तमिलनाडु : आम नहीं, उपचुनावों पर फोकस
तमिलनाडु में चुनाव इस बार वाकई बेजोड़ हैं। सिर्फ पुड्डुचेरी समेत 39 लोक सभा सीटों के लिए ही नहीं हो रहे हैं, बल्कि 18 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव अन्नाद्रमुक सरकार की तकदीर का फैसला भी करेंगे।
तमिलनाडु : आम नहीं, उपचुनावों पर फोकस |
गौरतलब है कि वहां सरकार मामूली बहुमत से सत्ता में है। अभिनेता कमल हासन ने अपनी पार्टी मक्कल निधि मयैम की स्थापना की है, लेकिन घोषणा की है कि वह चुनावी दौड़ में नहीं होंगे। यकीनन इससे चुनावी पलड़ा द्रमुक के पक्ष में और भी झुक गया है।
हासन की पार्टी का चुनाव चिह्न टॉर्च है। उनके फैसले से चुनावी समीकरण गड़बड़ा जाएंगे। बहुतों का खेल बिगड़ जाएगा। शुरुआत में उनका झुकाव द्रमुक की तरफ था। लेकिन कांग्रेस ने लगता है कि एक और चुनाव दांव चल दिया है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के पुत्र कार्ति चिदम्बरम को शिवगंगा से चुनाव मैदान में उतारने के फैसले से पार्टी के भीतर कुछ असंतोष पनपने से इंकार नहीं किया जा सकता। इस सीट के लिए कांग्रेस का टिकट हासिल करने की दौड़ में वरिष्ठ कांग्रेस नेता ई. नचिअप्पन इस फैसले से खासे नाराज हैं। कार्ति का सामना भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एच. राजा से होगा। शिवगंगा सीट पर उनके पिता छह बार विजयी हुए थे। एयरसेल-मैक्सिस सौदे में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की मंजूरी में कथित अनियमितताओं से संबद्ध मामलों में पिता-पुत्र सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के आरोपों का अदालत में सामना कर रहे हैं। कार्ति ने ट्वीट करके कहा है, ‘शिवगंगा लोक सभा क्षेत्र से मुझे टिकट दिए जाने के पार्टी के फैसले से मैं सम्मानित अनुभव कर रहा हूं। मुझे अवसर दिए जाने के लिए कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का आभारी हूं।’
उन्होंने अपने ट्वीट में आगे कहा, ‘पार्टी और गठबंधन की ताकत’ से मुझे यह सीट जीतने में मदद मिलेगी। चुनाव के अंतिम क्षणों में ऐसे बदलावों से राज्य में कांग्रेस की जीत की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं, और अपनी सीटें निकालने के लिए क्षेत्रीय दलों पर उसकी निर्भरता बढ़ सकती है। दूसरे सिने स्टार रजनीकांत अभी तक चुप्पी साधे रहे हैं। उनके पत्ते शायद स्व. एम करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक के पक्ष में खुलें। हालांकि दोनों क्षेत्रीय दल विधानसभा के उपचुनावों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किए हुए हैं, जिनके नतीजे राज्य सरकार की तकदीर का फैसला करने वाले होंगे। तमिलनाडु विधानसभा में 234 सीटें हैं, और अभी इसमें 213 निर्वाचित सदस्य हैं। अन्नाद्रमुक के सदस्यों की संख्या स्पीकर को छोड़कर 114 है, लेकिन दो विधायकों-एक प्रभु (कल्लाकुरुचि) और रथीना सबाबाथी (अरनथांगी)-ने हाल में बागी नेता टीटीवी दिनाकरन को समर्थन दे दिया जिन्होंने बीते वर्ष अम्मा मक्कल मुनेत्र कडगम (एएमएमके) नाम से अपनी पार्टी बना ली। इसका मतलब हुआ कि अन्नाद्रमुक के अभी 112 विधायक हैं। उसे 21 विधानसभा सीटों में कम से कम 8 सीटें जीतनी जरूरी हैं। इन 21 सीटों में से तीन कानूनी पचड़े में फंसी हैं। कम से कम 8 सीटें जीत लेने पर ही अन्नाद्रमुक अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर पाएगी।
लेकिन 2016 के असेंबली चुनावों में अन्नाद्रमुक के चिह्न पर चुनाव जीते तीन निर्दलीय विधायक कभी पलानीस्वीमी-पन्नीरसेलवम के पाले में तो कभी टीटीवी दिनाकरण खेमे में जा मिलते हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि अन्नाद्रमुक को सत्ता में बने रहने के लिए 11 सीटें जीतनी चाहिए। द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन इन सभी 18 सीटों को जीत लेता है, उसके विधायकों की संख्या बढ़कर 115 हो जाएगी लेकिन बहुमत नहीं पा सकेगा। दिनाकरण इस मोच्रे को समर्थन देते हैं, तो इस गठबंधन की संख्या 118 हो जाएगी जो बहुमत के आंकड़े 116 से थोड़ी ही ज्यादा होगी। मुख्य विपक्षी दल द्रमुक के 88 विधायक हैं। उसकी सहयोगी कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सदस्य क्रमश: 8 और एक है यानी विपक्ष में 97 विधायक हैं। अन्नाद्रमुक अभी तक सत्ता में बनी रह सकी है, तो इसलिए कि दिनाकरन को समर्थन देने का संकल्प जताने वाले 18 विधायक अयोग्य करार दिए जा चुके हैं। द्रमुक को उम्मीद है कि उपचुनावों में बहुमत सीटें जीतकर वह राज्य में अन्नाद्रमुक सरकार को हटाने में सफल हो सकती है। दोनों द्रविड़ पार्टियां बराबर-बराबर संख्या-20 लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। बाकी 19 सीटें उन्होंने अपने-अपने सहयोगियों पर छोड़ दी हैं। इन सात सहयोगियों के लिए सीटें छोड़ने से ही पता चलता है कि दोनों पार्टियों को अपने नेताओं-जे. जयललिता तथा करुणानिधि की कमी खल रही है।
द्रमुक के नेतृत्व वाले मोच्रे में कांग्रेस, एमडीएमके, सीपीएम, सीपीआई, आईयूएमएल, विधुतलाई चिरुथाइगल, कोनगुनाडु मक्कल कच्ची और इंडिया जनायाजा कच्ची (आईजेके) शामिल हैं। दूसरी तरफ, अन्नाद्रमुक के साथ भाजपा, एडीएमडीके, तमिल मनिला कांग्रेस, न्यू जस्टिस पार्टी, पुथिया तमीज, पीएमके, ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस और पीएमआईएल का गठबंधन है। रोचक बात यह कि दोनों पक्षों ने एक ही दिन अपने-अपने घोषणापत्र जारी किए और करीब-करीब एक जैसी बातें कहीं। दोनों ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सात हत्यारोपितों की रिहाई पर बल दिया है। हालांकि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दोनों द्रविड़ पार्टियों द्वारा इस मामले को प्रमुख मुद्दा बनाए जाने से कांग्रेस और भाजपा को असुविधा हो रही है। दोनों के प्रवक्ताओं ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में होने से इस बारे में कुछ भी कहा जाना जल्दबाजी होगी।
सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के एक मंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी का ज्यादा ध्यान विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों पर है, न कि लोक सभा चुनाव पर। वह कहते हैं, ‘केंद्र में हमारी पार्टी ने कभी भी कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई। भले ही हमारी जीत एकतरफा हुई हो या हम शिकस्त खा बैठे हों। 2014 में हमें लोक सभा चुनाव में 39 सीटों में से 37 सीटें जीत ली थीं,लेकिन हमारी पार्टी ने केंद्र की सत्ता में भागीदारी नहीं की। इसलिए इस बार हम उपचुनावों पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं क्योंकि यही हमारे लिए जीवन-मरण का प्रश्न है।
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