कांग्रेस घोषणापत्र : भाजपा पर गहरा आघात
चुनावी मौसम में राजनीतिक पार्टयिों का घोषणा पत्र आमतौर पर मतदाताओं के बीच मात्र एक औपचारिकता के रूप में लिया जाता रहा है।
कांग्रेस घोषणापत्र : भाजपा पर गहरा आघात |
हाल के वर्षो में भी यह चैनलों के स्टूडियो में पक्ष-विपक्ष के बीच ‘तू-तू-मैं-मैं’ के मुद्दों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन वर्तमान आम चुनाव जिस तरह देश की दो बड़ी पार्टयिों के बीच ‘एक-दूसरे को खत्म करने तक जंग’ के भाव में लिया जा रहा है और ‘कोई भी पकड़/दांव बाधित नहीं’ के फॉर्मेट में कुश्ती चल रही है, घोषणा पत्र का महत्त्व बढ़ गया है। ऐसे में कांग्रेस का घोषणा पत्र और इसमें किये गए वादे इस 133 साल पुरानी पार्टी के प्रति लोगों का रु झान काफी बदल सकता है। लगभग 60 पेज के इस दस्तावेज को गहराई से पढ़ने के बाद साफ लगता है कि इस पार्टी के रणनीतिकारों की राजनीतिक-सामाजिक समझ अपनी विपक्षी पार्टी की रणनीति से काफी बेहतर है और वे प्रतिद्वंद्वी के मर्मस्थल पर आघात कर रहे हैं।
उदाहरण देखें कांग्रेस घोषणा-पत्र के आवरण पर लिखा है ‘हम निभाएंगे’। और अगले पृष्ठ पर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की एक तस्वीर आम जनता के बीच की है और साथ लिखा है ‘मेरा किया हुआ वादा मैंने कभी नहीं तोड़ा’। पांच साल में एक संदेश तो किसानों, बेरोजगारों और अन्य गरीबों में गया ही है कि मोदी सरकार ने जो तीन मुख्य वादों हर गरीब की जेब में 15 लाख रु पये, रोजगार के बेहतर अवसर देना और किसानों को उनकी लागत का 50 फीसद ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य-में से कोई भी दूर-दूर तक पूरे नहीं हुए बल्कि कुछ और वादे फिर जोड़ दिए गए, जैसे किसानों की आय 2022 तक दूनी करना या मुद्रा योजना में चार करोड़ लोगों को रोजगार। मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ लगातार ये वादे जनता के कानों में गूंजते रहे। नतीजतन, मोदी और उनकी सरकार पर 2014 के मुकाबले विसनीयता घटी। पूरे देश को याद है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार में कांकेर की जनसभा में हर गरीब की जेब में 15 लाख रु पये डालने का वादा किया था। साथ में अपने घोषणा पत्र के पेज संख्या 44 पर भाजपा ने वादा किया था, ‘ऐसे कदम उठाये जाएं जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का 50 फीसद लाभ हो’। यह ‘50 फीसद लाभ’ का आंकड़ा उस रिपोर्ट से लिया गया था, जिसमें स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को ‘वेटेड एवरेज’(कुल लागत) से 50 फीसद बढ़ा कर मूल्य निर्धारण की बात कही थी। सीधा मतलब था सभी खर्च शामिल करने के बाद (यानी जो किसान किराये पर खेती करता है उसके किराये को या जो किसान खुद खेती करता है, उसकी जमीन की कीमत पर ब्याज) को भी शामिल करते हुए 50 फीसद ज्यादा मूल्य निर्धारण’।
लेकिन चुने जाने के मात्र नौ महीने बाद मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में स्पष्ट रूप से कहा कि यह देना संभव नहीं। जहां एक तरफ किसानों को यह वादाखिलाफी याद रही, वहीं उसके एक साल बाद प्रधानमंत्री ने किसानों की आय 2022 तक दूनी करने की बात भी कह डाली। उधर, आज बाजार में किसानों को उनकी उपज का मूल्य पिछले 17 साल में अपेक्षाकृत न्यूनतम है। साथ में बेरोजगारी के आंकड़े पिछले 42 सालों में अपनी चरम पर हैं। लिहाजा, इन तीनों भोगे हुए यथार्थ के मुकाबले सत्ताधारी दल ने ‘देश-भक्ति और राम-मंदिर’ को पूरे उभार पर ला दिया है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जहां मोदी सरकार की उस वादाखिलाफी को बहुत ही प्रभावी ढंग से उभारा है, वहीं एक और उतना ही प्रभावी और लुभाने वाला वादा किया जो आम जन की अवधारणा में अमल में लाया जा सकता है। देश के 20 फीसद गरीबों को सालाना 72000 रु .देने का। यह कांग्रेस रणनीतिकारों की स्थिति को पहचानने की समझ ही थी कि भाजपा के घोषणा पत्र आने के मात्र चंद दिन पहले राहुल गांधी ने यह घोषणा कर दी। अब भाजपा के लिए इसी पर आगे बढ़ कर कुछ भी कहना सिर्फ नकल माना जाएगा। साथ ही किसानों को साल भर में 6000 रुपये देने के नरेन्द्र मोदी सरकार के लालीपॉप पर भी यह भारी पड़ेगा क्योंकि अधिकांश गरीब किसान भी हैं एवं खेतिहर मजदूर भी।
लेकिन इन सब से अलग कांग्रेस रणनीतिकारों ने एक और गहरा वार किया है, जो राजनीतिक पंडितों को तो छोड़िये अभी भाजपा की समझ में भी नहीं आया है। पिछले 28 साल से लगातार हर 37 मिनट पर एक किसान आत्महत्या कर रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण उसका कर्ज में आना है। जहां साहूकार सरेआम मारपीट कर या जमीन पर कब्जा कर अपना पैसा वसूलता है, वहीं सरकारी बैंक अमीन के माध्यम से रिकवरी के नाम पर उसे जेल में बंद कर देते हैं। दोनों स्थितियों में उनकी गांव के समाज में और रिश्ते-नाते में इज्जत चली जाती है और उनके बच्चों की शादी-विवाह पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। कांग्रेस किसानों को बकाये कर्ज पर आपराधिक कानून से मुक्त करेगी यानी अब कोई किसान जेल नहीं जाएगा। यह किसानों के लिए बड़ी राहत होगी, वह भी ऐसे ऐसे वक्त जब हजारों करोड़ रुपये डकारे उद्योगपतियों के जेल जाने की नौबत ही नहीं आ रही है।
यह माना जाता है कि कांग्रेस के पास भाजपा के मुकाबले प्रतिबद्ध कैडर का अभाव है। एक गहरी नीति के तहत इस चुनाव में इस कमी को भी पूरा करने की अद्भुत कोशिश की गयी है। यह वादा करके कि देश के स्थानीय निकायों में दस लाख युवाओं के ‘सेवा मित्र’ के रूप में नौकरी दी जाएगी। भारत 2.67 स्थानीय निकाय हैं, जिनमें 2.60 लाख के करीब ग्राम-पंचायत के रूप में है। इस घोषणा के बाद हर पंचायत के रोजगार चाहने वाले युवा कांग्रेस के चलते-फिरते प्रवक्ता होंगे, इस आशा से कि उनके ग्राम पंचायत में उन्हें मौका मिल सकता है। उधर, सरपंच को भी लगेगा कि अपने गांव के कम से कम चार युवाओं को रोजगार दे सकता है। यह सशक्तिकरण का अहसास उसे भी कांग्रेस के पक्ष में प्रचार के लिए तत्पर करेगा। 22 लाख सरकारी पद दो साल में भरना भी कांग्रेस की उसी रणनीति का हिस्सा है। यह हकीकत है कि जिन्दगी की जद्दोजहद में लगी महिला को इस बात से कोई खास असर नहीं पड़ता कि संसद या विधायिकाओं में कितना आरक्षण कौन राजनीतिक दल देगा। बहरहाल, कुल मिलकर कांग्रेस का 60 पृष्ठों का यह दस्तावेज भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
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