बेलगाम नहीं आजादी
नागरिकों को भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अहमियत समझनी चाहिए और आत्म-नियमन का पालन करना चाहिए। देश के हर नागरिक को उच्चतम न्यायालय की इस नसीहत पर अमल करना चाहिए।
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आत्म नियमन के अभाव में कई बार इस आजादी के नाम पर अपमानजनक काम हो जाते हैं चाहे वह कोई रचना हो या टिप्पणी। ऐसे काम समाज को दूषित कर सकते हैं या वैमनस्य बढ़ा सकते हैं। स्थिति आगे बढ़कर विभाजनकारी सोच को मजबूत करते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द को भी बिगाड़ सकती है।
ऐसी स्थिति की पूर्व कल्पना किसी भी काम से पहले कर लेनी चाहिए। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति के वी विनाथन की पीठ वजाहत खान नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही है।
खान पर सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक हिन्दू देवता के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने का आरोप है। उसके खिलाफ पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में प्राथमिकी दर्ज हैं।
खान ने एक अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली के खिलाफ एक वीडियो में कथित तौर पर सांप्रदायिक टिप्पणी करने के लिए शिकायत दर्ज कराई थी। खान के वकील ने शीर्ष अदालत में कहा कि ऐसे पोस्ट के जवाब में आपत्तिजनक टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए।
न्यायालय को लगता है कि लोगों के लिए सोशल मीडिया पोस्ट पर गाइडलाइन होनी ही चाहिए। पीठ ने सवाल किया कि नागरिक स्वयं संयम क्यों नहीं रख सकते? लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मोल समझना ही चाहिए। ऐसा नहीं होने की स्थिति में राज्य का हस्तक्षेप अवश्यंभावी है जो कोई नहीं चाहता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 100 फीसद पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता, लेकिन नागरिक इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे हैं।
प्रतिबंध होंगे तो सीमा से बाहर जाने पर कानून का भय रहेगा। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों को सही बताया।
उच्चतम न्यायालय को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि सोशल मीडिया मंच किस तरह लोगों को हदें तोड़ने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। किसी के भी खिलाफ कुछ भी लिख दो, अश्लील से अश्लील सामग्री पोस्ट कर दो। धर्म के खिलाफ अनर्गल पल्राप कर दो, सब बिना किसी रोक के प्रकाशित हो रहा है। सबसे पहले इनकी खबर ली जानी चाहिए। धन के लिए इन्हें समाज को क्षति पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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