भारतवंशी रोमा : भविष्य का सवाल

Last Updated 20 Mar 2019 05:25:38 AM IST

पिछले कुछ अरसे से मैक्सिको के शरणार्थियों को अमेरिका में घुसने नहीं देने की जितनी कोशिशें वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद अपने मुल्क में इमरजेंसी तक लगाकर की हैं, उससे एक बार फिर दुनिया भर के शरणार्थियों पर नजर गई है।


भारतवंशी रोमा : भविष्य का सवाल

भारत के संदर्भ में देखें, तो एक प्रमुख चिंता दुनिया भर में फैले भारतवंशी रोमा समुदाय के लोगों की है। इस समुदाय से पश्चिमी देशों में किए जा रहे बर्ताव ने साफ किया है कि ये मुल्क भीतर से असल में कहीं ज्यादा कट्टर हैं और सिर्फ  अपने हितों को पोसते हैं। अगर ऐसा न होता, तो रोमाओं को इस तरह दुत्कारा न जाता और जड़ों से उखड़े इस समुदाय के लिए पश्चिम में कोई निश्चित ठौर-ठिकाना होता।
आज पूरी दुनिया में करीब दो करोड़ लोग रोमा समुदाय के हैं। ज्यादातर रोमा रूस, स्लोवाकिया, हंगरी, सर्बिया, स्पेन और फ्रांस में बसे हैं। अमेरिका में दस लाख तो ब्राजील में 80 हजार रोमा बसे हुए हैं। रोमानिया, बुल्गारिया व तुर्की में भी इनकी काफी आबादी है। कहने को तो पाब्लो पिकासो, अंतोनियो सोलारियो, चार्ली चैपलिन, इली नताशे और एल्विस प्रेस्ले जैसी कई रोमा हुए हैं, जिन्होंने कला, संगीत, विज्ञान, खेलकूद और राजनीति में अपना मुकाम बनाया है, पर मानव इतिहास की सबसे अधिक नाटकीय दशा भी रोमा समुदाय के साथ जुड़ी हुई है। इतिहास के मुताबिक दूसरे विश्व युद्ध में यहूदियों के बाद नाजियों की क्रूरता का सबसे बड़ा शिकार रोमा समुदाय ही था। हिटलर के यातना शिविरों में करीब बीस लाख रोमाओं की हत्या की गई थी। रोमाओं से भेदभाव की कुछ और घटनाएं कथित तौर पर बेहद उदार और सामुदायिक तौर पर अत्यंत सहिष्णु स्वीडिश समाज से भी मिली हैं। अप्रत्याशित तौर पर स्वीडन में बसे करीब बीस हजार रोमाओं में से एक चौथाई यानी पांच हजार लोगों पर 2013 में ही स्थानीय खुफिया पुलिस ने हिंसक और आपराधिक बर्ताव की धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए थे। स्वीडिश पत्रकार निकैलस ओरेनियस ने दावा किया था कि रोमा समुदाय के खिलाफ कुछ खुफिया फाइलें जान-बूझकर तैयार की गई थी, ताकि उन्हें प्रताड़ित किया जा सके।

भारतवंशी रोमा समुदाय के लोगों के साथ नस्लीय आधार पर जैसा भेदभाव किया जाता है, उससे उनकी हालत शरणार्थियों से भी बदतर हो जाती है। दुनिया के 30 देशों में फैले दो करोड़ रोमाओं के वंशज वे 20 हजार भारतीय हैं, जिन्हें दो हजार साल पहले सम्राट सकिंदर अपने साथ यूरोप ले गया था। वहां से ये रोमा अन्य देशों में फैल गए। आधुनिक इतिहास के मुताबिक जिप्सी कहे जाने वाले रोमा समुदाय के लोग करीब 500 साल पहले मुख्यतया फिनलैंड और रूस से फ्रांस और स्वीडन आए थे। रोमाओं की घुमंतू जातियों ने नाजियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने और जर्मनी से निष्कासित किए जाने के बाद बड़ी संख्या में यूरोपीय मुल्कों में शरण ली थी। फ्रांस-स्वीडन के अलावा रोमा समुदाय के लाखों लोग बुल्गारिया, मैसेडोनिया, रोमानिया, सर्बिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, हंगरी और पोलैंड जैसे यूरोपीय देशों में और रूस-यूक्रेन समेत टर्की आदि मुल्कों में बसे हुए हैं। दुनिया में रोमा समुदाय के लोगों के साथ बरते जाने वाले भेदभाव और उन्हें हिंसक व अपराधी बताने की वजह रोमाओं की गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी है। ये वैसी ही घुमंतू जनजातियां हैं, जैसी भारत में बंजारा समुदाय के तहत आती हैं।
दुनिया में भारतवंशी रोमाओं के भविष्य का सवाल दो वजहों से उठ खड़ा हुआ है। पहली वजह यह है कि इस समुदाय के गिनती के जिन लोगों ने विकसित यूरोपीय देशों में अपनी मेहनत के बल पर संपन्नता हासिल कर ली है, उनकी समृद्धि स्थानीय लोगों की आंखों में चुभ रही है। दूसरे छोर पर वे रोमा हैं, जो आज भी छोटे-मोटे काम करके अपना पेट पालते हैं और रोजगार पाने के वास्ते उन्हें यहां से वहां बंजारों की तरह भटकना पड़ता है। चूंकि इनका कोई स्थानीय ठिकाना और स्थायी पहचान नहीं बन पाती है, इसलिए इन्हें अपराधी बताना और इन पर चोरी-चकारी के आरोप मढ़ना आसान होता है। इन दोनों ही कारणों से अमीर देशों में रोमा समुदाय के प्रति स्थानीय लोगों में नफरत कायम रहती है। विकसित यूरोपीय समाज के बीच से यह मांग उठती रही है कि रोमाओं को भारत वापस भेज दिया जाए क्योंकि उनके पूर्वज तो वहीं से आए थे।
रोमाओं को वापस भारत बुलाना तो संभव नहीं है क्योंकि न तो यूरोपीय संस्कृति में रच-बस चुका रोमा समुदाय यहां के समाज में समायोजित कर सकता है और न ही भारत में रोजगार की इतनी गुंजाइश है कि करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी का इंतजाम कर सके। लेकिन यह हो सकता है कि जिन देशों में रोमाओं को सताया जा रहा है, उन पर हमारी सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव डलवाए।

अभिषेक कुमार


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