मिशन शक्ति : नासा की चिंता कितनी जायज ?

Last Updated 05 Apr 2019 06:18:05 AM IST

भारत ने 27 मार्च को पृथ्वी के ऊपर 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर निचली कक्षा में स्थित अपने एक उपग्रह को एंटी-सैटेलाइट (एएसएटी) मारकर नष्ट कर दिया।


मिशन शक्ति : नासा की चिंता कितनी जायज ?

ऐसा करने वाला भारत दुनिया का मात्र चौथा देश है। अन्य तीन देश हैं-अमेरिका, रूस और चीन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी ने इसकी जानकारी देश और दुनिया को दी जिससे यह समझा जा सकता है कि यह कितना महत्त्वपूर्ण है। इसके बाद जिस तरह की अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई, उसने इससे जुड़े मुद्दे को ज्यादा स्पष्ट कर दिया। अंतरिक्ष में प्रभुत्व कायम करने का नया खेल खेला जा रहा है। दुनिया का हर अंतरिक्ष-सक्षम देश अंतरिक्ष में अपने दावे को जताने से पीछे नहीं रहना चाहता। ‘मिशन शक्ति’ की दुनिया भर में आलोचना हुई। इससे पहले चीन ने ऐसा ही परीक्षण  किया था तो उसकी आलोचना हुई थी। शायद इसी बात को समझते हुए भारत ने क्षमता के होने के बावजूद  परीक्षण नहीं किया था।

अमेरिका और रूस ने इसका परीक्षण काफी पहले किया था और उस समय अंतरिक्ष में मलबे के मौजूद होने और इसके संभावित खतरे स्पष्ट नहीं थे। भारत के परीक्षण की खबर के आने के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान ‘नासा’ की तत्काल प्रतिक्रिया नहीं आई थी पर अब कोई पांच-छह दिन बाद यह प्रतिक्रिया आई है, जब उसके पास इस बारे में ठोस आंकड़े आए हैं। नासा ने कहा कि भारत ने जो परीक्षण किया है, उससे अंतरिक्ष में स्थापित स्थायी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से उपग्रह के टुकड़ों के टकराने की आशंका 44 प्रतिशत बढ़ गई है।
 नासा का कहना है कि वैसे तो मलबे के सभी टुकड़ों पर नजर रखना संभव नहीं है पर उसने ऐसे 60 टुकड़ों की पहचान की है, जो कम से कम 10 सेंटीमीटर या इससे बड़े आकार के हैं। इन 60 में से 24 टुकड़ों के आईएसएस के नजदीक होने की बात नासा ने कही है। पर यह नहीं कहा है कि ये आईएसएस के कितने करीब हैं, और इस वजह से यह भी नहीं पता कि खतरा कितना बड़ा है। पर हम यह न समझें  कि इतने छोटे टुकड़ों से भला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को खतरा कैसे हो सकता है। एक खबर के अनुसार भारत ने जिस निचली कक्षा में स्थित अपने उपग्रह को नष्ट किया, वहां इसकी वजह से उत्पन्न उपग्रह के टुकड़े बहुत तेज गति से घूमते हैं- 8 मीटर प्रति सेकेंड या 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से। इस गति से चलने वाली छोटी वस्तु भी किसी उपग्रह से टकराने पर उसको काफी नुकसान पैदा कर सकता है।
नासा से जुड़ी एजेंसियां अंतरिक्ष में घूम रहे मलबे पर लगातार नजर रखती हैं। आईएसएस की कक्षा की जांच दिन में तीन बार की जाती है, और अगर कोई टुकड़ा इसके आसपास दिखता है, तो उससे होने वाले खतरे की समीक्षा की जाती है, और पृथ्वी पर मौजूद इसके केंद्र से आईएसएस को इससे बचाने के उपाय किए जाते हैं।
भारत का कहना है कि इतनी कम ऊंचाई पर उसने इसका परीक्षण किया है, और उसके इतने छोटे मलबे बने हैं कि इनसे आईएसएस को कोई खतरा नहीं है। आईएसएस का स्टेशन पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर है जबकि भारत ने यह परीक्षण लगभग 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर किया है। और ऐसी उम्मीद है कि भारतीय परीक्षण से उत्पन्न मलबे छिटक कर 50 किलोमीटर से ज्यादा ऊपर नहीं जा पाएंगे। भारत का यह भी कहना है कि चूंकि भारत ने जिस ऊंचाई पर अपने उपग्रह को नष्ट किया है, वहां पर वायुमंडल की उपस्थिति है, और गुरु त्वाकषर्ण के कारण इन टुकड़ों की गति धीमी पड़ने और फिर इनके वायुमंडल की ओर खिंचते चले जाने और हवा के संपर्क में आने के कारण जल जाने की उम्मीद है।
अब सवाल उठता है कि नासा की चिंता को कैसे देखा जाए? क्या ऐसा करना जरूरी था? इस परीक्षण से हमें क्या हासिल हुआ? क्या इसकी वजह से हमारी वास्तविक सामरिक स्थिति में कोई बदलाव आया है? क्या इस परीक्षण से हम अंतरिक्ष में हमारे दावे मजबूत हुए हैं? क्या हमें सिर्फ इस वजह से अमेरिका की आलोचना को दरकिनार कर देना चाहिए कि वह कौन होता है यह बताने वाला कि हम क्या करें जबकि वह खुद ऐसा कर चुका है? कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम का कहना था कि कोई मूर्ख देश ही अपनी इस तरह की क्षमता के बारे में दुनिया को बताता है। (तो क्या परीक्षण कर अमेरिका, रूस और चीन ने मूर्खता की?) भारत की यह क्षमता नहीं है कि वह अपने परीक्षण से पैदा हुए मलबे पर नजर रख सके, फिर ऐसी स्थिति में इस परीक्षण को जवाबदेही से भरा कदम नहीं कहा जाएगा। पर हां, इतना तो है कि हमें ऐसा करने से रोकने का हक़ किसी को नहीं है।

अशोक झा


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