बतंगड़ बेतुक : दद्दू तेरा अहसानमंद सरकार

Last Updated 17 Feb 2019 07:20:01 AM IST

दद्दू जरूर आज खुश था। आम तौर पर दद्दू के चेहरे पर चिंता की रेखाएं तनी रहती थीं परंतु आज दद्दू खुद तना हुआ नजर आ रहा था।


बतंगड़ बेतुक : दद्दू तेरा अहसानमंद सरकार

दद्दू अपने गंजे सर को खुजाता रहता था परंतु आज उसके गंजे सर पर मोटी पाग चढ़ी हुई थी। यह दीगर बात थी कि दद्दू की मोटी भदेस उंगलियां आदतन पाग को खुजला रही थीं। दद्दू एक किसान था और पटवारी के खाते में उसके नाम डेढ़ेक बीघा जमीन चढ़ी हुई थी, और कर्ज की मोटी परत भी। दद्दूजानता था कि चुनावी मौसम में कर्ज माफी की बहार आएगी और यह परत अपने आप मिट जाएगी, उसकी धरती नयी फसल के साथ फिर नये कर्ज के लिए तैयार हो जाएगी। कर्ज दद्दू की जान था, आखिर दद्दू किसान था।
हमने दद्दू को राम-राम की जुहार लगाई, हाल-चाल लिया और पूछ लिया,‘दद्दू, हवा कुछ अलग लग रही है, सर पर पाग और मूंछों से मुस्कान बह रही है?’ दद्दू ने घनी मूंछों पर हाथ फेरा, फिर हमारी तरफ तरेरा,‘का रे लिखवैया, टीवी-सीवी ना देख तु का, बजट-सजट ना सुनतु का?’ हमारे दिमाग की घंटी घनघना गयी, दद्दू की बात समझ में आ गयी। दद्दू अचानक छह हजार साल का स्वामी हो गया था, यही स्वामित्व दद्दू के व्यक्तित्व में समा गया था। हमने कहा,‘बधाई हो दद्दू, इतने पैसे का क्या करोगे। हाथ में रखोगे कि बैंक में धरोगे?’ दद्दू बोला, ‘देखि भैया, इत्ताै पईसा भौत दिनन ते ना देख्यो, सो पहले तो जी भरि के देखेंगे, आंखें सेकेंगे, फिर सोचेंगे कि का करेंगे।’‘पर दद्दू, कुछ तो योजना बनाई होगी, कुछ तो सोचा होगा कि पैसा किस-किस मद में व्यय होगा।’

दद्दू ने हमें ऐसे देखा जैसे किसी उजबक को देख रहे हों। अचानक दद्दू मुस्कराया, मूंछों पर फिर हाथ फिराया और बोला, ‘कछू योजना बनाइ लयी है, कछू बाद में बनावेंगे। जब बन जावेंगी तब तोइ बतावेंगे।’ दद्दू ने चल निकलने को पांव बढ़ाया तो हमने दद्दू का हाथ पकड़ लिया,‘दद्दू ऐसे मत जाइए,बन गयी योजनाओं के बारे में कुछ तो बताइए।’ दद्दू रुका, थोड़ झुका, हुंकारा भरा, मुस्कराया और बोला,‘सुन लिखवैया, पिछले मेह में हमाई बाखर की कुठरिया ढह गयी हती सो सबते पहले बा कुठरिया कूं चिनवावेंगे, रहिवे लाइक करिबावेंगे।’ ‘उसके बाद?’ हमने पूछा। दद्दू बिना कोई जवाब दिये मुस्कराता रहा, हमें भर आंख निहारता रहा।
हमने टहोका,‘तो बताओ दद्दू, उसके बाद?’ दद्दू बोला, ‘तौ सुन लिखवैया, मोंड़ा भौत दिननि ते बड़े स्कूल में पढ़िबे की जिद करि रह्यो है। सोचि रह्यो हूं कि बाइ बड़े स्कूल में दाखिला दिब्वाइ दऊं। पढ़ि लिखि कें कलट्टर, डागदर, इंजीनिअर कछू तौ बनिजावैगो। नहीं तो बकील बनिकें तहसील में ही कछू कमाइ खाबैगो।’ हमने कहा, ‘मगर दद्दू तुम्हारा मोंड़ा गांव से शहर कैसे जाएगा, उसके पास तो साइकिल भी नहीं है, शहर पहुंचने की जुगाड़ कैसे लगाएगा?’ दद्दू की मूंछों से उसका हास झांकने लगा और दद्दू हमें समझाने लगा। बोला,‘देखि भैया, मोंड़ा कूं फटफटिया कौ भौत चाव है। सो बा कूं एक फटफटिया दिब्वाइ दूंगों, बो शहर जाइवो करैगौ, कबहुं कभार मैं हूं सवारी गांठि लूंगो।’
हमने पूछा, ‘और कोई योजना दद्दू?’ दद्दू बोला, ‘योजना तो नाइ परि मेहरारू कौ पेट भौत पिरातु है। वैद कूं दिखायो, झोलाराम डागदर कूं दिखायो परि फायदा ना परौ, सो सोचि रह्यो हूं कि शहर के कोऊ बड़े अस्पताल के बड़े डागदर कूं दिखाइ दऊं।’ हम हैरानी से देख रहे थे, सोच रहे थे कि क्या दद्दू को पता है कि शहर के बड़े अस्पताल और बड़े डॉक्टर मरीजों का क्या चूसते हैं। मगर फिर भी हमने अपनी रौ में पूछ लिया, ‘इनके अलावा और कुछ?’ दद्दू बोला, ‘भैया लिखवैया, सबसे बड़ी बात तौ बिसर ही गयी। मोंड़ी की बात तौ दिमाग तेई निकरि गई। मोंड़ी कुंआरी बैठी है कोई मलूक सौ मोंड़ा देखिकें बा कौ ब्याह करानौ है, बाप हैबे कौ धरम निभानौ है।’
दद्दू के चेहरे पर मुस्कान थी सो हम भी मुस्करा दिये, दद्दू रुक लिया था सो हम भी रुक लिए। हमने कहा, ‘पूरी करने को कोई और योजना बची हो तो वो भी बता दो दद्दू, अब तो किसानों की ही सुनवाई है, जिसकी सुनवाई उसी की दुहाई है।’ दद्दू बोला, ‘भैया बात तौ सांचीं है, अब इतैं-उतैं की का करें, जैसे किसाननि के दिन फिरे वैसे हर कोऊ के फिरें।’ दद्दू थोड़ी देर ठहरा, फिर बोला, ‘देखि लिखवैया, तो ते सांची कहूं तो खेती-किसानी से मन उचट गया है। मेहनत करि-करि कें गोड़-हाड़ सब पिराय गये हैं। सोचि रह्यो हूं कि कोई दुकान-वुकान डाल लऊं। बैठि के खाऊंगो, आराम से घर चलाऊंगो। सरकार इत्ताै करि रही है जाय हमहूं जानि रहे हैं सो बाकौ अहसान मानि रहे हैं।’
हमने कहा, ‘लेकिन दद्दू विपक्ष तो कह रहा है कि तुम्हारी सहायता करने के लिए सरकार के पास पैसा कहां से आएगा, सरकार का खजाना खाली हो जाएगा, विकास रुक जाएगा।’ ‘ऐसी बात है तो सुन भैया, जो हमारे पास बाकी बचैगो, वो बापिस सरकार के खजाने में डाल देंगे। हम तो किसान हैं, किसान ही रहेंगे, पर बिचारी सरकार कूं दुखी नांहि करेंगे।’ इतनी कह के दद्दू निकल लिया। हमने भी अपना रास्ता पकड़ लिया।

विभांशु दिव्याल


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