सरोकार : हिन्दी से बैर क्यों?

Last Updated 17 Feb 2019 07:16:52 AM IST

अबुधाबी ने हिन्दी भाषा को अपने सभी न्यायालयों के लिए तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया है।


सरोकार : हिन्दी से बैर क्यों?

यूएई की कुल जनसंख्या करीब 94 लाख, इनमें 26 लाख भारतीय। अबुधाबी न्यायिक विभाग का मकसद न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है। ऐतिहासिक फैसले में अबुधाबी में हिन्दी को कोर्ट के भीतर तीसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। यहां की अदालत में अरबी और अंग्रेजी भाषा को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है। न्यायपालिका ने यह फैसला न्याय का दायरा बढ़ाने के लिए किया है। बता दे, यह व्यवस्था यूएई में बसे भारतीयों की सुविधा के लिए की गई है। इस खबर से एक तरफ जहां खुशी हो रही है तो दुसरी तरफ उससे अधिक दु:ख इस बात का है कि अपने देश भारत में अपने लोगों (भारतीयों) को अपनी भाषा हिन्दी में अदालत में, विशेषकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अपील करने की सुविधा नहीं है। सरकार को अब इस मामले पर समझ लेना चाहिए कि विदेशी सरकार हिन्दी को इतना सम्मान दे रही है तो हम क्यों नहीं अपनी भाषा को दे सकते। यह हमारे लिए शर्म की बात है।

सवाल है, हिन्दी को कौन मान्यता देगा? हिन्दुस्तान की मातृभाषा हिन्दी, पर हिन्दी से पहले अंग्रेजी। बोलने में शान, चलने में शान.. अंग्रेजी में थिरकना भी सर ऊंचा कर देता है। लेकिन यह हिन्दी और भारतीय भाषाओं के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। जबकि हम यह भूल जाते हैं कि पूरे भारत में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या करीब 12-14 करोड़ है। इसके बावजूद सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग धड़ल्ले से होता है। लोकप्रिय तर्क यह है कि अंग्रेजी हमें दुनिया से भी जोड़ रही है, बाजार से भी, प्रौद्योगिकी से भी और उच्च शिक्षा से भी। ऐसे में हिन्दी या भारतीय भाषाओं की बात करना पिछड़ेपन की बात करना है लेकिन एक दूसरी हकीकत और भी है। हिन्दी भाषा की बात ही निराली है जिसे ना सिर्फ  इसे जानने वाले पसंद करते हैं बल्कि विदेशी भी इस भाषा से खासा लगाव रखते हैं। हिन्दी भाषा को ऐसी कड़ी माना जाता है जो भारत को किसी भी देश के साथ आसानी से जोड़ने का काम करती है। ये हिन्दी भाषा की मिठास ही है कि इसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चाहने वालों की कमी नहीं है।
बेशक, तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दी के उपयोग को लेकर केन्द्र सरकार की राय पूछी थी तब मोदी सरकार ने ही कोर्ट को कहा था ‘जजों पर हिन्दी नहीं थोपी जा सकती’? संविधान सभा में 1965 से ही हिन्दी को सुप्रीम कोर्ट की भाषा बनाने का फैसला किया गया था, अब कम से कम अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी को भी सुप्रीम कोर्ट की भाषा बनाना चाहिए। समस्त भारतीयों के लिये आत्मग्लानि की बात है कि हमारे देश के  न्यायालयों को पता नहीं कि हिन्दी क्या होती है। हम भारत में महापुरु षों की मूर्तियां तो लगा देते हैं लेकिन उनके कहे और लिखे पर अमल नहीं करते। संविधान में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को दिए स्थान को भी हमने पूरा नहीं किया आगे बढ़ना तो दूर की बात है। ऐसा प्रजातंत्र जहां वोट तो हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में मांगे जाते हैं और फिर सभी काम (रोजगार, शिक्षा, न्याय आदि का) अंग्रेजी में होता है।

रविशंकर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment