श्रद्धांजलि : दाग न लगने दिया दामन में

Last Updated 19 Mar 2019 06:59:06 AM IST

मनोहर पर्रिकर के बारे में गोवा में कहा जाता है, उन्होंने कभी अपने आम आदमी होने का ढिंढोरा नहीं पीटा, कभी सादगी का बखान नहीं किया मगर वे आम आदमी के पोस्टर ब्वॉय बन गए थे।


श्रद्धांजलि : दाग न लगने दिया दामन में

सादगी का आलम यह कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अपना सादगीपूर्ण जीवन जरा भी नहीं बदला, लालबत्ती और कार के बिना वे हाफ बांह वाली शर्ट और चप्पल पहने साइकिल या मोटरसाइकिल पर गोवा की सड़कों पर अक्सर घूमते नजर आ जाते थे। मगर इस सादगी में भी उनकी खूबियां छिप नहीं पाती थी। कोई उन्हें ‘मिस्टर क्लीन’ कहता कोई ‘मैन विथ प्लान’। भाजपा के लिए तो वे अपरिहार्य नेता थे, जो चार बार मुख्यमंत्री बने।
भाजपा को गोवा की सत्ता में लाने का श्रेय उनको ही जाता है। हालांकि यह काम आसान नहीं था। गोवा में ईसाइयों की आबादी 30 प्रतिशत है, उस पर भाजपा की छवि सांप्रदायिक और हिंदुत्ववादी पार्टी की मगर पर्रिकर के प्रयत्नों से भाजपा न केवल सत्ता में आई वरन राज्य में आयाराम गयाराम का दौर खत्म होकर स्थिर सरकार का दौर शुरू हुआ। बतौर विपक्षी नेता उनके भाषणों में दूरदर्शिता और जोश था और इसने उन्हें प्रदेश में लोकप्रिय बनाया। आईआईटी से इंजीनियरिंग की उपाधि लेने वाले पर्रिकर सोशल इंजिनियरिंग में भी माहिर थे। संघ से मिली सादगी और अनुशासन को उन्होंने बरकरार रखा, मगर जब राजनीतिक समीकरण की बात आई तो व्यावहारिक रुख अपनाया। नामांकन पर्चा दाखिल करने से पहले आशीर्वाद लेने के लिए चर्च जाकर उन्होंने राज्य के कैथोलिक समुदाय के बीच पैठ बनाई। चर्च से खाई को पाटा और ऐसा रु ख अपनाया, जो पार्टी के विचार के विपरीत था।

उन्होंने अपने ढंग से अल्पसंख्यकों, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को खुश करने के लिए काम किया। अपनी इन प्रतिभाओं के बल पर जल्द ही पूरे राज्य में बीजेपी को स्थापित कर दिया। संघ के पसंदीदा तो वे थे ही, किंतु साथ-साथ उन्होंने अल्पसंख्यकों के बीच भी अच्छी पैठ बनाई। 2012 के राज्य विधानसभा चुनाव में जब पार्टी को अपने दम पर 40 सदस्यों वाली विधानसभा में 21 सीटों के साथ बहुमत मिला तो करीब एक तिहाई विधायक अल्पसंख्यक समुदाय से थे। सीएम बनने के बाद उन्होंने गोवा में फैले भ्रष्टाचार, अवैध माइनिंग के आरोप में कई कांग्रेस नेताओं पर कार्रवाई की और इसने उन्हें जनता के बीच फैसले लेने वाला सीएम के तौर पर स्थापित किया। 13 मार्च 2017 को मनोहर पर्रिकर ने गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, तब वे चौथी बार मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उनकी अनेक उपलब्धियां रहीं। ‘भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव’ को अकेले गोवा लाने का और किसी भी अन्य सरकार से कम समय में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की मूलभूत संरचना खड़ी करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। कई समाज सुधार योजनाओं जैसे दयानंद सामाजिक सुरक्षा योजना जो कि वृद्ध नागरिकों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है, साइबरएज योजना, सी.एम. रोजगार योजना इत्यादि में भी उनका प्रमुख योगदान रहा है।
प्लानिंग कमीशन ऑफ इंडिया और इंडिया टुडे के द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार उनके कार्यकाल में गोवा लगातार तीन साल तक भारत का सर्वश्रेष्ठ शासित प्रदेश रहा। पिछले चुनाव में भाजपा की जीत के बाद पर्रिकर फिर मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन पर्रिकर को बाद में केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री बना दिया गया और लक्ष्मीकांत पार्सेकर को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद पार्टी में गुटबाजी हावी हो गई। पिछले चुनावों में महाराष्ट्र गोमांतकवादी पार्टी ने गोवा में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन पर्रिकर के रक्षा मंत्री बनने के बाद से ही भाजपा और एमजीपी में टकराव बढ़ने लगा। एक बात स्पष्ट हो गई कि गोवा में राजनीतिक स्थिरता के लिए पर्रिकर अपरिहार्य हैं। इसलिए पिछले विधानसभा चुनाव में गोवा में मुख्यमंत्री कौन होगा, इसे लेकर भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले। भाजपा इस दुविधा में थी कि वह पर्रिकर के चेहरे पर चुनाव लड़े या सीएम लक्ष्मीकांत पार्सेकर के चेहरे पर। अगर पार्सेकर का नाम चुनाव से पहले घोषित किया जाता है तो राज्य में उनके नाम पर वोट पड़ेंगे और ऐसे में भाजपा को पर्रिकर की लोकप्रियता का फायदा नहीं मिल सकेगा। पर्रिकर रक्षा मंत्री रहते हुए भी देश के एयर डिफेंस प्लांस में कई बदलाव लाए। आमतौर पर अपने नर्म मिजाज के लिए प्रसिद्ध होने के बावजूद जरूरत पड़ने पर वे तीखी और विवादास्पद टिप्पणी करने से भी नहीं चूकते थे।
पर्रिकर ने फिर पुरानी बहस को छेड़ा कि कैसे हमारे कुछ प्रधानमंत्रियों ने खुफिया एजेंसी (रॉ) को बधिया बना दिया। पर्रिकर ने कहा कि पाकिस्तान में खुफिया नेटवर्क यानी डीप एसेट तैयार करने में 20 से 30 साल लग जाते हैं। कुछ ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्होंने इस तरह के डीप एसेट को खतरे में डाल दिया था। अब तक खुफिया हलकों में दबी जुबान में कुछ प्रधानमंत्रियों द्वारा खुफिया एजेंसी रॉ के बारे में लिये गए आत्मघाती फैसलों पर चर्चा होती थी, लेकिन किसी रक्षामंत्री ने इस तरह पूर्व प्रधानमंत्री के फैसलों पर सवाल नहीं उठाया। पर्रिकर ने किसी प्रधानमंत्री का नाम नहीं लिया था परंतु उनका इशारा पूर्व प्रधानमंत्री आई के गुजराल और मोरारजी देसाई की तरफ था। इन दोनों ने रॉ के पाकिस्तान में चल रहे अभियानों पर रोक लगाई थी, जिससे भारत का काफी नुकसान हुआ।
मनोहर पर्रिकर को देश में राजनीति के भविष्य के संकेतों को समझने वाले के तौर पर भी देखा जाएगा। 2013 में पर्रिकर बीजेपी के पहले अग्रणी नेताओं में से थे, जिन्होंने नरेन्द्र मोदी का नाम उस वक्त बीजेपी के पीएम कैंडिडेट के तौर पर आगे किया था। केवल सांप्रदायिक और सामाजिक सदभाव और राजनीतिक स्थिरता के लिए ही पर्रिकर को याद नहीं किया जाता, वरन भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर युद्ध और संतुलित विकास के लिए भी याद किया जाता है। अंतिम समय में कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से ग्रस्त होने के बावजूद पार्टी के आदेश पर मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी निभाते रहे। पर्रिकर के बाद राज्य में भाजपा सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अभी तक पर्रिकर सरकार को समर्थन दे रहे सहयोगी दलों का कहना है कि उन्होंने पर्रिकर सरकार को समर्थन दिया था, भाजपा को नहीं। अब उनके पास विकल्प खुले हैं।

सतीश पेडणेकर


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