भाजपा : पुरानी पिच पर लौटी

Last Updated 12 Apr 2019 05:35:31 AM IST

लोकसभा चुनाव में पहला वोट पड़ने तक ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक और रिकार्ड कायम कर चुके थे। वह स्वतंत्र भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बन गये हैं, जिनके खिलाफ आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन की सबसे ज्यादा शिकायतें चुनाव आयोग तक पहुंची हैं।


भाजपा : पुरानी पिच पर लौटी

ताजातरीन शिकायत, महाराष्ट्र में लातूर में अपने भाषण में प्रधानमंत्री के वोट के लिए बालाकोट में कार्रवाई करने वाले वायु सैनिकों की और पुलवामा के शहीदों की दुहाई का सहारा लेने की है। तब जबकि यह प्रधानमंत्री द्वारा चुनाव आयोग के इस स्पष्ट निर्देश का भी उल्लंघन था कि चुनावी या राजनीतिक प्रचार के लिए, सेना या सैनिकों की तस्वीर तक का इस्तेमाल वर्जित है।
होली के फौरन बाद, जब नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार का अपना आखिरी और निर्णायक धावा शुरू किया, तभी यह साफ हो गया था कि विकास के सभी दावे और वादे हाशिए पर धकेले जा चुके हैं। अब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में संघ, भाजपा और एनडीए, सबसे बढ़कर पाकिस्तान-विरोधी तथा एक हद तक कमीर-विरोधी भी, अंध-राष्ट्रवाद के सहारे ही, चुनाव की वैतरणी पार करने की कोशिश करने जा रहे हैं। वास्तव में यह तो फरवरी के मध्य में हुए पुलवामा के आतंकी हमले और उसके दो हफ्ते बाद, पाकिस्तान के भीतरी हिस्से में बालाकोट में जैश ए-मोहम्मद के कथित प्रशिक्षण शिविर पर  सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बने वातावरण में, अपने चुनाव प्रचार-पूर्व के चुनाव प्रचार अभियान में ही, सबसे बढ़कर खुद मोदी द्वारा गढ़े गए नैरेटिव में ही स्पष्ट कर दिया गया था।

दूसरी ओर, इसी नैरेटिव में विपक्ष को, मोदी की ऐसी साहसिक देशभक्तिपूर्ण कार्रवाई का विरोधी और वास्तव में राष्ट्रविरोधी तथा पाकिस्तान-समर्थक तक बनाकर पेश करने की कोशिश की जा रही थी। इस नैरेटिव में, पुलवामा से लेकर बालाकोट तक और वास्तव में उसके बाद भी, सैन्य बलों से लेकर मोदी सरकार तक की करनियों तथा अकरनियों पर किए जाने वाले हरेक सवाल को, पाकिस्तान और आतंकवादियों की हिमायत करार देकर, उन्मत्त राष्ट्रवाद के डंडे से पीटा जा रहा था। इसी पृष्ठभूमि में मेरठ से प्रधानमंत्री मोदी ने उन्मत्त राष्ट्रवाद के ताप को और बढ़ा दिया। बेशक, संघ-भाजपा जोड़ी के हाथों में उन्मत्त राष्ट्रवादी दुहाई, वह भी आतंकवाद/पाकिस्तान विरोध से परिभाषित राष्ट्रवादी दुहाई, सांप्रदायिक रंग लिए बिना नहीं रह सकती थी। इस चुनाव में भाजपा इस मामले में कोई कसर नहीं छोड़ सकती है। इसलिए, चुनाव प्रचार के इस अंतिम चरण में एनआरसी के बहाने, घुसपैठ से खतरे की खुलेआम बहुसंख्यक सांप्रदायिकतावादी दुहाई से लेकर, राम मंदिर तक की दुहाइयों तक को, ‘मोदी है, तभी देश सुरक्षित है’ की पुकारों के साथ जोड़ा जा रहा था। उनके सांप्रदायिक  तरका में, समझौता एक्सप्रेस आतंकी विस्फोट के मामले में एनआइए  अदालत द्वारा जाने-माने आरएसएस कार्यकर्ता, असीमानंद समेत, चारों आरोपितों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिए जाने के बाद, ‘हिंदुओं को आतंकवादी बताया’ के फर्जी आहत-भाव प्रदर्शन का जहरबुझा तीर और जोड़ दिया गया। पर शुरू में यह जिम्मा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तथा उत्तर प्रदेश के भजापायी मुख्यमंत्री, आदित्यनाथ समेत मोदी-इतर भाजपा नेताओं ने ही संभाल रखा था। इसलिए शुरू में ऐसा लग रहा था कि भाजपा ने इस बार के चुनाव प्रचार के लिए अपना कार्य-विभाजन तय कर लिया है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यत: या कम से कम शुरुआत में पाक विरोधी राष्ट्रवाद और सुरक्षा की दुहाई पर ही फोकस करेंगे ताकि अपनी सरकार के पांच साल के प्रदर्शन पर जनता को जवाब ही नहीं देना पड़े, जबकि अन्य भाजपा नेता, इस राष्ट्रवादी दुहाई के सांप्रदायिक पहलुओं को चमकाएंगे। लेकिन मोदी राज के पांच साल के रिकार्ड से जनता की नाराजगी की चुनौती के सामने, यह सुविधाजनक श्रम विभाजन, प्रचार के इस चरण का पहला हफ्ता तक पार नहीं कर पाया। नरेन्द्र मोदी ने खुद ही अपनी कथित राष्ट्रवादी दुहाई के हिंदूवादी चेहरे को साफ करने का जिम्मा संभाल लिया।
खुद प्रधानमंत्री ने इसकी शुरुआत, महाराष्ट्र में वर्धा की अपनी सभा से की। शायद महाराष्ट्र में उन्हें दूसरे राज्यों से कुछ ज्यादा ही इसकी जरूरत होगी। आखिरकार, पिछले पांच साल में अपनी पुरानी सहयोगी, शिव सेना के साथ, खुद मोदी-शाह की भाजपा के रिश्तों में जितनी कडुआहट तथा टकराहट बनी रही थी, उसके बाद अब गठजोड़ कर के चुनाव लड़ने को जरूरी सिद्ध करने के लिए, उन्हें इन दरारों को छुपाने के कुछ तो पलस्तर चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने वर्धा में जमकर इस सांप्रदायिक दलील को उछाला कि समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद, अजमेरशरीफ, मालेगांव आदि, आतंकवादी हमलों के मामले में, खुद को हिंदुओं का रक्षक बताने वाले आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई, ‘हिंदुओं का अपमान’ करने, उन्हें ‘कलंकित करने’ का अपराध बल्कि पाप ही थी। और हिंदुओं को यह अपराध करने वालों को माफ हर्गिज नहीं करना चाहिए और इस चुनाव में उन्हें इस अपराध की उपयुक्त सजा देनी चाहिए! प्रधानमंत्री ने बड़ी चतुराई से इसे कांग्रेस अध्यक्ष, राहुल गांधी के वायनाड से भी चुनाव लड़ने के फैसले को सांप्रदायिक रंग देने से जोड़ दिया। उन्होंने दावा किया कि अपने इसी हिंदूविरोधी पाप के लिए, हिंदुओं की नाराजगी से डरकर, राहुल ने एक ऐसी सीट की शरण ली है, जहां बहुसंख्यक, अल्पसंख्या में हैं!
बेशक, यह प्रधानमंत्री के खुल्लमखुल्ला धर्म की दुहाई के सहारे वोट मांगने का मामला था, जिसकी ओर विभिन्न विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग का ध्यान भी खींचा है। फिर भी, सीधे प्रधानमंत्री मोदी के खुलकर हिंदुत्व की दुहाई का सहारा लेने का यह सिलसिला यहीं रुकना तो दूर सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित रहने वाला भी नहीं है। इस चुनाव में सब कुछ झोंकने की नरेन्द्र मोदी की बौखलाहट को, खुल्लमखुल्ला हिंदुत्ववादी दुहाई तक जाना ही था। यह दूसरी बात है कि जनता की नाराजगी के सामने, मोदी को इस चुनावी सीजन में शुरू में ही अपना कथित ब्रrास्त्र चलाना पड़ गया है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे पर अपने निर्णय पर पुनर्विचार का दरवाजा ही खोल दिया है, सत्ताधारी जोड़ी बदहवासी में बहुसंख्यकवादी उन्मत्त राष्ट्रवाद की दुहाई पर और ज्यादा निर्भर हो जाएगी। भाजपा के घोषणापत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा के जाप के साथ, राम मंदिर से लेकर समान नागरिक संहिता, धारा-370 व नागरिकता संशोधन विधेयक आदि के योग ने इसका इशारा कर दिया है। फिर भी लगता नहीं है कि उन्मत्त-राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता की कॉकटेल का नशा वाकई इतना चढ़ेगा कि लोग मोदी राज से अपनी शिकायतों को भूल जाएंगे।

राजेन्द्र शर्मा


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