मीडिया : ब्रांड प्रियंका

Last Updated 10 Feb 2019 03:01:54 AM IST

इन दिनों मीडिया में ‘प्रियंका फैक्टर’ की चौतरफा चरचा है।


मीडिया : ब्रांड प्रियंका


-क्या राहुल फेल हो चुके हैं?
-क्या उन्नीस के चुनाव में प्रियंका कांग्रेस का बेड़ापार करा सकती हैं?
-क्या यह कांग्रेस का आखिरी कारतूस है?
-यूपी में वे किसके वोट काटेंगी? सपा-बसपा के या भाजपा के?
मीडिया इन सवालों के जवाब खोजता फिरता है। दो चैनल तो सव्रे तक दे चुके हैं कि प्रियंका को यूपी में पंद्रह से बीस प्रतिशत लोग पसंद करने लगे हैं यानी कांग्रेस की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है। प्रियंका के ‘छवि प्रबंधक’ इस बात का घ्यान रखने लगे हैं कि पब्लिक या मीडिया में कितनी देर दिखें और कितना बोलें। जब वाड्रा को सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया तो स्वयं प्रियंका उनको अपनी गाड़ी में साथ ले गई। उस दिन इतनी ही खबर बनाई। इस एक एक्शन से दो काम हो गए : एक तो यह डर निकल गया कि वाड्रा के कारण उनकी छवि को धक्का लगेगा। दूसरी सबसे बड़ी बात यह हुई है कि राजनीति में उनकी कुलवक्ती ‘एंट्री’ ने कांग्रेस पर लगते वंशवाद के आरोप को भी बेकार कर दिया है।

यद्यपि भाजपा के कुछ प्रवक्ताओं ने कहा कि ये वंशवाद है, लेकिन प्रियंका ने आगे आकर मानो कहना शुरू कर दिया है कि तो क्या? हर आदमी का अपना कोई न कोई वंश होता है। मेरा भी है। मेरा काम देखें। फिर बात करें। और इस तरह हमने देखा कि वंशवाद का जो आरोप अब तक राहुल पर लंबे समय तक चिपकाया जाता रहा प्रियंका पर नहीं चिपकाया जा रहा। यों भी इस आरोप के दिन गए। भारत में किसका वंश नहीं होता? हर बंदा अपना वंश खोजता है। यहां तो ‘राजा निरबंसिया’ की कहानी भी कही जाती है। छवियों के इस उत्तर आधुनिक युद्ध में प्रियंका की एंट्री कई ‘मानी’ एक साथ पैदा करती है। प्रियंका की छवि की यही सबसे बड़ी विशेषता है। इसी कारण वह बहुलार्थी है और इसीलिए अभी तक ‘अपरिभाषेय’ है, और जब तक ऐसा है तब तक बहुत से आखेटों से ‘इम्यून’ हैं। उनका सबसे बड़ा ‘एडवांटेज’ है कि वे एक नई ‘सलज दुर्जेयता’ के साथ मैदान में आई हैं। यह किसी ‘दुर्लज्ज माचो दुर्जेयता’ की सीधी काट करने वाला तत्व है, और यही प्रियंका का फिलहाल का नया ‘ब्रांड’ है। राहुल का ब्रांड पिछले चार-पांच साल से मार खाता आया है। उसका कारण राजनीति को लेकर राहुल की शुरुआती ‘झिझक’ रही। फिर उनको दबंगई की राजनीति करने वालों ने उनकी छवि को ‘पप्पू’ की तरह बनाया, लेकिन कुछ तो उनको ‘पप्पू’ कहने वालों के दुरहंकार और कुछ राहुल के अपने ‘कड़े आत्मसंघषर्’ ने उन्हें एक फाइटर की छवि दी और इस तरह ‘पप्पू’ बरक्स ‘फेंकू’ के लंबे छवि युद्ध चले जिनमें राहुल जीते। अब लोग राहुल को उनकी सहज बौद्धिक तीक्ष्णता, निडरता और संघर्षधर्मिता के लिए भी जानने लगे हैं। इसके साथ बहन प्रियंका का आना कांग्रेस की दुधारी तलवार का आना है। इसीलिए भाजपा के छुटभैये कुछ कहते रहें, भाजपा का कोई बड़ा नेता अभी तक कुछ नहीं बोला है। लेकिन प्रियंका इसके अलावा भी कुछ और हैं : इनमें से एक है उनका स्त्री होना। इन स्त्रीत्ववादी दिनों में उनका स्त्री और सहज स्त्रीत्ववादी होना मर्दवादी हिंदुत्व के लिए एक बड़ी चुनौती है। दूसरा है उनका मधुर चेहरा, जिसे भाजपा के नेताओं ने ‘चाकलेटी चेहरा’ कहकर उपहासास्पद बनाना चाहा मगर असफल रहे। उनके ऐसे स्त्रीद्वेषी कथनों के कारण मीडिया ने स्वयं प्रियंका का मुकदमा लड़ दिया और हिंदुत्ववादी माचो लोग स्वयं उपहास के पात्र बन गए।
यह इंदिरा गांधी का कथित ‘गूंगी गुड़िया’ वाला क्षण नहीं था। तब की मर्दवादी राजनीति में ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर मजा लेने  वाले मर्दवादी को ‘हीरो’ कहा गया था। अगर ऐसे तत्व आज होते तो अगले ही पल मीडिया में जीरो हो गए होते। आज का स्त्रीत्ववादी वक्त प्रियंका के लिए अतिरिक्त एडवांटेज है।  प्रियंका का सबसे बड़ा एडवांटेज है, उनका सहज ‘सस्मित चेहरा’, जिसमें इंिदरा की छवि झांकती है। यह बनावटी नहीं है कि कोई अभ्यास से मुस्कुरा रहा हो बल्कि ऐसा कुदरती मुसकुराहट भरा चेहरा है, जो राजनीति की समकालीन दनदनाती खूंखार भाषा के बीच एक सॉफ्टनेस को संभव करता है और मर्दवादी भाषा की समूची खूंखारियत को बेकार कर देता है। मीडिया छवियों की राजनीति का निर्माण करता है और अपनी राजनीति है भी छवियों की राजनीति। ऐसे में पांच साल से दनदनाती दबंग मर्दवादी माचो बदलेखोर भाषा के बरक्स एक सॉफ्ट मुहावरे का आना उक्त दबंग भाषा का अहिंसक जवाब है।

सुधीश पचौरी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment