वेलेन्टाइन डे : उभरती संस्कृति का सच

Last Updated 14 Feb 2019 05:54:33 AM IST

वेलेन्टाइन डे यानी प्रेम की एकदिवसीय आक्रामक संस्कृति का बहुरंगीय बाजार पूरे संसार में सजा है। आर्चीज के कार्ड्स, गुलाब के फूलों की दुनिया, होटल, रेस्त्रां, पब यहां तक कि सार्वजनिक स्थान भी प्रेम के बाजार की कहानी खुद ही बयां कर रहे हैं।




वेलेन्टाइन डे : उभरती संस्कृति का सच

इस दिन के जश्न में अब मीडिया भी पीछे नहीं रहना चाहता। मीडिया ने तो वेलेंटाइन डे के एक सप्ताह पूर्व से ही लोगों की स्मृतियों को ताजा करना शुरू कर दिया था। आप चाहें इसे पसंद करें या न करें यह दिन युवाओं के लिए विशाल उत्सव बन चुका है।
इतिहास में झांकने की कोशिश करें तो हमें उन संत वेलेंटाइन के बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिलती, जिनके नाम पर वेलेंटाइन डे मनाया जाता है। 14 फरवरी के साथ सीधे तौर पर एक मान्यता यह जुड़ी है कि वेलेंटाइन नामक पादरी को उस समय के यूनानी शासक क्लाउडियस ने ईसा के मत के प्रचार के अपराध में जेल में डाल दिया और इस दिन उन्हें मृत्युदंड देते हुए उनका सिर धड़ से अलग कर दिया था। माना जाता है कि जिस दिन उन्हें मौत के घाट उतराया गया उसी रात उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने जेलर की बेटी को अलविदा का एक पत्र लिखा था, जिसके अंत में उन्होंने लिखा था ‘तुम्हारा वेलेंटाइन’। संभवत: उन्हें उस लड़की से प्यार हो गया था। तभी से दंडित किए गए सेंट वेलेंटाइन के मार्मिक और अपूर्ण रहे प्रेम की स्मृति में यह दिवस मनाया जाता है।

दूसरी मान्यता यह भी है कि वेलेंटाइन जब जेल में थे, तो उन्हें रोम के बच्चों के असंख्य पत्र प्राप्त हुए थे जो उन्हें बेतहाशा प्यार करते थे। कुछ इस दिवस की जड़ें उस पुरानी यूरोपीय लोक मान्यता के भीतर भी तलाशते हैं जहां यह धारणा उन दिनों खूब प्रचलित थी कि चौदह फरवरी के दिन संसार भर की सभी प्रजातियों के पक्षी चौदह फरवरी के दिन अपना जोड़ा बनाकर प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं। कहीं-न-कहीं यह दिवस प्रेम की प्राकृतिक भावनाओं को संजोते हुए श्रृंगार को अभिव्यक्त करने का दिवस है।  परंतु कड़वी सचाई यह है कि भारतीय समाज को विदेशी बाजारों के लिए खोल देने के बाद पश्चिमी संस्कृति का प्रवेश न हो, यह कतई संभव नहीं। आज के बच्चे इस संस्कृति को अपनाने, रेव पार्टियों के आयोजन या वेलेंटाइन डे के प्रति समर्पण करने में जो सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, उसमें परिवारों की घटती भूमिका प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। कड़वा सत्य है कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास में परिवारजनों की घटती भूमिका, बच्चों के मध्य पारिवारिक साझेदारी एवं उनसे प्रेम करने की भावना बच्चों में प्रेममय सुख एवं सुरक्षा की भावना का संचार करती है। घर का प्रेम और वात्सल्य बच्चों में एक प्रकार की सुरक्षा का आवरण प्रदान करता है परंतु अफसोस है कि परिवार की भावमयी वात्सल्यी संकल्पना के पीछे छूट जाने से बाल व किशोर मन की संवेदनाएं घायल अवस्था में हैं। उस पर मरहम लगाने का काम न तो परिवार कर रहे हैं, और न ही स्कूल और स्कूली पाठय़क्रम। व्यावसाियक सिनेमा व दूरदर्शन के सीरियल, संवाद एवं पात्रों के चरित्र का तीन चौथाई भाग भी प्रेम प्रसंगों से ही भरा रहता है। यही कारण है कि उन पात्रों के प्रेम प्रसंग किशोरों के जीवन को रोल मॉडल के रूप में सीधे प्रभावित कर रहे हैं। इससे किशोर मन की वर्जनाएं टूट रही हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता बढ़ रही है, विवेक लुप्त हो रहा है, और प्रेम प्रसंग उनको तात्कालिक सुख की अनुभूति करा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत में प्रति वर्ष 50 लाख गर्भपात 20 वर्ष से कम की आयु की किशोरियों द्वारा कराए जाते हैं। गंभीर बात यह है कि ये सभी गर्भपात किशोरियों के युवा मित्रों द्वारा स्कूल के समय में कराए जाते हैं।
निश्चित ही वेलेंटाइन डे की भावना में कोई दोष नहीं है। दोष तो केवल एकदिवसीय मदनोत्सव की संस्कृति में है, जो सारी वर्जनाओं को ध्वस्त करके एक बड़े बाजार की संस्कृति का हिस्सा बनकर आक्रामक स्वरूप अपना रही है। वेलेंटाइन डे के वर्तमान गुस्सैल स्वरूप को रोकना है, तो हमें देखना पड़ेगा कि कहीं हमारा बच्चों से भावनात्मक और रागात्मक अलगाव उन्हें ऐसे प्रेम की अंधी गली की ओर तो नहीं ले जा रहा। युवा पीढ़ी को इस प्रकार के मदनोत्सव की संस्कृति से रोकना है तो बच्चों के बीच पनपने वाले अधकचरे प्रेम से स्नेहिल आंचल की छांव देकर ही बचा जा सकता है। आइए, मिलकर इस वेलेन्टाइन डे की संस्कृति को स्वदेशी स्वरूप प्रदान करते हुए इसे मां-बाप और बच्चों, शिक्षक और शिक्षार्थी व अन्य सामाजिक संस्थाओं के बीच घटते प्रेम, वात्सल्य और संवाद की संस्कृति और क्षरण होते नैसर्गिक प्रेम को साकार रूप प्रदान करें।

डॉ. विशेष गुप्ता


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