, गरीबी का रूप भी विकराल होता जाएगा। पानी-बिजली, आवास की समस्या, अशिक्षा का दंश, खाद्य संकट, चिकित्सा की बदइंतजामी व रोजगार की समस्याओं से जूझना पड़ेगा। सालों पहले भूगोलवेत्ता माल्थस के मुताबिक मानव जनसंख्या ज्यामितीय आधार पर बढ़ती है, लेकिन भोजन और प्राकृतिक संसाधन अंकगणितीय आधार पर बढ़ते हैं। यही वजह है कि जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अंतर उत्पन्न हो जाता है।

इस जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार कौन है? दरअसल सरकार अपना वोटबैंक सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान व योजनाओं को हल्के में जाने देती है। आखिर कोई सरकार क्यों अपने ही हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलायेगी! इन्हीं सब कारणों की वजह से एक बच्चा नीति भारत में लागू हो पानी असंभव-सी प्रतीत होती है। हकीकत तो यह की ‘दो बच्चे ही अच्छे’ के सिद्धांत से भी कोसों दूर हैं। आजादी के समय भारत की आबादी 34 करोड़ थी, जो 2011 के जनगणना में बढ़कर लगभग 121.5 करोड़ हो गई है। साल 2019 तक हमारे देश की कुल आबादी लगभग 137 करोड़ आंकी जा रही है। देश में विशाल होती जनसंख्या का एक कारण पुरु षवादी मानसिकता है। बेटे के इंतजार में बेटियों की संख्या में बढ़ कर लंबा-चौड़ा परिवार हो जाता है। वहीं बाल विवाह से भी जनसंख्या का भार बढ़ रहा है।
भारत को बाकी देशों से सीखने के लिए अभी भी समय है। भारत के 24 राज्यों में रहने वाली करीब आधी जनसंख्या में प्रति महिला 2.1 प्रजनन दर है। जो अच्छा संकेत नहीं है। सबसे गरीब 20 फीसद घरों में गर्भनिरोधक जागरूकता और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सबसे बड़ी जरूरत है। वहीं चीन में जनसंख्या नियंत्रण की अपनाई नीतियों का भी अध्ययन होना चाहिए। इस मुहिम को और भी तेज करता हुए सरकार एक या दो बच्चे की नीति की पालना राष्ट्रीय स्तर पर कराये। सरकारी कर्मियों व आरक्षण-भोगियों के लिए एक बच्चा नीति चलायी जाए ताकि वे आरक्षण व सरकारी ओहदे का बांड भर सकें। बच्चों की सीमित संख्या को पदोन्नति के तर्क से जोड़ना ठीक होगा। ये उपाय जनसंख्या-नियंत्रक हो सकते हैं।

देवेन्द्र सुथार


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